नेताओं की एक ही पुकार - हो हमारा विकसित बिहार।

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ब्लॉग प्रेषक: राजीव भारद्वाज
पद/पेशा: व्यंग्यकार
प्रेषण दिनांक: 27-10-2025
उम्र: 37
पता: गढ़वा झारखंड
मोबाइल नंबर: 9006726656

नेताओं की एक ही पुकार - हो हमारा विकसित बिहार।

बिहार चुनाव में वोटर और नेताओं की प्रजाति का मन जानने निकले थे हम। जी हां हम। एक तथाकथित व्यंग्यकार, जिसका गांव गर्दन का कुछ ठिकाना नहीं, अपने लिखते हैं, अपने पढ़ते हैं, और अपने ही, अपने लेख पर सकारात्मक टिप्पणी भी करते हैं। खैर अपनी प्रशंसा तो होते ही रहेगा, विषयवस्तु पर आते हैं।

पटना स्टेशन से निकल कर गर्दनीबाग चौराहा पर पहुंचे ही थे कि देखें कि एक नेताजी को फरका उपटल है, पूरा रोड पर चिकार चिकार के अपने ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को माई बहन के पीछे अद्भुत अलंकार लगाकर पूरे मनोवेग से चालीसा बक रहे थे। हम तुरंत आपन जूता खोले और मोजा जैसे ही उनके नाक पर रखें की तुरंत सीधा उठ कर खड़े हो गए। और वही चालीसा उसी अलंकार के साथ मुझे सुनाने लगें।  किसी तरह जान बचा कर भागा और पहुंचा बेली रोड विधायक आवास। वहां विधायक के तमाम प्रजातियों को एक साथ देखा। टिकट के लिए भौं भौं करते नेताजी में मुझे जर्मन शेफर्ड दिखा, ज्यादा उम्र होने पर जिनका टिकट कटा था वो बुलडॉग जैसे नजर आएं, जिंदाबाद जिंदाबाद कहने वाले नेता मुझे अपने भारतीय सड़े हुए कुत्तों की याद दिला दी, टिकट की आस में कुछ कार्यकर्ता लार चूआते हुए मुझे बुल टेरर नस्ल के दिखे। इन प्रजातियों का साक्षात्कार लेकर इनका विजन और इनके सेवा का स्तर जानने की उत्सुकता हुई।

एक से एक लौंडा डांस करने वाले नचनिया भी दिखी जो बिहार को न्यूयार्क बनाने की बात कर रहे थें। इतने में भगदड़ सा हो गया, एक ज़ोआयल भूआयल नेता जी एक लौंडा को कातो पीछे से धर लिए थे और संतरा बाहरे लटक गया था। अनुसंधान के बाद अनुशासन भंग करने के आरोप में इनका टिकट उस लौंडे को दे दिया गया। बस फिर क्या था, कार्यकर्ता सब राष्ट्रीय अध्यक्ष को मुर्दा बताने लगे थे, सारी की सारी विचारधारा को हमने यहीं गड़ाते हुए देखा।

यहां तो बात नहीं बनी, आगे बढ़ा और पहुंच गया डाक बंगला चौराहा, वहां एक नेताजी अपने माथा में टीके बाल जीतना कार्यकर्ता को बैठा कर आमरण अनशन कर रहे थे, जी हां वही जिनको गो गो करके अक्सर ट्रेन में लैट्रिन लग जाता है। उ बोल रहे थे कि टिकट मिलने पर ही हम उठेंगे नहीं  तो मेरी लाश उठेगी। हम वहां से तुरंत भागे कि कही ये मर वर गया तो मुझे इसको कंधा न देना पड़ जाए, और जीते जी किसी नेता को कंधा देकर हम अपने जीवन में अर्जित किए हुए पुण्य को गंवाना नहीं चाहते थे।

 आगे आकाशवाणी चौक के पास एक नेता जी 75 साल के उमर मे कमर हिला के नागिन डांस कर रहे थे, दो झटका के बाद बेचारा के कमर लचक गया, इन्हें फौरन अस्पताल में भर्ती करवाया गया, पूछने पर पता चला इनका इलाज सासाराम स्टेशन के पीछे वाला गली के हकीम, एम आलम से प्रति शुक्रवार को इलाज चलता था, जी सही समझे, मर्दानी ताकत और शीघ्रपतन रोग का।

 आगे गांधी मैदान में तेल पीआवाल लाठी रैली का आयोजन हो रहा था, इस रैली से भाषण दिया जा रहा था कि मनुष्य जाति में जन्म लेकर चारा कैसे खाएं, चारे में खली कितने मात्रा में मिलाएं और इसको पचाना कैसे है।  इस रैली में कट्टा, बंदूक, बम, चाकू, तलवार, गंडासा ले ले कर लोग एक समृद्ध बिहार की कामना ले कर आए थें।

 अभी अशोक राजपथ में पहुंचा ही था कि एक नेताजी दस लोगों के साथ बिहार में रोजगार दो, पलायन रोको, शिक्षा दो, स्वास्थ्य व्यवस्था दुरुस्त करो बोलते हुए चल रहे थे, पढ़े लिखे लगें, और इतिहास गवाह है बिहार पढ़े लिखों में अपना रुचि कम ही दिखाता है। बेचारे नेताजी के पैरों में छाले पड़े हुए थे, थोड़ा लंगड़ा रहे थे। कार्यकर्ताओं के आवाज में भी बहुत जोश नहीं था, शायद वो अन्न खाते होंगे इसलिए भी आवाज कामचलाउ ही निकल रहा था। 

