| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | व्यंगकार |
| प्रेषण दिनांक: | 01-04-2024 |
| उम्र: | 36 |
| पता: | Garhwa, Jharkhand |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
रामभरोसे राम।
रामभरोसे को अपने राम पर पूरा भरोसा था, तभी तो रिटायरमेंट के पहले चल बसे और राम को अनुकम्पा का लाभ मिला। मतलब घर में एक नौकरी फिर से सुरक्षित। अपने पिता के सभी गुणों को अपने में आत्मसात किये राम, मधुर वाणी के स्वामी थे। रामभरोसे वैसे तो एक सरकारी कार्यालय में कलर्क थें, लेकिन मरने से पहले चार कटठा में अपना मकान बनवाये थें, एकदम टाईल्स मार्बल लगाकर। जीते जी उन्होने स्वर्ग की अनुभूति इस मृत्युलोक में लिया था। साहब कोई भी आयें, प्रिय तो रामभरोसे ही रखते थे। सुबह दो घण्टे पूजा, संध्या पूजन और आरती इनका नित्य का कर्म था। गीता का पाठ नियमित करते थें और आत्मसात भी। प्रतिदिन सुबह उठकर वो "हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्ए जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्। तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयरू॥" अर्थात यदि तुम युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख पा जाओगे इसलिए उठो हे कौन्तेयए और निश्चय करके युद्ध करो। बस युद्व का निर्धारण उन्होने अपने अनुसार किया था। चेहरे पर मुस्कान, बर्ताव में नरमी, हर प्रकार के कार्य में तत्पर। पहली मुलाकात में वो किसी को भी भगवान का रूप लगते थें। रूपया पैसा को कभी हाथ भी नहीं लगाते थें, अब कोई जबरदस्ती पाॅकेट में डाल दे तो उसका निरादर करना उनके लिए महापाप था। अपने साहब के अत्यंत प्रिय थें रामभरोसे, इतिहास गवाह है यदि अत्यंत प्रिय नामक जीव इस दुनिया में नहीं होते तो रावण को कभी मोक्ष नहीं मिलता। मंथरा जैसी दासी जो कैकयी की अत्यंत प्रिय थी, उसके बहकावे पर ही राजा दशरथ ने राम को वनवास दिया था। सोचिये यदि राम का वनवास न हुआ होता तो क्या रावण को मोक्ष मिलता। रामभरोसे भी अपने कार्यकाल में कई साहब को मोक्ष प्रदान किये थे। कुछ साहब तो आज जेल में गीता का प्रवर्चन कर रहे हैं, और कुछ साहब डायरेक्ट भगवान के चरणों में सुमंगली गा रहे हैं। मुॅह में पान रख कर जब वो जुगाली करते तो सब समझ जाते की माया को उनके हवाले कर के माया से पूर्णतः दूर हो जाना है। माया अर्थात धन, और धन ही सब दुखों का कारण है। दुख निवारण की अद्भूद कला से आज कलर्क होते हुए भी समाज के बुद्विजीवियों में उनका नाम होता था। समाज भी कभी गरीब को बुद्विजीवी समझने की भूल नहीं करता, क्योंकि धन ने बुद्वि को मात दे दिया है। यदि आप धनवान हैं, आपके पास चार पहिए वाहन है तो समाज में आप एक अलग ही पहचान रखते हैं। खैर कभी दिल दुखाकर रामभरोसे ने पैसा नहीं लिया था, क्योंकि जो भी उनके पाॅकेट में पैसा रखता वो अपनी निष्ठा से रखता। और निष्ठा से तो भगवान भी हार जाते हैं। इस कलयुग में भगवान को भी रामभरोसे जैसा भक्त ही प्रिय होता है। यदि प्रिय नहीं होता तो बिना भोगे, बिना किड़ा लगे रामभरोसे बस एक