प्रेमग्रंथ

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ब्लॉग प्रेषक: राजीव भारद्वाज
पद/पेशा: व्यंगकार
प्रेषण दिनांक: 17-05-2023
उम्र: 35
पता: Garhwa, Jharkhand
मोबाइल नंबर: 9006726655

प्रेमग्रंथ

प्रेमग्रंथ।


सदियां बीत जाएंगी, दौर अलग अलग आयेंगे पर लोग अपने पहले प्यार को कभी न भूल पाएंगे।

गांव में एगो टीवी, आऊ देखे वाला पूरा गांव। इतवार के दिन टीवी दुरा पर लग जाता आऊ साथ में एगो बैटरी। फिर शुरू होता रामायण। कुछ लोग पलथिया मार के तो कुछ लोग चुकु मुकू बैठ के राम जी का दर्शन करते। मर्दाना एक तरफ आऊ जनाना दूसरी तरफ। बाल बुतरु सबसे आगे। गांव के लुहेड़ू लोग रामायण से जादा भउजी के ताड़ने में लगा रहता। 

किशोर मन जब आंख मिलाना शुरू करता तो एक तरफ महिला में एस्ट्रोजन और पुरुष में टेस्टोस्टेरोन प्रवाहित होने लगता। चलिए आज इस दौर के प्रेम कहानी को जीवित करते हैं, जो जीवन भर एक मीठी याद के रूप में हमारे दिमाग में संग्रहित रहेंगे।

 ना तो उस दौर में फेसबुक चलता था और ना ही व्हाट्सएप। सूचना आदान प्रदान करे ला लड़का की बहन, और लड़की का छोटा भाई प्रयोग में लाए जाते थे। गरीब आशिक दस रुपए किलो तौल वाला कॉपी के बीच से दू गो पन्ना फाड़ते आऊ शुरू होता लिखाना एक प्रेम पत्र।

 प्रेमपत्र से पहले अपने प्रेम का घर जानना जरूरी होता था, साइकिल उस दौर का फॉरचुनार होता था। लड़की के घर के सामने साइकिल का चैन उतारना और चढ़ाना, इस बात तक निर्भर होता था जब तक लड़की का दर्शन ना हो जाए। लड़की के मोहल्ले का कुत्ता, गाय, दुकान और यहां तक गाय का गोबर भी साला दरसनीय लगता था।

 सीधा लइकन सब कभी कभी आपन खून से भी प्रेमपत्र लिखता था वहीं शातिर लडकन लिपिस्टिक आऊ अलता को प्रयोग में लाते थे। साला प्रेमपत्र देना भी एक चुनौती था और प्रेमपत्र देने के बाद अक्सर लड़कियां सब बोलते पाई जाती थी 'तोर घर में माई बहिन नखउ'। एक बार, दू बार, चार बार लेटर देने से लड़की का मानसिकता बदलता था और उधर से भी एकाध लेटर मिल ही जाता था।

चुकी मजनू हो या रांझा, जूलियट हो या महिवाल, ई सब प्रेम के चक्कर में खूब कुटाया था। ई सब से प्रेरणा लेके लइकन प्रेमपत्र को पढ़कर उसका नामोनिशान मिटा देते थे अर्थात जला देना या गुटका या पान जैसा चबा देना। ध्यान दीजिएगा इस बात की सत्यता की गारंटी एक हजार प्रतिशत है की अक्सर प्रेमपत्र लड़की के पास ही पकड़ाता था। लड़का लोग अक्सर अपने दोस्त से प्रेमपत्र लिखवाते थे ताकि पकड़े जाने और राइटिंग मिलाने पर पकड़ा न जाए। लड़का लोग में बेचैनी देखने को बनती थी, बेचारा का प्रेम असफल हो जाए तो एक नंबर का ठरकी बनना तय था, दूसरी तरफ लड़की खाली ढील हेरवाने में व्यस्त रहती थी।

मिलन टॉकीज भी उस समय विचित्र जगह हुआ करता था। मेला, सर्कस, शादी ब्याह का कार्यक्रम उस समय मिलने का अड्डा हुआ करता था। आज के जैसा मॉल और रेस्टोरेंट था ही नही। लेकिन इन जगहों पर भी रिश्तेदार सीसीटीवी से भी बारीक नजर रखते थे। थोड़ा सा भी ऊंच नीच हुआ की खबर आज तक से भी ज्यादा विश्वसनीय और तेज गति से प्रसारित होता था। उस दौर में जहर खाना और हाथ का नस काटना सच्चे प्रेम का परीक्षा देना होता था, और जिसने भी इन दोनो में से कोई एक काम कर दिया समझिए जीवन भर का रिश्ता फिट।

चुकी मिलना यदा कदा होता था इसलिए घर से भागने का रिवाज और चलन जोर पर था। लड़की की सहेली और लड़का का दोस्त इस काम में बजरंगबली की भूमिका निभाते थे। अगर किस्मत खराब और भागने के क्रम में पकड़े गए तो लड़की का विवाह सात दिन के अंदर कहीं और, तथा लड़का कमाने अक्सर गुजरात भाग जाया करता था। मार से भूत भागता है, इंसान का चीज है। और जो पकड़े नही जाते थे वो पांच साल बाद रेंगा चेंगा के साथ लौटते थे और अधिकांश मामलों में सब उनको स्वीकार भी कर लेते थे।

कुमार शनुआ आऊ उदित नरयना ई दुनो ससुरा कम नहीं था। बिगाड़ के रख दिया था लइकन के। एगो गनवा था ' खता तो तब हो जब हम तोरा कहे, तोरा कहबे नही करेंगे खाली चाहेंगे कोई खता नही होगा। साला बिना बताए खाली चाहते रहे। लड़की के हमर इयार पटा लिया आऊ मैट्रिक फेल हुए हम अलग से। हां बाद में पता चला लड़की के बवासीर हो गया था। थोड़ी खुशी मिली की परमात्मा सजा जगह चुन के देता है।

 एगो आऊ बात था, रंगदार किसिम के लड़कन से लड़कियां ज्यादा आकर्षित होती थी। हमन जैसन दब्बू मने मन सोच के ही खुश रहते थे। हम लोग सपना में ही सपना को प्यार करते थे और गाते थे "जीता था जिसके लिए जिसके लिए मारता था"।

साला न माया मिली न राम। जीवन झंडे रह गया।

बाकी सब फर्स्ट क्लास है।

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