
ब्लॉग प्रेषक: | रुद्र प्रताप सिंह |
पद/पेशा: | जिला मिशन प्रबंधक-कृषि |
प्रेषण दिनांक: | 23-04-2025 |
उम्र: | 33 |
पता: | आजमगढ़, उत्तर प्रदेश |
मोबाइल नंबर: | +91 81xxxxxx42 |
घटते जीवांश से खेतों को खतरा।
जैसे कि कृषि विकास दर में स्थिरता की खबरें आ रहीं हैं। यह चिन्ता का विषय है। तमाम आधुनिक तकनीक व उर्वरकों के प्रयोग के बावजूद यह स्थिरता विज्ञान जगत को नये सिरे से सोचने के लिए बाध्य कर रही है। अभी तक हमारी नीतियां तेज गति से बढ़ती जनसंख्या को भोजन देने के लिए अनाज का उत्पादन बढ़ाने की रहीं है, जिसके लिए हमने अधिक से अधिक मात्रा में कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों का अन्धाधुन्ध प्रयोग करते रहे हैं, इसका तत्कालिक लाभ भी मिला है, आज हम अपने देश की जनसंख्या का पेट भरने के साथ अनाज के निर्यात करने की स्थिति में हैं। परन्तु इस अभियान के 30-40 वर्षों में ही हम कृषि विकास के उस बिन्दु पर पहुंच गये हैं, जहाँ से आगे नहीं जाया जा सकता है।
इस समस्या का अध्ययन करने पर कृषि वैज्ञानिकों को इस तथ्य का पता चला है कि जिसे अमृत समझ कर पीते चले आ रहे हैं वही अब जहर बन गया है। प्राचीन काल से यह हमारी अवधारणा रही है कि धरती मां होती है। मां कहने से जीवंतता का बोध होता है, भारतीय किसान धरती पर कुदाल चलाते समय जय धरती माता कहकर कुदाल चलाया करते थे, पर प्रकृति दोहन शोषण के दर्शन पर आधारित अभिनव विज्ञान ने उस आस्था, अवधारणा को छिन्न-भिन्न कर दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि अधिक से अधिक उत्पादन के लोभ में धरती को बीमार कर दिया। धरती का वह हिस्सा जिसमें हम अपनी इच्छा के अनुसार फसलों का उत्पादन करते हैं उसे ही खेत कहते हैं। खेत के निर्माण में प्राकृतिक रूप से सैकड़ो साल का समय लगता है, वर्षों का मानवीय श्रम उस धरती के टुकड़े को उपजाऊ खेत बनाता है। उपजाऊ खेत में वे सभी जैविक तत्व होते हैं जो जीवन के लिए आवश्यक होते हैं। शायद हमारे किसानों को उस जैविकता का प्रचीनकाल में ही आभास हो गया होगा, इसीलिए वे अपने खेतों को मां का दर्जा देते थे। आज हमारा वैज्ञानिक समुदाय भी इस तथ्य को स्वीकार चुका है। विज्ञान की वर्तमान विधियों से उपजाऊ मिट्टी का विश्लेषण करने पर यही सिद्ध हुआ है कि उसमें जीवनीय तत्व आवश्यक रूप से पाये जाते हैं अर्थात फसल की उत्पादकता को बनाये रखने के लिए खेतों में उक्त जीवनीय तत्वों को बनाये रखना जरूरी है। खेतों के जीवनीय तत्वों या जीवांश का तात्पर्य हजारों वर्षों से जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों के मरे हुए शरीर के घटक विखंडित होकर जमीन में मिलते रहते हैं, जिसे अनेक सूक्ष्म जीव अपनी जीवन क्रिया द्वारा खण्डित-विखण्डित-रूपान्तरित करते रहते हैं, यही जैव तत्व उस जमीन में उगने वाले पेड़-पौधों एवं फसलों के लिए जीवनदायी या उत्तरदायी होते हैं इस तथ्य का ज्ञान हमारे प्रचीन विज्ञानविदों को भी था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में यह उल्लेख है कि हम धरती से अन्न के रूप में जितना लेते हैं उतना देते भी रहना चाहिए। खेतों को उपजाऊ बनाये रखने के लिए उसमें मरे हुए जानवरों गाय, बैल, हिरन, भैस आदि की हड्डियाँ, मांस आदि डालते रहना चाहिए।