| ब्लॉग प्रेषक: | नीरज श्रीधर |
| पद/पेशा: | शिक्षक |
| प्रेषण दिनांक: | 10-08-2025 |
| उम्र: | 53 |
| पता: | गढ़वा, झारखंड |
| मोबाइल नंबर: | 9835782050 |
समर्पण (लघु नाटक)
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*समर्पण*
(लेखक व निर्देशक : नीरज श्रीधर 'स्वर्गीय')
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*प्रथम दृश्य*
(अंधेरे मंच पर मंच पर सूत्रधार का प्रवेश, जिसे गोल प्रकाश ने घेर रखा है )
सूत्रधार : चंदन है इस देश की माटी
(थोड़ा रुक के फिर से )
चंदन है इस देश की माटी
(फिर थोड़ा रुक के )
अरे मैं गा के रुक रहा हूँ ताकि आप सब भी पीछे से गाएँ।
पर आप सब हैं कि...
चलिए मेरे साथ गाइए
चंदन है इस देश की माटी
दर्शक : चंदन है इस देश की माटी
सूत्रधार : तपोभूमि हर ग्राम है
दर्शक : तपोभूमि हर ग्राम है
सूत्रधार : हर बाला देवी की प्रतिमा
बच्चा बच्चा राम है
दर्शक : हर बाला देवी की प्रतिमा
बच्चा बच्चा राम है...
सूत्रधार : भारत माता की
दर्शक : जय ।
सूत्रधार : आज स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मनाने आप सब यहॉं उपस्थित हैं। कितना सुखद परिवेश है।
परन्तु क्या आपको पता है कि आज से लगभग 167 साल पहले नारायण साव जी के साथ क्या हुआ था?
तो आइए , जानने के लिए चलते हैं वर्तमान झारखण्ड प्रदेश के गढ़वा जिला में स्थित रमकण्डा नामक पावन भूमि पर...
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*द्वितीय दृश्य*
(स्टेज की दायीं तरफ एक दुकान है , जिसमें कुछ अनाज की बोरियाँ , कुछ सरसो तेल के 15 लीटर वाले टीन के डब्बे हैं और कुछ छोटी टोकरियाँ)
(नारायण साव दुकान के सामानों पर साफ़ करने के लिहाज से कपड़ा मारते हुए गुनगुनाता है)
नारायण साव : सुन्दर सुभूमि भईया भारत के देसवा से
मोरो प्राण बसे हिम खोह रे बटोहिया...
(तभी मंच के बायीं ओर से एक नारायण के उम्र का ही ग्रामीण सिर पर गठरी लेकर सामने से निकलता है )
ग्रामीण : का हो साव जी, कोई खजाना मिल गईल का? बड़ा खुश देखात बाड़।
नारायण साव : तोहार सूरत कोनो खजाना से कम है का भईया?( हँसते हुए ) बस तोहरा देख के ही ख़ुशी में गा रहे हैं।
(दोनों हॅंसने लगते हैं और ग्रामीण चला जाता है।)
नारायण साव : सुन्दर सुभूमि भईया भारत के देसवा से
मोरो प्राण बसे हिम खोह रे बटोहिया,
मोरो प्राण...
(तीन लोग लाठी के साथ आते हैं )
लठैत : का रे बनिया!
नारायण साव : राम राम मालिक।
लठैत : तेल आ गया का रे?
नारायण साव : जी मालिक, तेल त आ गया है। लाइए, बर्तन दीजिए दे देते हैं। बर्तन कहाँ है ?
लठैत : ( हँसते हुए) अच्छा! बर्तन भी हम ही लाएँगे तो तुम्हारा बर्तन बुरा नहीं मान जाएगा? उठाओ रे, सब एक एक उठा लो।
(सभी लठैत एक-एक टीन तेल का उठाकर चलने लगते हैं।)
नारायण साव : (डरते हुए) मालिक पईसा?
