बदनाम आदमी पार्टी

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ब्लॉग प्रेषक: राजीव भारद्वाज
पद/पेशा: व्यंग्कार
प्रेषण दिनांक: 03-06-2024
उम्र: 37
पता: Garhwa, jharkhand
मोबाइल नंबर: 9006726655

बदनाम आदमी पार्टी

मैने अपने पूर्वजों के बारे में जाना तो पता चला आज तक मेरे खानदान में कोई राष्ट्र स्तर का नेता पैदा नहीं हुआ था। कारण सब सच बहुत बोलते थे। एक मैं ही कुलबोरन पैदा हो गया था अपने खानदान में। झूठ बोलने में मैं इतना माहिर था की वर्तमान वाले विधायक जी मुझे अपना दत्तक पुत्र मन ही मन मान लिया था। प्रारंभ ऐसा हुआ की मैं बचपन से हेरा फेरी में माहिर था, ई कोठी के धान ऊ कोठी में करना मेरी फितरत थी। विद्यालय में जब सुबह सुबह प्रार्थना होता तो सब बच्चे आंख बंद कर आराधना में लीन रहते और मैं सबकी जेबों से कलम निकालने में। जेब से मेरा लगाव दो चार वर्ष बाद मुझे शहर के टॉप क्लास के जेबकतरा में शामिल करवा दिया।  लेकिन मुझे आगे बढ़ना था, कुछ करना था, भविष्य में राष्ट्र मेरा इंतजार कर रहा था। धीरे धीरे मेरी जरुरत बढ़ती गई, फलस्वरूप अब रात के अंधेरों में चोरी, छिनतई मेरा पेशा हो गया। मेरी मेहनत और अच्छी कमाई देख कर मेरे घर वालों ने मेरी शादी करवा दी। अब जरूरत और बढ़ी, परिणाम स्वरूप मैने ट्रेन में डकैती प्रारंभ कर दी। मोटी रकम मिलती, सो आराम से तीन चार महीना घर चल जाता। बच्चे हुए, जरूरत और बढ़ी तो हमने अपने क्षेत्र के नेताजी से संबंध साधा। देखिए गुणों के मिलान से सिर्फ शादी ही नही दोस्त और मार्गदर्शक भी मिलते हैं। नेताजी को मुझमें अपनी जवानी दिखाई दी, उन्होंने जो मुझे प्रेम दिया, मत पूछिए। जिंदाबाद मुर्दाबाद बोलना सीखा हमने, रोना सीखा, हंसना सीखा। बाकी धूर्तता, झूठ, फरेब, चोरी, लंपटई का गुण तो मुझमें बचपन से ही था।

एक दिन मेरे मार्गदर्शक नेताजी टें बोल गए। नेताजी जब तक जिंदा थे, मैं उनका राजनीतिक वारिस था, जैसे ही मरे की उनका पगला बेटा उनका वारिस हो गया। मुझे गहरा आघात लगा, मुझे अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता सताने लगी। मैने अपनें मन को सांत्वना दिया और अपने पूर्वजों द्वारा संग्रहित चार बीघा जमीन का सौदा किया। दस लाख रुपए प्रारंभिक पूंजी के तौर पर अपने नए पार्टी का गठन किया। पार्टी का नामकरण हुआ - अखिल भारतीय बदनाम आदमी पार्टी। हमारे पार्टी में शहर में जाने माने असंसदीय लोग ने अपनी जगह बनाई, जिसमे हत्या के मुकदमे वालों को प्राथमिकता दी गई। चोर और जेबकतरों को महासचिव के पद से सुशोभित किया गया साथ ही सर्वगुण सम्पन्न खुद मैं पार्टी का अखिल भारतीय बदनाम आदमी पार्टी का अध्यक्ष बना। हमारी पार्टी का टैगलाइन था " स्वर्गवासी नेताओं से भावी स्वर्गवासी के बीच का सफर"।

