| ब्लॉग प्रेषक: | शमा परवीन |
| पद/पेशा: | लेखिका |
| प्रेषण दिनांक: | 18-10-2023 |
| उम्र: | ** |
| पता: | BAHRAICH UTTAR PRADESH |
| मोबाइल नंबर: | *** |
घड़ी
*बालकहानी- घड़ी*
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आज स्कूल जाते वक़्त चिन्टू को एक घड़ी सड़क पर मिली थी। चिन्टू ने घर आकर माँ को घड़ी दिखाते हुए कहा-, "माँ! देखो, कितनी प्यारी घड़ी है।"
माँ ने कहा कि-, "घड़ी! कैसी घड़ी? देखूँ तो जरा! कैसी घड़ी है?" माँ घड़ी देखती है और फिर कहती है-, "डिब्बे में हैं। सुन्दर लग रही है। मेरा सपना था कि ऐसी घड़ी पहनने का, पर तेरे पिताजी की मजदूरी से घर-खर्च ही बहुत मुश्किल से चलता है।"
मैंने कहा-, "माँ! अब ये घड़ी आप पहन लीजिये और सपना साकार कर लीजिये।"
"नहीं बेटा! तूने ही तो बताया था स्कूल में अध्यापिका बताती है कि अमानत में खयानत नहीं करनी चाहिए। ये जिसकी है, उसे ही देना है। दूसरों का सामान हम नहीं ले सकते। हम गरीब हैं, पर गलीज नहीं।" माँ ने आगे कहा-, "जब तू पढ़-लिखकर बाबू बन जायेगा, तब तू हू-ब-हू ऐसी ही घड़ी लाना। तब मैं गर्व से पहनूँगी। पर चिन्टू बेटा! तू ये बता इस घड़ी को घर क्यों ले आया?
"तब मैं क्या करता माँ! सड़क पर पड़ी रहने देता क्या? मैंने आस-पास देखा था। कोई व्यक्ति नहीं दिखा, तो मैं किसे दे देता?
स्कूल को देर हो रही थी। मैं घड़ी लेकर स्कूल चला गया। अब स्कूल की छुट्टी हुई, तो मैं आपको लाकर दिखा रहा हूँ। अब आप ही बताओ, मैं क्या करूँ इस घड़ी का? मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा है। ये घड़ी डिब्बे में है। इससे पता चलता है कि घड़ी नयी है।" चिन्टू ने कहा।
"बेटा! तू हाथ-मुँह धोकर कुछ खा ले, जब-तक मैं पता करके आती हूँ। पड़ोस में आज एक जगह विवाह है। हो सकता है, कोई गिफ्ट लाया हो। गिर गया हो। क्योंकि सभी लोग इस वक़्त बाज़ार आ जा रहे हैं। मैं खुद ही अभी बाज़ार से आयी हूँ। गाँव की बिटिया का विवाह है। कुछ तो देना ही पड़ेगा।" माँ ने बताया।
"हाँ, माँ! होने को तो कुछ भी हो सकता है। पर माँ! आप जल्दी आना।"
बाहर जाते ही चिन्टू की माँ को एक व्यक्ति दुःखी दिखाई दिया। दुःख का कारण पूछने पर पता चला कि कल रात वह व्यक्ति बाज़ार गया था। वापस आते वक़्त सामान से एक डिब्बा गिर गया। उसमें घड़ी थी, जो उसे विवाह में उपहार में देना था।
चिन्टू की माँ बिना देरी किए घड़ी वापस करते हुए सारी बात बताकर घर वापस खुशी-खुशी आ गयी।
शिक्षा-
हमें किसी की मिली हुई चीज को पता लगाकर उसे वापस कर देना चाहिए।
शमा परवीन
बहराइच (उ०प्र०)
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