काव्य
साहित्य की ताकत
संस्कृति सभ्यता का उपवन साहित्य ज्ञान की झांकी है। प्रगतिशील होता वह देश साहित्य जहां की साखी है ।। नर जीवन अधम अगोचर है साहित्य बिना संज्ञान कहां बंधुत्व प्रेम वात्सल्य निहित साहित्य जहां है, स्वर्ग वहां ।। दिशा मोड़ देता साहित्य उद्दंड सम..
Read Moreसाक्ष्य धर्म के
मर्यादा को प्रीत बना श्रीराम ने जीवन डोर किस्मत के हाथ थमाई लाख जुगत कि फिर भी संघर्षों से पार ना पाई ।। सीता ने पालन किया पत्निव्रत धर्म का और ताउम्र,वनवास की सजा पाई ।। लखन ने त्यागा पत्नी और राजमहल के ऐश्वर्य को कई अरसा,उन्होंने अकेलेपन और
Read Moreपत्थर दिल दुनियां
इस ज़ालिम दुनियां का तू ऐतबार न कर, बेमतलब के भाव से भरे तू इससे,सवाल ना कर ।। स्वार्थ भरा हैं इसके वासी की रग रग में तू, फिजूल में इनसे हमदर्दी की गुहार ना कर ।। तारीफ़ का हकदार तुझे बनायेगे अपने हिसाब से, और नाकदरी के खिताब से नवाजे..
Read Moreगुरु वंदना
हे ईश तुल्य, हे पूज्य गुरु तम हर, प्रकाशमय जीवन कर दे । प्रज्ञा प्रखर, निर्मल पावन मन खुशियों से घर-आंगन भर दे । बुद्धि विवेक प्रखर हो मेरा शुचित हृदय तन निर्मल कर दे । वाणी मधुर, कर्म हो गतिमय मन दर्पण सा उज्ज्वल कर दे ।। परहित धर्म भरा हो..
Read Moreप्रेम पत्र ,नामे हमनवा के
लिखने को बैठा कुछ अंशे मोहब्बत ज़िगर के कागज़ दरमियान ।। पर, याद आया जो,भाव उतारने को हूं मैं बेताब लहू की स्याही बना उस काग़ज़ के टुकड़े पर उसको भी खरीदने में लगता हैं पैसा ।। जज़्बात जो,दिल के नाम करना चाहता हूं हमनवा के कागज़,कलम...
Read Moreबाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा हैं रुपैया
।। आशिक,हैं भैया सभी रुपैया का ।। बाप बड़ा ना भैया साहब! कलयुग का सरताज़ हैं । तो,बस रुपैया हर रिश्ते,हर नाते और हर जज़्बात ,अहसास पर भारी हैं छाप इस,रुपैया की रुपैया को सर माथे रख लोग राज़ करना चाहते हैं दुनिया क्या उस,खुदा की का...
Read Moreअनकहा सा एक ख़्वाब
बचपन की वो अटखेलियां कहां गुम सी हो गई हैं मैं! खोजता जितना उन्हें उतना ही वो लापता सी हैं ।। लड़प्पन से निकलकर जरा संभला जो मैं एक ख्वाब ने हौले से, मेरे दिल की दरवाजे पर दी दस्तक ।। ख्वाब वो,मेरे चरित्र का गहना सा था जैसे,मेरे मन ने...
Read Moreख्वाबों दर्मियां ,एक आधी अधूरी सी रैन
दर्मियाँ एक आधी अधूरी सी रैन ।। रैन की ओट में था और था मैं बेचैन बड़ा सिरहाने रखी तकिए को जो, मैंने थामा बाहों से कसकर उलझकर रह गया रैन की बेताबियों की कशमकश में । फिर गया जो मैं नींद के आगोश में हो ही गई गई गुफ्तगू दो चार सोच दरमियान कैद ख
Read Moreबारिश की बूंदे
सताती हैं मन को जलाती भी जब जब, तन को सहसा अपने अनोखे अंदाज़ से भीगाती हैं ये बरखा की बूंदे । मैं! होना चाहता हूं सराबोर ऐ,बरखा की बूंदे तेरे नशे में चूर भी । आसमान के सीने को चीर आती हैं मिलने मुझसे ये बरखा की बूंदे जैसे खेलती हो लुका छिपी...
Read Moreचाहता हूं बिन जज़्बात ज़िन्दगी का ये सफ़र जीना मैं
।। बिन जज़्बात चाहता हूं जिंदगी का सफ़र जीना ।। सोचता हूं अहसास को थोड़ा बांध सा लू मैं ।। बिन इनके जिंदगी को थोड़ा सा ही सही पर, मैं इनके बिन कुछ लम्हे सफर के गुजार ही लूं ।। जज़्बात में भावुक हो न बहूंगा देता हूं दिल को रोज ये कसम
Read Moreबरखा की वो पहली झड़ी
।। पहली बरखा की वो खूबसूरत सी झड़ी ।। पहली फुहार जब पड़ती हैं दिल पर दिल को हौले से गुदगुदा सा देती हैं ।। कुछ सपनों को पाने में था जो,ये मसरूफ़ सा मन मुझे, उस ख़्वाब के भरम जाल से मेरे मन की दहलीज पर गिरकर ये बारिश की बूंद, मुझे, उस भरम...