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार उपजाऊ जमीन का जीवित तंत्र चार स्तरों में होता है। पहले स्तर खनिज में गंधक, लोहा, जस्ता, तांबा, कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज आदि के सूक्ष्म अंश होते हैं, दूसरे स्तर पर कार्बन डाई आक्साइड व निम्न स्तर पर ऑक्सीजन होता है, चौथे स्तर पर जैव तंत्र के रूप में अनेक प्रकार के जीवाणु, कवक, शैवाल प्रोटोजोआ, रोटीफर, नीमेटोड, आर्थोपोड, मोलस्क, ओलिगोटिक आदि होते हैं। कार्बनिक पदार्थ के रूप में अधिकतम कार्बोहाईड्रेड, लिग्नीन, वसा, प्रोटीन, एसिनोएसिड, एल्केन, टरपेनाईड, फेरोटिनाइड, रेजिन आदि पाये जाते हैं। यह अध्ययन उपजाऊ धरती को एक जीवित तंत्र सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। इस तंत्र को बनाये रखना कृषि ही नही जीवन जगत को बनाये रखना है, क्योंकि धरती के बंजर होने से भोजन आभाव में जीवन संभव नहीं है। बढ़ती जनसंख्या को भोजन उपलब्ध कराने के लिए हमने जो हरित क्रांति शुरू की उसमें नीतिगत खामी यह रही कि मात्र कृत्रिम रासायनिक खदों को विकल्प के रूप में देखा गया, उसके प्रयोग को विशेष रूप से बढ़ावा दिया गया, समय दृष्टि के आभाव में बिना किसानों को प्रशिक्षित किये ही कृत्रिम रासायनिक खादों को विकल्प के रूप में पेश करते हुए भारी मात्रा में झोंक दिया गया, इसका तात्कालिक लाभ भी मिला, उपज में वृद्धि हुई, पर तीसरे दशक के आते-आते यह विकास थम गया। उपजाऊ जमीन की जैविक संरचना ही बदल रही है। निर्जीव रसायनों, खनिजों की मात्रा बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त कीट व खरपतवार नाशक तीव्र रसायनों के प्रयोग से धरती को जीवित बनाये रखने वाले कारक, कार्बनिक पदार्थ, सूक्ष्म जीव-जन्तु आदि नष्ट हो रहे हैं। प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के अनुसार देश में प्रतिवर्ष क्षरण के कारण लगभग 25 लाख टन नाईट्रोजन, 25 लाख टन फास्फेट, 25 लाख टन पोटाश की बर्बादी होती है, यदि इस क्षरण को रोक लिया जाय तो हर साल लगभग 6 हजार करोड़ टन मिट्टी की उपजाऊ परत बच जायेगी, साथ ही लगभग 5.53 करोड़ टन नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश भी बचेगा। खेद यह है कि नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश का अधिक प्रयोग हो रहा है। इसके कारण अन्य तत्वों जैसे बोरान, क्लोरीन, गंधक, जस्ता, लोहा, कोबाल्ट आदि का अनुपात असंतुलित हो रहा है, जिससे जैवतंत्र नष्ट हो रहा है और धरती बंजरता की ओर बढ़ रही है। इस प्रकार घटते जीवांश से खेतों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। आज इस खतरे से निपटने के लिए तात्कालिक लाभ वाली कृषि नीति बदलनी होगी। किसानों को प्रशिक्षित करना होगा, भूमि