 कुछ ही दिनों में बेरोजगार युवकों को एक मंच पर लाया गया। मंच से जब मैंने आह्वाहन किया की हमारी सरकार यदि बनती है तो हमारे कार्यकर्ताओं के मुकदमे वापस लिए जाएंगे और समाज में उन्हे जबरदस्ती प्रतिष्ठा दिलवाई जायेगी। मेरे हर कार्यकर्ता का अपना एक चार पहिए वाला निजी वाहन होगा, छेड़ छाड़ हेतु महान साहित्यकार मस्तराम की पुस्तकों की लाइब्रेरी में आजीवन मुफ्त सदस्यता दी जायेगी। साल में कार्यकर्ताओं के लिए अश्लील लौंडा नाच का आयोजन किया जाएगा। मतलब समाजवाद और समाजवादियों के विचार का पूर्णतः सम्मान किया जायेगा। वैसे भी आज कल राष्ट्रवादी और समाजवादी का अलग ही स्वैग है।

 मेरी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में अकेले प्रदेश के सभी सीटों से लड़ना सुनिश्चित किया। टिकट में वैसे अभ्यर्थी को प्राथमिकता दी गई, जिन्होंने पुलिस के डंडों का प्रहार हंस कर सहा था, भले पुलिस का डंडा टूट गया हो लेकिन पार्टी नही टूटी। आत्मबल, भुजबल से मजबूत अभ्यर्थी टिकट मिलने के बाद ऐसे चमक रहे थे जैसे पूर्णिमा का चांद। 

पार्टी अध्यक्ष यानी मैने सभी को स्पष्ट निर्देश दिया था की गरीब के घर में जाओ, खाना खाओ, हो सके तो माड़ भात और सूखल लाल मिचाई खाओ और उसका वीडियो बनाओ, नंग धड़ंग बुतरु सब के नाक साफ करो, गोदी में उठाओ और फोटो खिंचवा के सोशल मीडिया पर चिपकाओ। गरीब घर की पुतोहु के साथ मिलकर घर का बर्तन साफ करो, गांव के बुजुर्ग के साथ बैठ कर चिलम पिओ, बेरोजगार के साथ बैठकर तास खेलो। लोगों के परिवार का हिस्सा बनो, क्योंकि अगर जीत गए तो पांच साल वातानुकूलित वाहन और वातानुकूलित घर ही आपका बसेरा होगा। जनता मूर्ख ही नही मूढ़ भी है, वो जब चोर से ईमानदारी की बात सुनती है तो उसे अंगुलिमाल और बाल्मिकी समझती है।

 जनता कोई समस्या सुनाए तो भोकार पार पार के रोओ, जहां भी जाओ साष्टांग होकर प्रणाम करो, जब तक चार आदमी न उठाए तब तक चरण में ही पड़े रहो। जनता के बीच छवि ऐसा बनाओ की जनता सोचने पर विवश हो जाए की अब तक तुम कहां थे। अखंड कीर्तन करवाओ, मजलिस लगवाओ। जब इतना से भी काम न बने तो मरणोपरांत अपना देह दान का प्रपत्र बनवा के प्रचार प्रसार करो की मुझे अपने शरीर से भी प्रेम नही, प्रेम है तो सिर्फ जनता जनार्दन से। खून दान करो, हो सके तो अपना शरीर पूर्ण रूप से जनता के हवाले कर के बोलो, जो करना है कर लीजिए। चुनाव हर हाल में जीतना है।

 वोटिंग हुआ, परिणाम आया, मेरी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला। मैने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मेरे घनघोर समर्थक लोग मंत्री पद का शपथ लिए। मैने संध्या में प्रदेश की जनता को संबोधित किया - प्यारे प्रदेश वासियों जैसा की आपको पता है की पूर्व की जितनी भी सरकारें आई वो आपको छलने का काम किया, काम की सरकार आपने अब चुना है। हम आपको वो सब देंगे जिसकी आपको जरूरत है, बस कमीशन में बेइमानी मत कीजिएगा क्योंकि हम सब का पेशा पूर्व में क्या था आप सबों को पता है। पहाड़ बेचिए, बालू बेचिये, घर का गहना बेच दीजिए लेकिन कमीशन में कोई आना कानी नही। हां ईमानदारी और नैतिकता की बात हमारी सरकार में राष्ट्रद्रोह माना जायेगा, सरकार के प्रति धरना प्रदर्शन पर कड़ी धाराओं का प्रावधान होगा। प्रतिदिन भोर में चाय दुकान, पान गुमटी में सरकार का जय जयकार करना होगा, नहा धो कर सरकार का चालीसा पढ़ने के उपरांत ही अपने काम पर जाना होगा।  सरकार आपको मरने नही देगा, चावल फ्री रहेगा, पेट भरा रहेगा।

