झोला छाप नही गारंटीड डागडर।

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ब्लॉग प्रेषक: राजीव भारद्वाज
पद/पेशा: व्यंगकार
प्रेषण दिनांक: 27-04-2023
उम्र: 35
पता: गढ़वा झारखंड
मोबाइल नंबर: 9006726655

झोला छाप नही गारंटीड डागडर।

अचानक जगत नारायण उर्फ जगता को साइकिल पंचर बनवाते हुए बारह साल के बाद मुज़ीब के दुकान में देखा। बचपन का साथी था, एक ही स्कूल में हम दोनो साथ पढ़े थे लेकिन मैट्रिक के बाद वो गायब हो गया। आज मिला तो मैंने पूछा - का जगत का कर रहा है, आज कल। वो बोला - डागडर बन गए हैं। हम बोले की कोन कॉलेज से पढ़ा जी ? जगता बोला कॉलेज से नही कलामुद्दीन डागडर के यहां पानी चढ़ाना और सुई लगाना सीखे हुए हैं और तीसरा बाती लगाना सीखे हैं। इसके महारत हासिल किए हैं डागडर कलामुद्दीन, अब इस से भी बड़ा कोई डागदरी होता है क्या। वैसे भी कलामुदीन डागडर ताजुद्दीन डागडर से इ हे तीन गो चीज सिख के डागडर बने थे, mbbs, md कोनो किए थे, अगर नही विश्वास है तो पांच पंचायत के चालीसो गांव में आप पूछ सकते हैं की इस इलाके में उनसे बड़ा कोई डागडर न हुआ न होगा। उन्ही के पास रह कर सीखे हैं की इलाज कैसे किया जाता है, कॉलेज न गए हैं कभी।

जानते हैं राजीव भाई - हम जैसन डागडर सौ परसेंट रिस्क पर काम करते हैं, जान के डर हमेशा बना रहता है। एक तो गांव के मरीज ऊपर से साला एक से एक भयंकर रोग। मिर्गी, मियादी बोखार, भकंदर। लेकिन हमलोग में आऊ डिग्री धारी डागडर में बहुत अंतर होता है, हमलोग साला बिना जांच के शर्त के साथ बता सकते हैं की कौन बीमारी है, लेकिन डिग्री वाला डागडर एक हजार जांच लिखेगा उसके बाद ही दवा लिखेगा। हमलोग पैरासिटामोल, डोला, बेरालगन जैसे कुछ टैबलेट और डेक्सोना, डायलोना इंजेक्शन से दुनिया के तमाम रोगों को दूर कर देते हैं लेकिन डिग्री धारक डागडर बहत्तर गो दवाई लिखेगा, साला कोनो तो सेट करेगा।लेकिन बांह में इतना तेल काहे चपोरले हो - भईया आपन सुरक्षा के ध्यान में रख के तेल चपोरना पड़ता है। मान लीजिए कोई इलाज के दौरान टे बोल गया तो बांह कोई पकड़ के कूटे इससे पहले पकड़ते ही छलकने लगता है जिस से भागने में आसानी होता है।

लेकिन बिना डिग्री के इलाज से रोगी मर गया तो ! अरे का बात करते हैं डिग्री वाला से रोगी नही मरता है का। सरकारी हस्पताल में चल जाइए ससुरा ऊ सब त बिना हाथ लगाए ही दवा लिख देता है, बाकी बचाने वाला भगवान है, हां हमलोग माध्यम भर है, अगर निमन लगा तो बार बार आइए नही तो मृत्यु ही जीवन का शाश्वत सत्य है।

 आज कल कंपीटीशन भी बहुत है, गांव के हर पांचवा घर में एगो डागडर है। आइए हम अपना डिस्पेंसरी घुमाते हैं। देखिए ई हमर चेंबर है, गोल स्टूल रोगी के लिए आऊ दहेज में जे हमको कुर्सी मिला था उ पर हम बैठते हैं। चार गो स्कूल वाला बेंच रखे हैं, वहीं पानी चढ़ता है। चार गो मग रोगी के हगने मूतने के लिए, एगो डायरी आऊ बीस पत्ता पेट दर्द, लैट्रिन ज्यादा कम करने का, बोखार का, माथा दरद के दवाई। पंद्रह बोतल ग्लूकोज। इतने में ही कई रोगी को निपटा दिए हैं।

हां हमर जे टेबुल है ओकर नीचे एगो बंकर भी बनाए हैं। कुछ ऊंच नीच हुआ की बंकर में घुस जाते हैं आऊ तेरहवीं के बाद ही निकलते हैं।

 देखिए हमलोग रोगी को रेफर करने में भी विश्वास नहीं करते हैं अगर हमन के दवाई सेट नही किया तो ओझा गुणी के नंबर फ्री में उपलब्ध कराते हैं, काहे की आसमानी सुलतानी भी बहुत चलता है गांव में।

 हम तो बेहोश आऊ अंतिम अवस्था वाले का इलाज में सावधानी बरतते हैं। चारो तरफ गांव में खबरी रखते हैं, जहां जादे मामला गड़बड़ाने का पता चलता है, ससुराल निकल जाते हैं ताकि लोग ई न समझे की हम ठीक नही कर पाएंगे।

 कोन अस्पताल आपका मनोरंजन भी कराएगा महाराज ! रोगी के पानी चढ़त रहता है आऊ फ्री में निर्गुण और बिरहा सुनत रहता है। एकरा से एक फायदा ई होता है की निर्गुण रोगी को इस मृत्युलोक से घृणा सिखाता है आऊ बिरहा बिरह। अगर इलाज के दौरान कुछ हो भी गया तो दोष लोग ईश्वर को ज्यादा दें हमको कम।

लेकिन कोरोना याद कीजिए हम ही लोग थे जो जान बचा दिए कई लोग का नही तो चीन आऊ अमरीका से पूछिए का हाल हुआ था। झोला छाप नही गारंटीड छाप बोलिए। आऊ जरूरत पड़े तो एक बार सेवा का मौका जरूर दीजिए, ऊपर वाला चाहा तो फिर मिलिएगा नही तो इतिहास बनकर लोगों को याद आइएगा।

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