
ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
पद/पेशा: | व्यंगकार |
प्रेषण दिनांक: | 06-07-2023 |
उम्र: | 35 |
पता: | Garhwa, jharkhand |
मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
जन जन के सेवक।
मुख्यमंत्री जी ने आदेश दिया था, की सभी मंत्री एक महीना गांव में रहेंगे, ताकि जनता की समस्यायों को जमीनी स्तर से जानने का अवसर प्रदान हो सके। सरकार का फरमान पर, सब मंत्री लोग तुरंत एक्टिव हो गए। लेकिन सरकार ने शर्त ये लगाई थी की अपने विधानसभा में कोई भी मंत्री नही रहेंगे, तथा एक आम जनता के रूप में सुदूर गांव में वास करेंगे, रूप बदल कर रहेंगे और यदि पकड़े गए की ये सरकार के मंत्री हैं तो उनसे मंत्रालय छीन लिया जायेगा। ये आदेश पूर्णतः गोपनीय था।
सौभाग्य से मैं भी गांव में रहता हूं और वो भी सुदूर। सुबह सुबह पीतल के लोटा लेकर भीखन बीघा के चरमुहानी वाला खेत में दिसा करने चल पड़ा मैं। गांव के प्रवेश द्वार पर एक नाटा किस्म का, बेंग जैसा नाक वाला, शकुनी जैसा कुटिल, और अदरक के शरीर जैसा महामानव को देखा, साला देखते ही दिसा सुख गया। एक अंजान चेहरा, ऊपर से शुंभ जैसी काया। पहले तो हम सोचे की लगता है हम मर गए और यमराज आया है हमको लेने। हमरा तंद्रा उस वक्त टूटा जब वो बोला की यही है लोचन बीघा। हम घबरा कर बोले -के ह! तोरा केकरा हीं जायला हव? ऊ बोलिस की मुसाफिर हैं, एक महीना यहीं रहेंगे फिर दुसर गांव में चले जायेंगे। एक बार तो लगा की कहीं बच्चा चोराबे वाला गैंग से तो ई नही है लेकिन फिर सोचे की ऐसा वैसा करेगा तो कूट देंगे सरवा के।
दसरथ शर्मा मुखिया जी ने इस असुर सा दिखने वाले व्यक्ति के लिए भोजन और रहने की व्यवस्था कर दी। वैसे भी गांव में आज भी अतिथि को देवता तुल्य माना जाता है, और मुखिया जी मंत्री तो थे नही की एक आम आदमी की मदद से पीछे हट जाएं। मुखिया जी के दलान में मंत्री जी के लिए लेदरा बिछा दिया गया, जो मुताईंन मुताईन महक रहा था, मुखिया जी के छोटका नाती इस पर सोता था। मंत्री जी मूत का गंध सूंघते ही मुख्यमंत्री जी को आशीर्वाद दिया कुछ कोमल शब्दों में। रात में खाने के लिए मकई का दर्रा मिला, साथ में पकावल लाल मिचाई। बेचारे किसी तरह उनकर कंठ से उतरा। जैसे ही रात दस बजा की बिजली गोल, रात भर सांढ रूपी मच्छर मंत्री जी के शरीर के अईसा अईसा जगह भंभोरा की मत पूछिए, पहले से अदरक लगते थे, भोरे कोहड़ा लग रहे थे।
अनायास ही मंत्री जी को रामायण का वो गाना याद आया "यही रात अंतिम यही रात भारी" बेचारे उच्चरुंग जैसा कभी चूकू मूकू बैठते तो कभी दायां करवट बदलते, और उनके मुंह से निकलता जाता खानदानी रिवाज नही होता तो कभी मुख्यमंत्री नही बनता मार डाला ससुरा, अटपटा आदेश निकाल कर।
और उधर मकई का दर्रा पेट में अलगे डिस्को डांस में लागल था, और तरह तरह की ध्वनियां सुर लगा रहा था।
भोरे भोर बेचारे मंत्रीजी को हगवास लगा, अब गांव में टाइल्स मारल शौचालय तो था नहीं, प्रधानमंत्री जी द्वारा बनवाया गया शौचालय में गोइठा रखल था। बेचारा रात में जे लोटा में पानी पिए थे, वही लोटा लेकर निकल गए, नित्यक्रिया से निवृत होने।
बेचारे घुस गए रहड़ के खेत में, खूब बढ़िया से मैदान किया, धोया और लोटा में माटी के दो छोटे टुकड़े रखे, लोटा मलने के लिए। जैसे ही रहड़ के खेत से निकले, उसी वक्त बिगना बहु भी दाएं से निकली, देखिए संयोग बिगन अपनी मेहरारू को दाएं से और मंत्री को बाएं से निकलते देखा। फिर क्या था, दुहत्ता लाठी से मंत्री की ऐसी कुटाई हुई की मत पूछिए, और मंत्रीजी के मुंह से बस एक ही वाक्य निकल रहा था, मुख्यमंत्री साला हम तोरा का बिगाड़े थे !
