हाय हाय बिजली

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ब्लॉग प्रेषक: राजीव भारद्वाज
पद/पेशा: व्यंग्यकार
प्रेषण दिनांक: 17-05-2025
उम्र: 37
पता: गढ़वा झारखंड
मोबाइल नंबर: 9006726655

हाय हाय बिजली

  1. हाय हाय बिजली।।

सर ई का है ?  दिखाई नहीं दे रहा है, ई पसीना है, ई पसीना घबराहट में नहीं निकला है, न ही किसी के डर से निकला है, फौलाद वाला शरबत पीने से भी नहीं निकला है, ई निकला है गर्मी से, और अगर बिजली रहती तो ई देह में ही सुख जाता लेकिन पंद्रह से बीस लीटर निकल गया है चार दिन में। गमछा से इसको पोछते हैं और फिर इसी पसीना के गार के बाल्टी भरते हैं और उसी से नहाते हैं और ब्रश करने के बाद कुल्ली भी कर लेते हैं। रात भर टुकुर टुकुर जाग के बिजली का इंतजार करते रह गए, बिजली प्रेमिका की तरह धोखा दे गई, आई ही नहीं। दिन में ऑफिस जाकर जैसे ही कुर्सी पर बैठा की नींद आ गई, उसी समय बॉस आया और मुझे इस हाल में देख कर राज्य कार्यालय को मेरे सोने वाला वीडियो प्रेषित कर दिया। खैर, होइहें  वही जे राम रची राखा। 

हम तो इंतेज़ार कर रहे हैं उस हीरोइन की जिसने गाया था कि " बिजली भरी है मेरे अंग अंग में", काश वो मिल जाती तो उसमें प्लक खोंसकर कूलर चलाते और चैन से सोते। 

खैर, साला सबसे ज्यादा परेशानी ई है कि अंधेरा में पता ही नहीं चलता कि अपने घर में घुस रहे हैं कि पड़ोसी के। अब कल की ही बात है, ड्यूटी से घर पहुंचा ही था   कि बिजली गायब, तभी दोस्त का फोन आया, मैने उस से बोला कि जा रहा हूं सत्य की खोज में, उसने तुरंत बोला कि नमकीन का व्यवस्था मेरी तरफ से। फिर क्या था सत्य को खोजा और सत्यता प्राप्ति पश्चात, घर लौटने वाला ही था कि बिजली गायब, बस यहीं गड़बड़ हो गया और अंधेरे में साला अपने घर के बजाए पड़ोसी के घर में घुस गया। मस्त बिछावन पर सो गया। सुबह जब लतवास के घसीटते हुए निकाला जा रहा था तब असली सत्यता से परिचय हुआ। खैर कोई नया नहीं था मेरे लिए। 

 बिजली नहीं रहने के बाद मोहल्ले के सारे घर मंदिर लगते हैं और उस घर के लुंगी पहने पुरुष पुजारी। अपने अपने घर के बाहर जब वो सब बिजली विभाग को गाली देते हैं तो ऐसा लगता हैं मानो मंत्र का अनवरत उच्चारण हो रहा हो, जो समझ में तो नहीं आता है लेकिन अनुभूति जरूर होता है।

 वैसे आज कल मैं शाम को बिजली विभाग कार्यालय के सामने मुर्गा बन के हाथ में पत्थर लेकर धरणा पर बैठा रहता हूं। मजाल है कि बिजली बिल लेने वाला दिख जाए। वो ससुर सिर्फ बिजली बिल समय से नहीं भरने के लिए केस करने के लिए बैठता है। एक बार मिल जाए पत्थर पॉकेट में ही रखता हूं। 

साला इस देश में मिसाइल बेकार पड़ा है फटने का मौका भी मिला, लेकिन फटने नहीं दिया, अब समझ आया कि साला कभी कभी हाई वोल्टेज से बल्ब फूट रहे होते है तो मिसाइल काहे फोड़े सरकार। साला एयर क्राफ्ट रनवे पर लगा है और बल्ब उड़ रहा है, साला जिसको उड़ना था वो खड़ा है और जिसको अपनी जगह पर रहना था वो उड़ रहा है।

 घर में जांघिया पहन कर इधर उधर भटक रहे हैं, कुंभ के बाद मेहरारू को अलगे टेंशन बनल है की कहीं हम नागा साधु बनने की तैयारी में तो नहीं लग गए।

 घर के बगल में बिजली कॉलोनी है, चौबीस घंटा वहां बिजली रहती है, उस कॉलोनी में रहने वाले सब रसिया और ब्रिटेन के आए हुए लगते हैं, एकदम उजर, और आम पब्लिक उजर से अफ्रीकन में तब्दील होते जा रहे हैं।

 इस लगन में काश बिजली मिल जाती, पंडित जी से कुंडली बनवाकर बियाह ही कर लेते, फिर सात जन्म मजाल है कि छोड़ कर जाती।

 सुबह चार बजे सेविंग कर रहे थे अचानक बिजली चली गई। ऑफिस जाने के बाद पता चला कि आधा मूंछ साफ हो गया था, आधा बचल था। ऑफिस के सब स्टाफ के लिए हम कॉमेडियन बन गए हैं। 

अफसर, विधायक, मंत्री, सरकार  सब के यहां बड़का बडका जनरेटर है, वातानुकूलित मशीन है, गर्मी कब आई और गई इस से कोई मतलब नहीं है। एक सेवक है और दूसरा नौकर, और दोनों की बल्ले बल्ले। बस हम जनता हैं, जो मालिक होता है लोकतंत्र का, हम सिर्फ झाल बजाएंगे और ढोलक कुटेंगे। 

लगता है कुछ सरसरा के पार हुआ, सांप जैसा बुझाया। हम बेड पर और वो बेड के नीचे, काश लाइन आ जाता, कम से कम जिंदगी बच जाती। बाकी सब फर्स्ट क्लास है।

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