लठैत : हम त एकदमे भूला गए। रुको बे। ऐसे ही चले जाते तो गाँव में हमार बेइज्जती ख़राब हो जाता। ई तो अच्छा हुआ बनिया खुदे बता दिया।
लठैत : (नारायण की तरफ इशारा कर लठैत से) देले आओ। केतना पैसा है?
लठैत : (नारायण साव को एक थप्पड़ मारते हुए) आउ चाहिए?
नारायण साव : (जमींदार की ओर देखकर)मालिक हम त तेल के पईसा बोले थे?
लठैत : (नारायण साव को जोर का चाँटा मारते हुए) हम से पैसा माँगता है? जानता है कि नहीं कि हम सरकार के आदमी हैं?
नारायण साव : मालिक , एकरे से हमर घर चलता है।
लठैत : लगता है पईसा के गर्मी कपार पर चढ़ गया है। उतार त तनी बढ़िया से।
(सब मिलकर नारायण साव को पीटकर बुरी तरह घायल कर देते हैं और दूकान से समान सहित सब पैसा लूट के चले जाते हैं।)
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*तृतीय दृश्य*
(नीलाम्बर व पीताम्बर एक साथ बैठे हुए।)
पीताम्बर : अंग्रेजवन के अत्याचार बढ़ते जा रहा है भईया।
नीलाम्बर : फिर कहीं कुछ हुआ का पीताम्बर?
पीताम्बर : रामगढ़ में भी अंगरेजी सरकार के ख़िलाफ़ लोगों में क्रोध भड़क रहा है। वहाँ के छावनियों में भी सब विद्रोह कर दिया है भईया।
नीलाम्बर : इधर भी तो अंग्रेजी सरकार के चमचा हद कर दिया है।
पीताम्बर : खबर मिली है कि चार दिन पहले नारायण काका को जमींदार के आदमियों ने बहुत परेशान किया है।
नीलाम्बर : का करें? मुसीबत एक रहे तब न !
अपने लोग ही जब देस को लूटने पर आ जाए तो बाहर वालन से लड़ना और मुस्किल हो जात है।
चंद रुपया खातिर अपना जमीर बेच कर अंग्रेजन का चमचा बन गया है जमींदार।
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चतुर्थ दृश्य
(प्रकाश के गोल घेरे में सूत्रधार का प्रवेश)
सूत्रधार : क्या थे ?
क्या हो गए?
और क्या होंगे अभी?
आओ विचारें मिलकर
समस्याएँ सभी।
(बोलते हुए प्रस्थान)
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पंचम दृश्य
(मंच के बायीं ओर से नीलाम्बर पीताम्बर का प्रवेश)
नीलाम्बर व पीताम्बर : जोहार काका!
(घायल नारायण साव कराहते हुए हाथ जोड़ता है।)
नीलाम्बर : ( नारायण साव के घाव को सहलाता हुआ) ई कइसे हुआ काका?
नारायण साव : का कहें गउआँ, ऊ ज़मींदार...(कहते कहते रोने लगते हैं)
नीलाम्बर : भितरियो चोट जादा है, अभी लगाते हैं हरदी चूना।
पीताम्बर : बहुत दरद हो रहा है का काका?
नारायण साव : (बिलखते हुए) देह के घाव त आज न त काल्ह भरीए जाएगा गउआँ। लेकिन आत्मा पर लागल घाव कइसे भरेगा गउआँ ?
(बिलखते हुए) अब ई दरद नखई सहात। एक त उ अंगरेज, आउ दोसर ओकर चमचा ज़मींदार के जुलुम।
पीताम्बर : धीरज रखिए काका , जल्दिए ई दरद के भी ईलाज हो जाएगा।
नारायण साव : अब केतना धीरज रखूँ गउआँ। देह के कौवनो रोआँ अइसन ना होई जे घवाहिल न होखे। अब आऊ मार खाएला कहाँ से देह ले आऊँ ?