दिन भर पीपल पेड़ के नीचे ट्वेंटी नाइन चलता, मंत्री जी तो खानदानी जुवेरी थे, साला ओलंपिक में जुआ का खेल शामिल नहीं है नही तो मंत्री जी हर साल एकाध गोल्ड तो अपने देश में जरूर लाते। दिन भर तास का खेल। खेलने वाले चार और हौसलाफजाई करने वाले बहत्तर लोग रहते थे। हर चाल के बाद वहां उपस्थित गणमान्य लोग अपने मुंह से माई बहन वाला विशेषण युक्त वाक्य निकालते रहते थे। जोश में मंत्री जी भी माई बहन वाला शब्द से एक महानुभाव को अलंकृत किए, फिर क्या था, लात घुसा चप्पल इतना न गिरा की मंत्री जी चार दिन के लिए खाट पर गिर गए।
मंगरू के घरवाली अचानक जोर से चिल्लाई की खपरबिछ घुस गया है घर में, अटैक अटैक कर रहा है। बाल बुतरू के निकल के भागो, मंगरू चिल्लाया। उसी वक्त मंत्री जी लोटा लेकर निकले थे, उत्सुकतावश रुक कर पूछे, का हुआ है, इतना हल्ला काहे हो रहा है, मंगरू बोला की घर में कुछ घुस गया है, आपका इतना मोटा चमड़ी है, और साहसी भी हैं आप, देखिए तो का घुसा है। मंत्री जी घर के अंदर और बाहर से मंगरू दरवाजा का कुंडी लगा दिया। मंत्री जी अंदर जा कर देखे तो बड़का बिछखपर। वो मंत्री जी को देखा, मंत्री जी उसे। बिछखपर एक कदम आगे तो मंत्री एक कदम पीछे। मंत्री एक कदम आगे तो बिछखपर एक कदम पीछे। दोनो की नजर एक दूसरे पर। मंत्री जी के मुंह से निकला जा री मुख्यमंत्री अपने तो ऐश कर था होगा यहां हमर प्राण सुखल है। और बाहर मंगरू जो अंदर की स्थिति का जायजा लेने में लगा था। दोनो मे एक तो वापस जरूर आयेगा। इधर मंत्री जी को खटिया का एक पाया नजर आया। मंत्री जी के थूक चटकल था, एतना तो भांग और गांजा के सेवन से भी कभी मंत्री जी का थूक नही सुखा होगा जितना बिछखपर को देख के सुखा। बिछखपर भी सामने साक्षात यमराज जैसे इंसान को देख के डरा हुआ था। जय बजरंगबली कह के मंत्री जी पाया को सटीक निशाने पर जोर से फेंके, बिछकापर के माथा पर पाया और खेल खत्म। पांच मिनट तो मंत्री जी सदमे में चले गए थे। मंगरू को भी अंदर से कुछ आवाज नहीं आ रहा था। वो सोचा चलो ठीक ही हुआ एक विषधर दूसरा मुफ्तखोर, दोनो का काम तमाम। तभी अंदर से जोर जोर से खट खट की आवाज आई। खोलो, जल्दी खोलो, खोल तोहार .....के। मंगरू आश्वस्त हो गया की बिछखपर मारा गया। वो जैसे ही दरवाजा खोला की मंत्री जी उसेन बोल्ट से भी तेज दौड़ लगाई गाली बकते हुए। साला मूर्ख प्राणी जाने ले लेगा। एक तो मुख्यमंत्री जान लेने पर तुला है दूसरा यहां का पब्लिक।
