| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | व्यंगकार |
| प्रेषण दिनांक: | 01-04-2024 |
| उम्र: | 36 |
| पता: | Garhwa, jharkhand |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
....... और बिजली फिर गायब।
अरे जगमोहना के रोको, बांस लेके, गरियाते पता नही किसको खोज रहा है, कहते हुए रामबृक्ष भईया हाथ में लोटा लेके निकल पड़े स्वच्छता अभियान का मां बहन करने। तभी जगमोहन मुझे दिखाई दिया, वो हमसे पूछा बिजली विभाग के बड़े अधिकारी का नाम बताओ आज बांस ठेलना है। मैने कहा लोकतंत्र में ऐसी बात शोभा नही देती। वो बोला शोभा तो वैसे भी नही देती। तुम खाली नाम बताओ नही तो तोरे ठेलेंगे। साला पहले तो किस्मत अंधेरे में था, अब पूरा घर और शहर अंधेरे में हो गया। सरकार बोलता है की जो मर्जी कर लो, टावर खड़ा होने में टाइम लगेगा, अब अंधेरे में कोई क्या करेगा, लेकिन फिर भी हम हिंदुस्तानी लोग हार नहीं माने, और खुद मैं, अंधेरे का सदुपयोग करके पांच बच्चे का लीगल बाप बना, इलीगल का तो कोई गिनती ही नही। मैने कहा आंधी तो प्रकृति ने दिया, गुस्सा थूक दो, तुरंत उसने मेरे मुंह पर थूक दिया।
गुस्से में जगमोहन बोला - एक तो वोल्टेज लो रहता है और कभी कभी इतना आ जाता है की मेहरारू के दिमाग जैसा छोटा छोटा बल्ब फटाक फटाक फूटता है, उसका आवाज सुनके बच्चा सब सोचता है की गुब्बारा फूटा है और हैप्पी बर्थडे गाने लगता है, और मुझे भी लगता है अब केक मिलेगा लेकिन .....!
अभी दो महीने पहले कहा गया की दो महीने में बिजली लगातार मिलेगी, अब कल से कहा जा रहा है की दो महीने के बाद बिजली मिलेगी। अब बताइए बिजली न हुआ टेंस का प्रकार हो गया। पास्ट, पर्जेंट और फ्यूचर। और इसी टेंस के चक्कर में हम दस साल से मैट्रिक के परीक्षा में फेल हो रहे हैं। तुम सिर्फ अधिकारी का नाम बताओ आज बांस ठेलेंगे तभी नींद आएगा।
अगला महीना, अगला महीना कहता है, साल काहे नहीं बताता है की किस ईसवी में ठीक हो जायेगा। हम लिख कर दे देंगे की प्रलय आने तक बिजली व्यवस्था ठीक नही होगा, क्योंकि उसके बाद कलयुग का अंत फिर सतयुग। और सतयुग में बिजली का क्या काम।
बियाह में हमरा वाशिंग मशीन, जूसर और ब्रेड टोस्टर मिला था। पहले दिन मेरा कपड़ा वाशिंग मशीन में गया, और कपड़ा जाते ही बिजली चली गई, आज तक वो कपड़ा उसी में है। टोस्टर में ब्रेड रखा था की बिजली इतनी तेज आई की टोस्टर से ब्रेड उड़ कर बगल के गुप्ता जी की गोद में जा गिरा, बेचारे ऐसी जगह पर जले की आज तक अंडरवियर में रहते हैं। जूसर में फल गया ही था की आज भी फल अपने आधे रस को उसी में समेट कर सिकुड़ा बैठा है।
रात भर अंधेरा में मेहरारू से लुका छुपी खेलते रहते हैं। अंधेरा में वो उधर से कहती है कहां हो, मैं कहता हूं यहां हूं, कहां और यहां में सारा रात कट जाता है।
सब काम धंधा छोड़ के दिन भर ढिबरी में तेल भरता रहता हूं। नाम बताओ उस नामुराद का जो बिजली देने का बात कहता है, बांस ठेल के रहेंगे। और हां अकेले नहीं ठेलेंगे तुम भी साथ में रहोगे। मैं बेचारा क्या कहूं, मैने फिर समझाने का प्रयास किया की कहीं टावर गिर गया होगा, टावर खड़ा करने में वक्त लगता है। जगमोहन फिर भड़क गया । वो बोला तब तो उसे एम आलम ही ठीक कर सकते हैं क्योंकि बार बार अचानक गिरे हुए टावर को खड़ा करने का अचूक दवाई उसके पास होता है। मैं उसके विषय से विषयांतर होने के बाद चुप रहने में ही अपनी भलाई समझा और सरपट दौड़ के अपने घर के अंदर घुसा और दरवाजा बंद करके मच्छर से अपने आप को डसवा रहा हूं। बिजली तो आने से रही।
लेख में प्रयोग किए गए नाम और घटना पूर्णतः काल्पनिक है। सच से इसका कोई लेना देना नही है क्योंकि बिजली हम लोग को निर्बाध रूप से मिल रही है, यदि नाम और घटना मिलता है तो ये मात्र एक संयोग ही होगा।
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