खैर और आग बढ़े और जैसे ही पीएमसीएच के पास पहुंचे तो देखें कि एक युवा नेता के लोचन से अमृत की धार गिर रही थी और वो बोल रहे थे, असली पार्टी मेरा है, गांधी मैदान में जो हो रहा है वो जयचंदों की पार्टी है, उस से मेरा कोई संबंध नहीं है, मै भागवत गीता की कसम खाता हूं कि जीते जी उस पार्टी में कभी नहीं जाऊंगा। जन नायक तो आलू जी थे, फेलस्वी तो अनपढ़ है। 

इधर सांझी जी अपनी समधन से लेन देन की बात किए थे, विधायकी का टिकट देकर उन्हें पता नहीं समधन से क्या लेना था, बात बन गई होगी तभी तो पार्टी में इतने कार्यकर्ताओं के रहने के बाद इन्होंने टिकट का असली दावेदार अपनी समधन को समझा। समाजवाद का सबसे सशक्त उदाहरण इन्होंने ही दिया, एक टिकट समधन, एक टिकट पुतोहू, एक टिकट बेटा, एक टिकट भतीजा, एक टिकट भांजा और एक टिकट समधन के देवर की साली को.... । साला इतना रिश्तेदारी निभाना भी लोकतंत्र ही है। छूतिया सिर्फ जनता है।

खैर, मुझे क्या। मुझे तो बस बिहार की चिंता थी और यहां के नेताओं की विचारधारा और विकास करने की चाहत से अवगत होना था।

 इसी बीच हम आन पहुंचे हनुमान मंदिर, वहां स्टेशन कैंपस में एक नेताजी मथुरा वाले मंदिर पर कुछ कह रहे थे कि बगल के मदरसे से कुछ शांतिदूत आएं बोले, इस बात का क्या प्रमाण है कि वहाँ मंदिर था। विपक्षी नेता तैयारी से था तुरंत फोटो लहराने लगा। अब शांतिदूत थोड़ा दबा, उसको दबता देख भगवा वाला नेता फिर चिल्लाने लगा. तुम विधर्मी हो तुम्हें भगवान के बारे में बोलने का कोई हक नहीं है। हमने राम का मंदिर भी बनाने की शपथ खाई थी और बनाई, मथुरा का मंदिर भी बनाने की शपथ खाई है और बनाएँगे भी। शांतिदूतों के तरफ से आवाज़ आई, तुम मंदिर की केवल बात करते हो राम मंदिर का ताला तो हमारे हुक्मरानों ने खुलवाया था। फिर शोर, हो-हुल्लड़ शुरू हो गया। भगवा वाला नेता फिर बोला, चारा खाने वाले वाले और अन्य मुल्क के निवासी के कोख से जन्मे विधर्मी, धर्म विरोधी हो गए हैं।


हम एक कोना में टिक कर इनकी बातें सुन रहे थे, इनमें कौन सच कह रहा है, कौन झूठ पता ही नहीं लग रहा। तभी लगा हनुमान जी मेरे कान में बोल रहे हैं, ये नेतागिरी है भक्त, यहाँ मुद्दे उछाले जाते हैं, सच झूठ का फ़ैसला तो न्यायालय करता है, और वहाँ अगर मामला चला गया तो अगले कई युगों तक अटक जाएगा। दरअसल भक्त भारद्वाज ये दोनों ही सच बोल रहे हैं और दोनों ही झूठ बोल रहे हैं। यहां सब के सब नेता सिर्फ अपना सोचता है, अपने परिवार का सोचता है, यहां की पार्टी टिकट भी अपने आगे संबंधियों में वितरित करते हैं। जनता आज भी गांव में जब बीमार पड़ते हैं, और डॉक्टर उपलब्ध नहीं होते तो मेरी चालीसा से ही ठीक होने का प्रयास करते हैं। जो वोट के असली मालिक हैं न वो सड़क किनारे टेंट में जीवन बसर करते हैं जहां उनके छतों पर टायर रखा होता है ताकि तेज हवा में उनका छत न उड़ जाए। 

भक्त नेताओं की चड्डी धोना, उसकी झूठी तारीफ करना, उसके आगे पीछे चलना, उसे प्रातः वंदन करना भी पाप है, जब तक ऐसे लोग जिंदा रहेंगे दो रोटी तो मिल ही जाएगा लेकिन मरने के बाद वैतरणी पार करके जब मेरे लोक में आयेंगे इन्हें कढ़ाई में तला जाएगा। मैने अपने आंख में छहलाए आंसू को पोंछा और आंख बंद कर हनुमान जी को वंदन किया और आ गया स्टेशन पर, मुझे नौकरी के लिए अन्यत्र प्रदेश जो जाना था। 

स्टेशन पर छठ गीत 

" भुखली शरीरिया सजल शुभे मनवा,

पुरुबे लागल बड़ुवे सबके ध्यनवा, जोड़े जोड़े दउरा ऐ दीनानाथ घटवा पे तीवई चढ़ावेले हो,

जल बिच खड़ा होई दर्शन ला आसरा लगावेले हो" , 

सुन कर रोंगटा खड़ा हो गया और एक सुखद और विकसित बिहार की कामना के साथ साथ अपने प्रदेश में ही नौकरी की मांग मैने छठी माई से किया और बिहार को अलविदा कहा। जय बिहार।

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