एक दिन सोनरा पासी को ताड़ी उतारते देख मंत्री जी खगड़ा के दोना में दू लबनी ताड़ी मार लिए, बूट के खसिया के साथ। पिअत घड़ी तो अच्छा लगा लेकिन दुपहरिया से शुरू हो गए। बहत्तर बार लोटा लेके मैदान भागे थे, सांझ के पीतल वाला लोटवा भी मलात मलात कुछ खिया गया। सोचिए मंत्री जी के धोअत धोअत का हाल हुआ होगा। गांव के बुढ़ पुरणिया सब बोले की नजर लगा है इनको। मंत्री जी को जब स्वास्थ्य विभाग मिला था तो बड़का बड़का बिल्डिंग तो बनवा दिए थे गांव में, लेकिन डागडर बिठाना भूल गए थे, आज भी गांव का स्वास्थ्य व्यवस्था सोना बीघा के मारण ओझा ही संभालते थे। मारण ओझा को बुलाया गया और ओझा जी नारियल वाला बढ़नी से एतना न मंत्री जी को हांक दिए की मंत्री जी सोचे की अगर हम स्वस्थ हो गए, नही बोले, तो कुटत कुटत ससुरा जान ले लेगा। हाय दईया, के बाद मंत्री जी मुख्यमंत्री जी के लिए चार लाइन का सोहर मन में गाएं, मुख्यमंत्री तोहर .....!
बीगन बेचारा बचपने से अनाथ था, गांव वाला किसी तरह उसकी शादी करवाए थे, लेकिन आठ साल हो गया था, इस बार उसकी मेहरारू प्रेगनेंट थी। नौवां महीना चल रहा था, बीगन के उदास जिनगी में बहार किलकारी लेने वाला था।
लेकिन आज भी इस सुदूर ग्राम में सड़क के नाम पर पगडंडी थी और वाहन के नाम पर सिर्फ ट्रैक्टर चला करती थी, ट्रैक्टर भी सक्षम और बरियार लोगों की सवारी थी, मरीज तो खटिया पर ही टंगा के दस किलोमीटर दूर अस्पताल पहुंचते थे।
बीगन बहु के पेट में दर्द हुआ, तो मुखिया जी के ट्रैक्टर पर सवार करके बीगन अस्पताल को चला, साथ में मंत्री जी भी थे, सड़क तो था नहीं, ट्रैक्टर के हिलोर से दर्द और तेज हुआ, नतीजा बच्चा मुंह पर आ गया, मंत्री जी और बीगन चलते ट्रैक्टर में डिलीवरी किसी तरह करवाए, बच्चा तो बड़ी सुंदर हुआ, लेकिन बीगन बहु के हालत काफी गंभीर। बच्चा मंत्री जी के हाथ में था, रो रहा था, बीगन बहु एक प्यार भरा नजर अपन बच्चा पर डाली और .......। बीगन की दुनिया खतम। मंत्री जी के हाथ में बच्चा खूब रो रहा था। मंत्री जी का भी आंख से पानी निकल रहा था। कुछ देर के बाद मंत्री जी चिल्ला चिल्ला कर रोने लगे। शायद ये उनका प्रायश्चित था, जनसेवक होना तभी सार्थक हुआ, जब वो जन का कष्ट पग पग पर महसूस किए। आज पहली बार उनके कलेजे से आंसू निकल रहा था। उसी दिन उन्होंने तीन कसम खाई :-
पहला - आजीवन एक धोती में जीवन बिताऊंगा क्योंकि जिनकी सेवा का प्रण हम लेते है और वो भूखे नंगे रहेंगे तो हम भी वैसे ही रहेंगे, गांधी भी तो यही प्रण लिए थे।
दूसरा - जनसेवक हूं, सुरक्षा नही रखूंगा क्योंकि मन में जन जन के सेवा का भाव है तो डर किस से, और यदि डर तो जन सेवा कैसा।
तीसरा :- सरकार मतलब भगवान और भगवान में ऐंठन क्यों, चौबीसों घंटा सेवा करूंगा मरते दम तक।
और फिर क्या था, उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री जी को दिल से धन्यवाद दिया और मन में बोले, मेरे ईश्वर तो मुख्यमंत्री निकले जिनके कारण मुझे एक महीने में पता चला मनुष्य होना कितना कठिन है।
बाकी सब फर्स्ट क्लास है।
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