| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | साहित्यकार |
| प्रेषण दिनांक: | 30-01-2025 |
| उम्र: | 37 |
| पता: | गढ़वा झारखंड |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
महाकुंभ - मोक्ष मिल गया।
महाकुंभ - मोक्ष मिला गया।
मुझे मोक्ष से ज्यादा जीवन की चिंता थी, तभी तो संगम के प्रवाहित जल में गिरे अमृत धारा में डुबकी लगाकर लंबी उम्र और पाप को प्रवाहित कर अतः शुद्धि करने की इच्छा जागृत हुई थी।
सौभाग्य भी क्या बना कि जीवन भर बक बक करने वाला मै यानी भारद्वाज, राजीव भारद्वाज मौनी अमावस्या का दिन चुना पवित्र जल में डुबकी लगाने को।
समस्या थी कि जाएं कैसे, लोगों ने सलाह दिया कि रेल सबसे आरामदायक माध्यम है। अकेले अकेले जाना थोड़ा अटपटा लगा इसलिए मित्रों को संगम स्नान का लाभ, देव असुर युद्ध वृतांत सुनाकर उत्प्रेरित करना शुरू किया लेकिन कोई भी प्रेरित नहीं हुआ। लेकिन जैसे ही पत्नी प्रताड़ना से मुक्ति और शंकर पार्वती संवाद में वर्णित पति पत्नी के सुखमय जीवन के वृतांत में कुंभ स्नान से वांछित फल की कथा कहना प्रारंभ किया, कई मित्रों ने संगम स्नान के लिए हामी भरी।
रात्रि में बारह बजे ट्रेन थी, आराम में पिट्ठू बैग में एक हल्दी से रंगायल बिअहुआ धोती रखा और एक रूपा का सैंडो गंजी और निकल पड़ा। स्टेशन पहुंचा, वहां करीब पांच हजार श्रृद्धालु का भीड़, साठ से ज्यादा उम्र वाले सत्तर प्रतिशत और बाकी के तीस में रेंगा, चेन्गा और हम जैसे। ट्रेन जहां से आ रही थी वहां से यहां पहुंचने में चालीस स्टेशन पड़ता था, हर जगह सवारी चढ़ रहा होगा, समझिए ट्रेन की क्या स्थिति होगी।
पूरा प्लेटफॉर्म भरा हुआ। लाल, पिअर, गुलाबी, करिया, हरा रंग के कपड़े में लोग इतरा रहे थे, और एक हम थे जो मन ही मन सोच रहे थे कि कहीं फैसला गलत तो नहीं हो गया, ससुरा दस हजार का भीड़ था। ट्रेन आई। चढ़ने में कोई दिक्कत नहीं हुआ, पीछे से पब्लिक ठेल के चढ़ा दिया, बैलेंस खाली इतना ही बनाना था कि कहीं ठेलात ठेलात दूसरा गेट से बाहर न निकल जाएं। लेकिन बैलेंस बना और गलियारे में आ गए। दाएं से पचास बाएं से बासठ, आगे से अस्सी और पीछे से अनगिनत। पीछे वाला से ही डर था लेकिन प्रभु माया देखिए कि एकदम फ्रिज हो गए, स्टैचू। न बाएं घूमने में बना न दाएं। न गिरने का डर, न लड़खड़ाने का। खड़े खड़े खाली लोगों का चरित्र दिमाग में डेवलप करना था। ई जनम में अब दोबारा मौका नहीं मिलेगा, हिन्दू का गौरव है जी महाकुंभ, योगी जी देखा दिए कि शासन कैसे किया जाता है।
दरवाजा बंद कर दीजिए , तनी फैल हो जाएगा तो दु चार आदमी नीचे पसर जाएं। बाथरूम में पच्चीस आदमी एक के ऊपर एक बैठे हैं, कह रहे हैं नरक के बाद स्वर्ग का मजा ही कुछ और है। देखिए भाई, पानी वानी ज्यादा मत पीजिएगा नहीं तो पैन्ट में ही करना पड़ेगा। सुनते सुनते हम खड़े खड़े ही सो गए, जिस प्रकार धक्का खा कर अंदर आए थे उसी प्रकार धक्का से ही बाहर आ गए। प्लेटफॉर्म में चींटी जैसे आदमी रेंग रहे थे। जैसे ही हम नीचे उतरे प्रयागराज में लगे ठेलाने। पीछे का धक्का और आगे आदमी का ओट, कुछ नहीं करना था, खाली बैलेंस बनाना था, बीस किलोमीटर कैसे चल गए पता ही नहीं चला। लोग कहता था कि दिक्कत है, साला इतना