| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | व्यंगकार |
| प्रेषण दिनांक: | 28-03-2024 |
| उम्र: | 36 |
| पता: | Garhwa jharkhand |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
दिव्य निपटान स्थल - राष्ट्र चिंतन हो कर रहेगा।
दिव्य निपटान स्थल - राष्ट्र चिंतन हो कर रहेगा।
एक सर्वे के अनुसार छिहत्तर प्रतिशत भारतीय कब्ज के शिकार हैं, ये सर्वे भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध अभिनेता ने अपने कार्यक्रम दस का दम में प्रदर्शित किया था एक प्रश्न के रूप में। सरकार आती गई, जाती गई लेकिन कब्ज एक बार आई फिर शरीर में घर बनाके बस गई।
भारत को आजाद हुए साठ साल बीत जाने के बाद एक सरकार आई और कब्ज के दर्द को समझा, फलस्वरूप दिव्य निपटान स्थल अर्थात शौचालय को घर घर पंहुचाने की क्रांति आई।
बैरिया बीघा में सार्वजनिक शौचालय आने तक गांव के सभी जन सार्वजनिक स्थल पर ही शौच त्याग किया करते थे। मसलन गांव का प्रवेश द्वार वाला सड़क ये आभास करा देता था की इसके आगे जरूर मानव बस्ती होगा। मिट्टी के साथ साथ संडास की महक भारतीय गांव के माहौल को बताने में सक्षम था। जनाना फुलवारी में, इस कार्य का निपटान करती थी और मर्दाना सड़क और रेल की पटरी पर।
गांव के लइकन सब गोलबंद होके आपन आपन लोटा बगल में रख कर ठीक उसी प्रकार निपटान करते जिस प्रकार सामूहिक भोज में भोजन ग्रहण करते। समरसता और एकता का ये उदाहरण बहुत कम देखने को मिलता है जहां ग्रहण और त्याग में एक ही वातावरण का निर्माण मिलता हो।
टनटन बाबू इसी मिट्टी में अवतार लेने वाले युगपुरुष थे, हगन के नाम से टनटन बाबू पूरे जवार में कुख्यात थे, वैसे तो दिशा चार प्रकार का होता है लेकिन टनटन बाबू दिन भर कहीं न कहीं दिसा फिरते मिल जाते। टन टन बाबू एक बार तो उसेन बोल्ट के दौड़ने का रिकॉर्ड भी तोड़े थे, हुआ ये था की गांव के मंगरू के मेहरारू जोगिनिया के साथ मंगरूए के घर में प्यार प्यार खेल रहे थे की तभी मंगरू घरे पहुंच गया, फिर क्या था आठ सेकंड में सौ मीटर दौड़ के गांव के मुहाना तक पहुंच के आपन जान बचाया था, अगर पेपर में निकलता तो उसेन बोल्ट दु नंबर पर आ जाता। एक बार तो हंसिनी चाची के बोल दिया की हमर भैसिया भी चार गो बच्चा के दूध पिलाने में लजा जाती है आप कैसे छौ गो बाल बच्चा को पिला दी भौजी।
रेल का पटरी हो या गेहूं का खेत सभी जगह पूरी तन्मयता से शौच त्यागा करते थे और उसी दौरान अपने सोच को भी प्रबल करते थे टनटन बाबू।
प्रधानमंत्री जो ने जब से घोषणा किया की अब हर घर में शौचालय बनेगा तब से गांव में दुख और सुख का भाव एक साथ अलग अलग चेहरों पर आया।
चामू कहार की बेटी का तो रो रो कर बुरा हाल था की कैसे अब वो संध्या बेला में जोखन से मिलेगी, करेज़ा छछन छछन के रह जा रहा था।
सरजू भी सोच रहा था की अब रात के अपन ट्रैक्टर के लाइट को अपर डिपर कैसे करेगा, पहले तो सांझ होते जब सड़क किनारे महिलाएं शौच को बैठती थी तो ट्रैक्टर के लाइट देख कर खड़ा हो जाती थी, अब शायद ही ये सुनहरा पल सरजू के जीवन में आए।
लेकिन विकास तो हो कर ही माना, हर घर शौचालय बना और बाहर शौच त्यागने वालों पर जुर्माना का प्रावधान किया गया। लेकिन खुला वातावरण में छोटे छोटे दूब घांस की गुदगुदी, अब तसरीफ को मिलने से रहा। लोटा में शौच के स्थान का मिट्टी डाल कर मलने वाला असीम सुख पर प्रधानमंत्री जी ने ग्रहण लगा दिया। लेकिन बिनोद तो हर गांव में है जो बाहर ही हगेगा क्योंकि बंद में त्याग, शास्त्र के खिलाफ भी है क्योंकि जहां पवित्रता है वहां गंदगी बिनोद को कतई पसंद नहीं। और बिनोद प्रकृति के आहार जाल को प्रभावित करने की गुस्ताखी भी तो नहीं कर सकता। उसे सुअरों पर दया आ रहा था, लेकिन विरोध करने पर कहीं जेल न हो जाए ये सोच कर बेचारा चुप रहना ही मुनासिब समझा।
अब गांव में शौचालय बन जाने से गांव की इज्जत पूरी तरह सुरक्षित था। अब टनटन शौचालय जाने से पहले मोबाइल का बैटरी चेक करता था, पूर्व के जमाने में जिस प्रकार बिना अखबार देखे सभ्रांत घर के लोग शौच त्याग नही कर पाते थे, आज कल मोबाइल ने अखबार का स्थान ले लिया। अब जब तक गोड़ के नस तड़ तड़ाकर जवाब न दे दे तब तक मोबाइल का समुचित उपयोग लोग शौचालय में करने लगे हैं। और अगर शौचालय पूरी तरह आधुनिक हो तो एकाध नींद लेने में भी कोई हर्ज नहीं। कब्जधारी भी अब चौड़ा छाती करके बोलता है की एम आलम का दवाई काम कर गया, क्योंकि बंद में उनके समय का आकलन लोग कर नही पाते हैं। और बिनोद का शौचालय गाय के गोइठा/ चिपरी से भरा पड़ा है क्योंकि लोकतंत्र वाले इस देश में बिनोद को हगने की आजादी है और फिर देश भी तो अपना है। पहले गोरे और अब काले अंग्रेजों का आदेश हर दौर में बिनोद ने नही माना था और माना है। और टनटन जिसे शुरू से ही एकांत और बंद जगह पसंद था वो इस बार ४०० पार का नारा लगाकर अपनी खुशी का इजहार कर रहा है।
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