| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | व्यंगकार |
| प्रेषण दिनांक: | 14-02-2023 |
| उम्र: | 35 |
| पता: | गढ़वा झारखंड |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
वेलेंटाइन डे और भारतीय संरक्षण दल के सेवक।
वेलेंटाइन डे और भारतीय संरक्षण दल के सेवक।
आठ महीने से रोज, तेरी गली में आकर, तुझे भर भर के नजर से देखता था। बस इजहार नही कर पाया। जीवन संगिनी कैसे बनाऊं, ये सोच सोच के तीन बार फर्स्ट ईयर में फेल हुआ। लेकिन एक महीने पहले वो मुझे देख कर मुस्कुराई, लगा स्नातक फर्स्ट डिवीजन से पास हो गया। इतनी खुशी तो मुझे तब भी न हुई थी, जब हमारी पार्टी ने लोकसभा का चुनाव जीता था। मैं संस्कृति संरक्षक दल का एक एक्टिव मेंबर था। भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए प्रतिवर्ष हम एक गुच्छे के रूप में सार्वजनिक पार्क, मॉल, रहड़/ गन्ने के खेत के आस पास पहेरादारी कर संस्कृति को बचाने में अपना बहुमूल्य योगदान देते आए थे। हाथ में सरसो का तेल पिलाया हुआ मजबूत दुखहरहन होता था, और जहां भी कोई लड़का लड़की, वेलेंटाइन दिन को दिखती उनका दुख हर लेता था। गजब का दहशत बना के रखते थे हम सब।
आज देश में युवा राष्ट्रीय महत्व के गंभीर प्रश्न *"क्या तुम मुझसे प्यार करती हो"* और *"लड़की देखी मुंह से सिटी बजे हाथ से ताली"* पर चिंतन करते हुए दिखाई देंगे। चिंतन का तरीका बड़ा प्रेमानुभूति लिए होता है। कोई गले में गले मिलकर तो कोई गोद में सर रख कर राष्ट्रीय चिंतन में मशगूल दिखाई पड़ते थे। ये सब देख कर मैं हमेशा कहा करता था -
*फरेबियों को मुबारक हो ये झूठी फरवरी…!*
*मेरी मोहब्ब्त किसी महीने की मोहताज नहीं…*
लेकिन मेरी मोहब्बत को गोईठा पारने का शौक है साला हर साल वेलेंटाइन में गुलाब देने जाता हूं तो कहती है थोड़ा गोबर ला देते तो गोईठा बना लेते ई फूल का हम क्या करेंगे। साला ऐसा लगता था की गोबर रूपी वैतरणी को पार करना मुश्किल ही नही नामुमकिन है।
और उधर पार्क में आज जिस प्रकार जगह जगह गुलाब दिख रहा है, ऐसा लगता है मानो पार्क नही मुर्दे दफनानने वाले कब्रिस्तान है। कई जगह तो मुर्दे जैसे लेटे हुए कपल भी दिख जाते थे। क्या हो गया है हमारे हिंदुस्तान को, क्या इसी त्योहार के लिए हमारे देश को आजाद किया गया था ? क्या यही युवा हमारे देश के कर्णधार हैं? जो अपनी प्रेमिका के आंखों में आंखे डालकर फुचका खाने और उसकी खट्टापन पर घंटो बात कर देश का भविष्य दांव पर लगा रहे हैं।
धन्य हो वेलेंटाइन का दिन, की हमारे टोली वालों को कई प्रकार के कच्छे मिल जाता था, और साल भर कच्छे खरीदना नही पड़ता था, एक तरफ जब देश के नौजवान बेरोजगारी के दंश को सह कर कच्छे पहनने के लायक भी नहीं बचे, वहीं वेलेंटाइन डे कच्छे का प्रबंध का भी दिवस था। एक बार जहां जोर से किसी पार्क में कोई गुहार लगाता, की संस्कृति दल के संरक्षक आ रहे हैं तो खुले कच्छे खुले ही रह जाते, भले ही कच्छे के मालिक को नंगे ही भागना पड़े। यहां शर्म और हया परे था, कुत्ते और इंसान में कोई फर्क नहीं। सब हमारे दल का नाम सुनते ही एक साथ भागते थे। जो मिलते उनका हम दुख हरण से स्वागत करते और जो न मिलते उनका कच्छे पर हमारा अधिकार होता।
आखिर मेरी वाली ने एक शर्त रखा मुझसे मिलने का, की वेलेंटाइन डे के दिन प्रेम साह भौगोलिक पार्क में अपने प्यार का इजहार करना होगा। मैं सोच में पड़ गया लेकिन कहते हैं न की प्रेम से बड़ा कोई धर्म नही, इससे बड़ा कोई ग्रंथ नहीं। मैं मान गया लेकिन दूसरी तरफ संस्कृति दल का अध्यक्ष होने की जिम्मेदारी भी निभानी थी तो मैंने अपने गुर्गों को मुस्तैदी से अपने कार्य के प्रति जिम्मेदारी भी सौंपी।
मुंह में मास्क लगाकर नियत दिन और नियत समय पर मैं पार्क पहुंचा, कुछ देर के इंतजार के बाद मोहतरमा का पदार्पण हुआ, मैने एक गुलाब का फूल अपने एक घुटनो को मोड़कर और दूसरे को सीधा रख कर बिल्कुल रणवीर कपूर स्टाइल में दिया, वो अलग बात थी की पंद्रह रुपए में गोभी के फूल भी नही खरीदने वाला मैं, दो सौ रुपए के गुलाब उसे दे रहा था। ये प्रेम की पराकाष्ठा थी। गुलाब देने के बाद गले से गले भी लगा उसके। उसके बाद गोद में सर रख कर कुछ देर उसके जुल्फों से खेला, लेकिन जैसे ही लेटने का कार्यक्रम बनाया, जोर से गुहार हुआ, भागो संस्कृति दल वाले आ गए। मैंने अपनी प्रेमिका को एक पटकन देकर अपने से जुदा किया और लगा मैराथन करने। करीब बीस लोगों को ओवरटेक करने के बाद बाउंड्री को तड़पा, पार्क में कैक्टस लगाने वाले नामुरादों, तुमने किसी से प्यार नहीं किया सालों। भागने में ऐसे ऐसे जगह कांटे चुभे हैं की डॉक्टर के अलावा कोई भी नही निकाल सकता। किसी तरह लंगड़ाते हुए अस्पताल पहुंचा। डॉक्टर को बोला की तेंदुआ मारने जंगल गया था, अचानक तेंदुए ने हमला बोल दिया किसी तरह जान बची लेकिन कांटे। डॉक्टर मुस्कुराया और उसी जगह लेटने को बोला जहां कांटे वाले मरीजों की लाइन लगी थी।
और अगले दिन गली मोहल्ले के मासूम बच्चे पार्क में फेंके हुए फुलौनो को फुलाकर खेल रहे थे जो वेलेंटाइन डे के पावन प्रेम की गवाही चीख चीख कर दे रहे थे।
क्या इसी को प्रेम दिवस कहते हैं, अरे, प्रेम का उदाहरण तो दशरथ मांझी ने दिया था, हीर रांझे ने दी थी।
*अपनी हदों का दायरा बखूबी मालूम है हमें*
*हम तो नजरों को भी मिलाने की इजाजत लेते है।*
बाकी सब फर्स्ट क्लास है।
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