आराम तो आज तक चलने में कहीं नहीं मिला था हमको। भगवान की कृपा कहें या देशवासियों का अनुशासन समझ में नहीं आया। हर सौ मीटर पर लंगर की व्यवस्था, तरह तरह के पकवान, अलग अलग संस्कृति के लोग, कैटेगरी कैटेगरी के बाबा, बीस साल से नहीं नहाने वाले बाबा, तो कोई दिन में बीस बार नहाने वाले बाबा, कहीं बीस साल से हाथ उठाकर रखने वाले बाबा, कहीं अपने लिंग से पत्थर बांध कर बैठे थे बाबा, इधर कांटे को बिस्तर बनाकर सोए थे बाबा, तो कहीं चिलम फूंकते दिखे बाबा।
सड़कों का अदभुत जाल, बीसियों घाट, जहां लगातार लोग डुबकी लगा रहे थे। मनुष्यों का ऐसा मेला जो अब इस जन्म के बाद ही संभव है। लोग गाते, बजाते, हंसते खेलते चले जा रहे हैं इस द्वार जो मोक्ष का द्वार है, उस पवित्र धारा के मिलन की तरफ जो सभ्यताओं का मिलन है।
रात्रि प्रहर भ्रमण में मैने संतों की कुटिया देखी, गोबर के कंडे पर पकते चावल, बाजरे और गेहूं की रोटी की महक को और जीरा के छौंक से दाल के मदमस्त सुगंध को मैने आत्मसात किया।
संतों के भजन में मुझे मीरा दिखाई दी जिसने अपने गायन और भक्ति रस से नंदलाल को पा लिया था। मुझे संतों में कैलाश के शंकर दिखे। मुझे दिखें भूत, प्रेत, पिशाच का स्वरूप। एक अलग ही दुनिया, जिसका वर्णन कर के भी नहीं कर पाऊंगा। एक अनूठा संसार जहां सांसारिक जीवन और भक्ति का वो मिलन था जो फेविकोल के जोड़ से भी मजबूत था।
मैने देखा मोनालिसा की आंख, आईआईटी वाले मलंग बाबा।
कुछ बेहूदे, कबाड़ी, कुत्ते की प्रवृति वाले, चादरमोद, भाऊश्री, छपरी यूट्यूबर भी नजर आए जो बेहूदे प्रश्न से संतों की तंद्रा भंग कर रहे थे, ऊटपटांग सवाल के बाद कूटा भी रहे थे लेकिन बात वही थी कि कुत्ते की पूंछ.....।
बुजुर्गों की टोली में मैने मलंग देखा, प्रौढ़ों की टोली में उमंग, युवाओं की टोली में तरंग, नारियों के देखे हमने अलग अलग रंग।
जीवन में पहली बार मुझे पुलिस वाले अच्छे लगें, अपने दायित्व के प्रति सजग और कर्तव्य के प्रति ईमानदार। हमने देखी मानवता, सच कहुं तो हमने देख लिया सारा हिंदुस्तान।
खूब बढ़िया स्नान हुआ, अमृत की बौछार से फलीभूत संगम की धार में डुबकी लगाकर मैने तो अपने पाप धो लिए, वो पाप जो मेरा अंतर्मन जानता है कि मैने क्या किया था। आप भी जाइए क्योंकि इस से बढ़िया व्यवस्था आप भी अपने घर पर दो चार मेहमान के लिए नहीं कर सकते जितनी सुंदर व्यवस्था करोड़ों लोगों के लिए की गई है। बाकी आलोचक तो माता सीता तक को बदनाम करने से नहीं चुके। आने के लिए वहां से हर आधे घंटे पर ट्रेन की व्यवस्था थी जो मुगलसराय तक मिली। इसके बाद गंतव्य तक पहुंचने में कोई खास दिक्कत नहीं हुई। मैं भक्तिभाव से गया था और भक्त बिना परीक्षा के भगवान से मिल लें ये संभव नहीं। बाकी मै उन सभी ट्रेन में सीट आरक्षित करवाए हुए व्यक्तियों का आभारी रहूंगा कि वो श्रद्धालुओं को सीट पर बैठने दे रहे थे, गजब का सामंजस्य, ऐसा लग रहा था कि सब मुसाफिर ही हैं और मार्ग भी एक ही है, मोक्ष का मार्ग। जहां साथ मिलजुल कर पहुंचना है। धन्य हैं हम जो इस धरती पर जन्म लिया और गर्व है हमे की सनातन मेरा धर्म है। हमारा तो टैगलाइन ही है " बहुजन सुखाय बहुजन हिताय च"।
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