परीक्षण को बड़ावा देना होगा। परीक्षण के परिणाम के अनुसार रासायनिक खादों की सही व संतुलित मात्रा में प्रयोग के लिए किसानों के लिए कार्यशालाएं आयोजित करनी होंगी। ऐसा नहीं है कि इस संबंध में कार्य नहीं हुआ है, हमारे वैज्ञानिकों ने राईजोबियम, एजोटोवैक्टर, एजोस्पिपरिलम, नीली-हरित शैवाल, अजोला, फास्फोबैक्टिरिया आदि जैविक खादों को खोजा है। जिनके प्रयोग से उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ भूमि की उर्वरकता भी भविष्य के लिए बनी रहेगी। इस स्थिति से निपटने के लिए सबसे आसान उपाय है फसलों की विविधता, प्राकृतिक तरीके से खेती आदि को अपनाकर बीमार धरती को बचाया जा सकता है।
~ रुद्र प्रताप सिंह
जिला मिशन प्रबंधक-कृषि
आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
श्रेणी:
— आपको यह ब्लॉग पोस्ट भी प्रेरक लग सकता है।
नए ब्लॉग पोस्ट
26-06-2025
डिप्रेशन में जा रहे हैं।
डिप्रेशन में जा रहे हैं। पांच क्लास में पढ़ते थे, उसी समय हम दिल दे चुके सनम का पोस्टर देखा, अजय देवगन हाथ में बंदूक लेके दांत चिहारले था, मुंह खूने खून था, हम समझे बड़ी मार धाड़ वाला सनिमा होगा। स्कूल से भाग कॉपी पैंट में लुका के तुरंत सिनेमा हॉल भागे।
Read More05-06-2025
सनातन धर्म में कर्म आधारित जन्म जीवन का अतीत भविष्य।
अक्सर गाँव में मैंने अपने बाल्य काल में देखा है अनुभव किया है वास्तविकता का अंवेषण किया है जिसके परिणाम मैंने पाया कि ज़ब कोई जातक (बच्चा ) जन्म लेता है तो सबसे पहले माता को उसके स्वर सुनने कि जिज्ञासा होती है नवजात ज़ब रुदन करता है तो माँ के साथ परिजन..
Read More05-06-2025
सनातन धर्म में धर्म कर्म के आधर पर अतीत एवं भविष्य काया कर्म का ज्ञान।
सनातन धर्म के मूल सिद्धांतो में धर्म क़ो जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण मानते हुए मान दंड एवं नियमों क़ो ख्याखित करते हुए स्पष्ट किया गया है जिसके अनुसार...
Read More17-05-2025
हाय हाय बिजली
हाय हाय बिजली।। सर ई का है ? दिखाई नहीं दे रहा है, ई पसीना है, ई पसीना घबराहट में नहीं निकला है, न ही किसी के डर से निकला है, फौलाद वाला शरबत पीने से भी नहीं निकला है, ई निकला है गर्मी से, और अगर बिजली रहती तो ई देह में ही सुख जाता लेकिन पंद्रह से बीस
Read More11-05-2025
आदर्श व्यक्तित्व के धनी नरसिंह बहादुर चंद।
युग मे समाज समय काल कि गति के अनुसार चलती रहती है पीछे मुड़ कर नहीं देखती है और नित्य निरंतर चलती जाती है साथ ही साथ अपने अतीत के प्रमाण प्रसंग परिणाम क़ो व्यख्या निष्कर्ष एवं प्रेरणा हेतु छोड़ती जाती...
Read More14-04-2025
ये जंगल तुम कितना खूबसूरत हो...
यह कविता जंगल की सुंदरता और प्रकृति के प्रति प्रेम को दर्शाती है। कवि जंगल की खूबसूरती से मंत्रमुग्ध है और उसके साथ एक हो जाना चाहता है। यह कविता प्रकृति के प्रति एक सुंदर श्रद्धांजलि है। यह हमें याद दिलाती है कि हमें प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना चाहि..
Read More