Read Moreसफ़र का सफ़ीना बिन पतवार ( हमसफर)के
उम्र तमाम सफ़र पर रहा पर बिन हमसफर ही रहा ।। समय की दरख्तों से झांकते मेरी ख्वाहिशों की हर बुनियांद जैसे,कहती हो पुकार हौले से आकर, कोई कर दे बस ,पूरे मेरे सारे वो अधूरे ख्वाब ।। मैं! उम्र तमाम सफ़र पर रहा पर बिन हमसफर ही रहा ।। कई अरसे से
Read Moreना मीरा सा भक्त कोई ।। ना राधा सा दीवाना कोई ।।
एक प्रेम दीवानी और एक भक्ति में डूब परमेश्वर को पाने की आस लगाएं जैसे, कई जन्मों की दरस की प्यासी हो ।। प्रेम हैं पाठ त्याग,समर्पण और बलिदान का और भक्ति हैं मार्ग ईश्वर के सन्निकट होने का । राधा थी बांवरी प्रीत में कान्हा की और...
Read Moreमेरी अग्नि परीक्षा
सदियों से परीक्षा होती आई, अग्नि से रिश्ता पुराना है I जन्म से पहले भय मृत्यु छाई किसको मुझसे खुशियाँ आई पसरा मातम न बजी बधाई बुझे मन बिटिया का घर आना है I चार बरश से घर को पाले, नन्हे हाथों से रोटी सेंकी चूल्हे के धुएं में जलती बेटी हर...
Read Moreशर्म ओ हयां
शर्म ओ हयाँ गहना हैं चरित्र का रक्षक सा हैं मान और मर्यादा का । संभालता हैं पीढ़ी दर पीढ़ी रीति रिवाजों,परंपराओं और प्रतिष्ठा को ।। शर्म ओ हयां चार चांद भी लगाता हैं खूबसूरती की हर दहलीज को बांध के रखता हैं प्रीत के अनमोल धागे मन के एक...
Read Moreख्वाहिशों को पर
देना चाहता हूं मैं! अपनी हर ख्वाहिश को एक पर हां, मैं भी खुलके जीना चाहता हूं । सतरंगी अरमानों के संग ।। छुपाके,जो रखता था मन में अब तक दबाकर,जो चलता था सीने में अब तक सरेआम,कर ज़माने संग जगजाहिर करना चाहता हूं । वो, अपनी भीतर दबी इच्छा के...
Read Moreमौन, भीतर का
मैं! हो जाता हूं मौन ये शब्द भी हो जाते हैं मौन फिर भी,ये दिल बड़ी खामोशी से बात करता हैं । जाने अंजाने, बिन शब्द मुख से कहे बिना आंखों की जरिए ,अपनी बात कहता हैं ।। ये, मौन,हैं बड़ा बेदर्दी हैं बड़ा ज़ालिम हर वक्त मन को बेचैन सा और भीतर ही
Read Moreमेरी,अनकही सी एक उलझन
दुनियां, जहान से बेखबर फिर से,हो चला खुद की ही हस्ती में आज से थोड़ा, मशरूफ सा मैं । हो चला, थोड़ा बेखबर, थोड़ा हर बात से अंजान सा, मैं! बहुत भीड़ थी भरे पूरे ज़माने में मगर, भीतर ही भीतर,तन्हा था मैं! शिकायत थी औरों से बहोत पर उफ्फ! त..
Read Moreहाइकु -भाई
मैं भी तो आपकी तरह ही हाड़ माँस की ही बनी हूँ, मुझे भी मेरी माँ ने जन्मा प्रसव पीड़ा भी झेली थी, मगर मुझे पाकर भी खुश होने के बजाय मुँह मोड़ ली थी। पिता मायूस थे किंकर्तव्यविमूढ़ से हुए, समाज के डर से गैरों की गोद जाने से मुझे रोकने की हिम्मत न जुटा सके दूर..
Read Moreवर्षा आई रे ...।।
छा गई चहुंओर घटाएं घिर गई काले बादलों से दिशाएं चमकती बादलों की ओट से बिजली संदेश लाई है । मिलजुल गाओ मल्हार कि वर्षा आई है । बादलों से निकलकर गिर रही बूंदें धरा पर पायलों की सी खनकती आवाज कर रही छम-छम बुझा प्यास धरा की, खुशियां लाई है। मि..
Read Moreसम्राट पृथ्वी राज चौहान विषय अंतर्गत कविता
मैं दिल्ली का सिंहासन हूँ, मुझ पर वीरों ने राज किया उन वीरों में एक सिंह था, पृथ्वी जिनका नाम हुआ I शौर्य वीरता अद्भुत जिनकी तीर तलवार क्षत्रिय निशानी पृथ्वी रासो लिखी चन्द्र ने संयोगिता की प्रेम कहानी I गौरी था बर्बरीक आक्रान्ता सोलह
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