नीलाम्बर : आपका दरद हम बूझ रहे हैं काका।
नारायण साव : कुछ करूँ गउआँ, कुछ करूँ...। अब राउअनिए पर आस बा।
पीताम्बर : करेला त हमन आजे ई सरकारवा के ईलाज कर देब, बस खाली कुँअर बाबू हिआँ से गोला बारूद आ जाए।
नारायण साव : काहे देर करत ही बाबू साहेब?
नीलाम्बर : देर उनका में नाही, देर हमरण में बा। बाबू साहेब के गोला बारूद त तैयार बा, लेकिन ओकरा लेवे ला कंडा से जे पैसा आवे वाला रहे ओह में देर होत बा।
पीताम्बर : (गुस्से में) एक बार कंडा से पैसा आ जाए त फिर ई राजवन के बताइब कि मार का होला।
नारायण साव : कंडा से काहे रामकंडा से काहे नाहीं ?
(नीलाम्बर पीताम्बर दोनों उसकी तरफ अचरज से देखते हैं)
नारायण साव : गउआँ, हमरा त न आगे नाथ न पीछे पगहा। ई पइसा का होई ? एक दिन मार के ओहनिए ले जइहें | एकरा से त बढ़िया ई पैसा रउअन के काम आ जाए।
नीलाम्बर : काका, बंदूक खरीदेला बा,खीरा-ककड़ी ना, बहुत पैसा...
नारायण साव : पईसा के चिंता छोड़ूँ। रउअन बंदूक मंगवावे के तइयारी करूँ।हम आपन सब सम्पत्ति धरती मईया के सेवा में समर्पित कर देब गउआँ।
(फिर नारायण किसी तरह उठकर दोनों को एक पैसों की थैली देता है, जिसे लेकर दोनों बहुत उत्साह में वहाँ से जाते हैं ।)
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*षष्ठ दृश्य*
(लाईट अब नीलाम्बर-पीताम्बर पर है।वे मंच पर थोड़ा घूमकर एक आदमी से गोला बारूद खरीदते हैं और उसे लेकर आगे बढ़ते हैं।)
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सप्तम दृश्य
(1857 कादशहरा)
(मंच पर हथियार सहित नीलाम्बर,पीताम्बर,नारायण साव,ग्रामीण सभी हैं।एक नगाड़ा रखा हुआ है।)
नीलाम्बर : आज दशहरा है।आज के दिन भगवान श्रीराम ने बुराई के प्रतीक रावण का अंत किया था।इसिलए आज हम फिरंगियों और आतताई ठकुराइयों के ख़िलाफ़ उलगुलान का ऐलान करते हैं।
(नीलाम्बर नगाड़ा बजाते हैं।)
नीलाम्बर : जय धरती मइया।
सभी : जय धरती मइया।
पीताम्बर : उलगुलान हो उलगुलान!
सभी : दुश्मन के हम लेंगे जान।
पीताम्बर : उलगुलान हो उलगुलान!
सभी : दुश्मन के हम ले लेंगे जान।
पीताम्बर : धरती मईया की
सभी : जय!
नीलाम्बर : सावधानी से सब चलो।
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अष्टम दृश्य
(सब चौकन्ना हो धीरे धीरे आगे बढ़ते हैं। सभी मोर्चा लेते हुए आगे जाते हैं।जा कर अंग्रेजो की छावनी ध्वस्त करते हैं। तभी एक अंग्रेज अधिकारी आता है।)
अंग्रेज अधिकारी : (नीलाम्बर और ग्रामीण को बंदूक दिखाते हुए) हैंड्स अप।
(दोनों रुक जाते हैं ।)
अंग्रेज अधिकारी : टूम्हारी ये मझाल,
नज़रे नीची कर के खरे रहो।
(तभी पीछे से पीताम्बर गुस्से में तलवार निकाल कर उसके कंधे पर हाथ रखते हैं और जैसे ही वो मुड़ता है उसके पेट में तलवार घुसाते हुए)
पीताम्बर : तू हमार नजर नीची करेगा?