 जो थानेदार कभी कुत्ते की माफिक घसीट घसीट कर मुझे मारा करता था, उसे जब अपने वाहन का गेट खोलते देखता हूं तो साक्षात देवराज इंद्र की अनुभूति होती थी मुझे। जो बाबू और साहब मुझे अपने चेंबर में घुसने नही देते थे वो मेरे स्वागत में दिन भर धूप में खड़े रहते थे। सही कहा है किसी महापुरुष ने की "हर कुत्ते का दिन आता है" मेरा दिन आ गया था। अब मैं सरकार था, बाहुबली सरकार। जब फूलों से मेरा स्वागत होता था तो मेरा रोम रोम खिल उठता था। ये टेंडर, वो टेंडर, यहां सड़क वहां तालाब, यहां ढोभा वहां कुआं। कमीशन से घर भर गया। पचास करोड़ का अपने साथ साथ अपने मंत्रियों का भी घर बनवाया।  रिश्ते नातेदार सभी का दिन बहुर गया। यदि कोई आलोचना करता तो मेरा कार्यकर्ता सब झगड़ा करता। यदि कार्यकर्ता तीस साल से कम हो तो नाइक का जूता और मस्त शर्ट पैंट ही उसकी कीमत देता था मैं, यदि प्रौढ़ हो तो चार पांच लाख का काम। कार्यकर्ता को बढ़ाने में मैं यकीन नही रखता था क्योंकि यदि वो बढ़ गए तो जिंदाबाद मुर्दाबाद का नारा लगाने वाला कौन होगा।

  •  चार साल में मैने और मेरे कैबिनेट ने अकूत संपत्ति हासिल की, हजारों एकड़ जमीन, अरबों रुपए  और भी बहुत कुछ लेकिन एक दिन गरीब विरोधी केंद्र सरकार ने ED को मेरे पीछे लगा दिया क्योंकि मैं अपनी संपति से किसी भी केंद्र के मंत्री को कुछ नही दिया था। अब वो तंत्र जो मेरे पीछे पीछे दौड़ता था, वही तंत्र अब भी मेरे पीछे पीछे दौड़ रहा है, फर्क सिर्फ इतना था की पहले कुर्सी के डर के कारण और अब जेल में डालने के लिए, फलस्वरूप मुझे और मेरे कैबिनेट को आय से अधिक संपत्ति मामले में सजा हुई। आज बीस साल से मैं और मेरा कैबिनेट जेल में है। मुझे कुष्ठ रोग ने घेर कर काला से गोर बना दिया। मेरे शरीर को कीड़ों ने अपना घर बना लिया। मेरी संपति को सरकार ने जब्त कर लिया। मेरे वाहन का प्रयोग सरकार के अधिकारी कर रहे हैं। मैं बस मरने की दुआ कर रहा हूं, और अपने सत्ता वाले दिन की सुख सुविधा से कुछ समय के लिए प्रसन्नता प्राप्त कर लेता हूं, फिर शरीर से कीड़े निकलने वाले घाव पर नीम के पत्ते लगा रहा हूं। वैसे वेश्यालय में कपड़े तो दोनो उतारते हैं लेकिन महिला ही वैश्या कहलाती है। यहां तो मैं नंगा था। मेरी पार्टी का टैगलाइन भी था की स्वर्गवासी से भावी स्वर्गवासी का सफर, बाकी ईश्वर की मर्जी क्योंकि "होइहें वही जे राम रची राखा"।
  • नोट - ये मेरी कल्पना मात्र है, इस से सिर्फ मुझे फर्क पड़ेगा, यदि किसी और को भी लगे की ये उसकी कहानी है तो समझिए गजब का संयोग है।

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