हार्ट अटैक से मर जाते ! और तो और लाखों बेरोजगारों के रहते एक झटके में उनके पुत्र को नौकरी मिल जाना, भक्त और भगवान के रिश्ते को समझने के लिए काफी है। रामभरोसे से भरोसा कट कर अलग हुआ और राम आज अपने पिता की विरासत को संभाल रहे हैं। राम, बस राम राम वाले राम होकर रह गये लेकिन मर्यादा पुरूषोतम नहीं बन सके। स्वभाव से गाय हैं, माफ किजियेगा गाय तो मादा होती है, पुरूषों को सीधा साधा होने पर यदि बैल लिखा जाता तो फिर अर्थ का अनर्थ हो जाता। वैसे वो बैल ही है, काम काज के प्रति कोई गहरी रूची उसे नहीं है। पढ़़ने लिखने में कमजोर है, क्योंकि 35 बसंत उसने देख लिया था, अगर रामभरोसे समय से इस दुनिया से नहीं उठतें तो राम बैल जैसा ही घर का चारा खाकर अपनी जिंदगी व्यतित करता। लेकिन हमें भूलना नहीं चालिए कि एक गुंगी गुड़िया भी कमाल कर सकती है, पशुपालन करने वाला चारा खा सकता है तो बैल भी चतुर लोमड़ी बन सकता है। नियत समय से एक घंटा विलंब से पहुॅचना मतलब अपने आप को साबित करना भी होता है, यदि कार्यालय समय से आ जाये तो इंतजार करने वाले को मिलने का मजा नहीं मिलता। और आज के समय यदि आपको कोई मजा प्रदान करे तो समझिये उसमे भगवान का तथास्तु छुपा होता है। साहब के आते ही राम कर्ण में परिवर्तित हो जाते और अपने दुर्योधनरूपी साहब को हस्तीनापुर और पांडव की कमजोरी से अवगत कराते हैं, हर युग में दुर्योधन, पांडवों को निचोड़ना ही अपना कर्तव्य समझते हैं। जिस दिन से सरकार ने फैसला किया कि सरकार आपके द्वारा कार्यक्रम चलायेगी उसी दिन से कर्ण रूपी राम ने हर गाॅव में शकुनी को पहले भेजा और दुर्योधन के फरमान से अवगत कराकर अपनी स्वामी भक्ति का परिचय दिया। साहब भी बेचारे क्या करें। दुनिया गोल है। इसका सटिक उदाहरण ये है। साहब जनता से वसूल करते हैं, बड़े साहब साहब से वसूल करते हैं, बड़े साहब से मंत्री जी वसूल करते हैं और मंत्री जी से वोट के नाम पर जनता वसूल करती है। मतलब माया एक जगह के लिए टिकाउ नहीं है। फिर शिकायत किस से और क्यों। प्रकृति के नियम और डार्विन के सिंद्वांत पर पूरा सिस्टम काम करता है। जिसे मिल गया वो बेईमान जिसे नहीं मिला वो ईमानदार। वैसे भी ईमानदार रोटी खाते हैं और बेईमान इंसान। इस बार राम जी को सर्वक्षेष्ठ कर्मी के रूप में गणतंत्र दिवस के अवसर पर सम्मानित किया गया। तंत्र को जिस गण ने उसके अनुरूप चलाया वो सर्वक्षेष्ठ तो होगा ही। जनता को निचोड़ कर गारने में जो मजा राम बाबू को मिलता था, उसी का प्रतिफल था, सम्मानित होना। सादा जीवन उच्च विचार वाला गुण उन्हे अपने पिता रामभरोसे से मिली थी। आदर्श तो राम बाबू, गाॅधी जी को मानते थें लेकिन सकारी कार्यालय में एक घोती पहन कर रहना, सरकार के मार्यादा को चूर चूर करने जैसा था। गौ सेवा भी राम बाबू के जीवन के उद्देश्यों में एक था, उनका मानना था कि गौ सेवा से पाप कटता है, लेकिन रामबाबू की अंतरात्मा ने कभी उन्हे पापी नहीं समझाा। वो तो एक सेवक थें, जनता के सेवक। बाकी सब फर्स्ट क्लास है।
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