(अंग्रेज तड़पने लगता है।)
(नीलाम्बर और उनके साथी
खुशी में सब सब गाना गाते हैं।)
उलगुलान हो उलगुलान,
फ़िरंगीयन के ले लेंगे जान,
उलगुलान हो उलगुलान...
(सभी का प्रस्थान)
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नवम दृश्य
(दूसरी ओर से डाल्टन आता है। सारी छावनी बिखरी और उस अंग्रेज की लाश को देख कर गुस्से में जोर से चिल्लाता है)
डाल्टन : ब्लडी इंडियंस!
(तभी जमींदार भी पीछे से आ ग्रेज के पास आ के कहता है)
लठैत : हम उन सब को पकड़वा सकते हैं मालिक,
अगर थोड़ी किरपा हो जाए तो...
डाल्टन : टुम्हे जो चाहिए वो मिलेघा। मुझे वो इंडियंस किसी भी हाल में छाईए।
जमींदार : हम जानत हैं मालिक, उ सब कवन रास्ता से भागे वाला है।
(इशारा से बताता है।)
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दशम दृश्य
(सूत्रधार का प्रवेश)
सूत्रधार :
जंगल के कटने का कोई रस्ता न होता
यदि कुल्हाड़ी में लकड़ी का दस्ता न होता
विदेशी हमारा क्या बिगाड़ पाते
गर कुछ हिन्दुस्तानियों का ज़मीर इतना सस्ता न होता।
(सूत्रधार का प्रस्थान)
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एकादश दृश्य
(मंच पर नीलाम्बर की टोली रणनीति बनाने में लगी है तभी नारायण साव का प्रवेश)
नारायण साव : भागूँ गउआँ,भागूँ, गोरा सरकार आवत बा।
(तभी गोलियाँ चलने की आवाज़ आती है। सभी इधर-उधर मोर्चा लेने लगते हैं। उसी क्रम में नारायण साव को गोली लग जाती है। नारायण साव नीलाम्बर की गोद में दम तोड़ते हुए)
नारायण साव : ई उलगुलान नई रुके के चाही गउआँ ।नई रुके के ......
नीलाम्बर*: नई रुकी काका, नई रुकी।
(नारायण साव जी के दम तोड़ते ही नीलाम्बर सहित सभी रोने लगते हैं।)
(मंच पर लाल प्रकाश में सभी मूर्तिवत)
(सूत्रधार का प्रवेश)
*सूत्रधार*
तन समर्पित मन समर्पित ,
रक्त का कण कण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती
तुझे कुछ और भी दूँ
तुझे कुछ और भी दूँ...
(रोते हुए धरती पर घुटने के बल बैठ जाता है)
*नेपथ्य से* - और इस तरह नारायण साव की साँसों की डोर टूटी लेकिन भारत माता को परतंत्रता से मुक्त कराने की आस न छूटी और न ही कोशिश।बेशक इस जंगे आज़ादी में नारायण साव का साथ छूट गया था, लेकिन उनकी सहायता से आया बारूद इसके बाद भी लम्बे समय तक अंग्रेजों के सीने छलनी कर उनके हौसलों को चकनाचूर करता रहा। और जिसकी गूंज ने आख़िरकार ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला ही डाली।
अमर बलिदानी नारायण साव ने जब स्वतंत्रता संग्राम रूपी यज्ञ में अपना सर्वस्व होम किया था, तब उनके मन में ये चाह नहीं होगी कि इसका उन्हें कभी कोई तमगा मिले।
लेकिन क्या हमारा ये कर्तव्य नहीं बनता कि हम झारखण्ड के भामाशाह रूपी बलिदानी नारायण साव जी को उचित राष्ट्रीय सम्मान दें।
श्रेणी:
— आपको यह ब्लॉग पोस्ट भी प्रेरक लग सकता है।
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