| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव रंजन पाण्डेय |
| पद/पेशा: | |
| प्रेषण दिनांक: | 15-03-2022 |
| उम्र: | 39 |
| पता: | नालंदा, बिहार |
| मोबाइल नंबर: | 82925 47380 |
गौरैया और कौआ की सच्ची कहानी
आज सुबह गौरैया और कौवा को ठंड से ठिठुरते देख उस घटना को भावना के माध्यम से एक कहानी का रूप देने का कोशिश किया हूँ..
बात 8 दिसंबर की सुबह की है। अभी रात का अंधेरा ठीक से छटा भी नहीं था और उसपर घने कुहरे का सितम कहर ढा रहा था, मानो आज रात न जाने की ठान ली हो। खैर प्रकृति के नियमानुसार उजाले ने अपना पैर पसारना अभी शुरू हीं किया था कि एक मादा गौरैया और एक कौवा मेरे शमी के पेड़ पर आकर बैठ गया। प्रतिदिन की भांति आज भी मैं दाना-पानी देने पेड़ के पास रखे बर्तन के पास गया..तभी अचानक मेरी निग़ाह पंख पहले कौवे पर पड़ी। वह किसी चीज़ को एक नज़र से देखता जा रहा था। मैंने भी पेड़ पर ताक-झांक शुरू की तो मेरी नज़र ठंड से सिकुड़ी एक मादा गौरैया पर पड़ी..वह बहुत ही धीमे स्वर में कुछ बोल गई.. मैं कुछ समझ पाता तबतक कौवे ने भी उसी धीमी स्वर में कौवे ने भी उत्तर दिया। मुझे समझते तनिक देर न लगी..दोनों अपनी भावनाओं को स्वर देने की कोशिश कर रहे थे,लेकिन आवाज़ ठंड से पूरी तरह निकल नहीं पा रहे थे..मैं उन दोनों की भावनाओं को समझते हुए अंतः मन में शब्दों का रूप देने लगा।
अरे भाई कौवे..तुम तो मुझसे बहुत बड़े हो..! तुम इस भीषण ठंड से बचने के लिए अपना आशियाना क्यों नहीं बना लेते..अपने गांव में कई पेड़ हैं.. गौरैये ने कहा। तभी कौवे ने अपनी नजरें इधर-उधर फेरते हुए गमगीन स्वर में कहा.. लगता है इंसानों की प्रवृति अब हम पक्षियों में भी आने लगा है। तुम्हारा मतलब समझी नहीं..वैसे भी मेरा वदन 25 ग्राम का है तो दिमाग तो और भी छोटा है न। इतनी मोटी बात इस छोटे दिमाग़ में कहाँ आएगी भला..हो सके तो थोड़ा समझा कर बताओ..शीत से लदे गौरैये ने पंख झाड़ते हुए कहा।
कौवा फिर एक लंबी सांस लेते हुए पंख को तेज़ी से झाड़कर चारों को देखते हुए कहा..क्या बताऊँ छोटी बहन इस समय मुझे रहीम कवि की कही बात याद आ रही है..ये रहीम कौन-सा पक्षी है,कभी सुना नहीं..गौरैये ने तपाक से कहा। ओहो..तुम्हारा दिमाग़ जितना छोटा है,बात उससे बड़ी पूछती हो,तुम्हारे समझ से बाहर है..खैर छोडो..रहीम एक इंसान थे,जो अपने जैसे इंसानों के बारे में कहते हैं कि यदि आपके पास कोई दुःख हो तो किसी दूसरे के सामने प्रकट नहीं कीजिए। नहीं तो लोग मदद करने के वजाय आपके दुःख का उपहास हीं उड़ाएंगे,इसलिए अपना दुःख अपने पास हीं रखिए। अब पूछ लिया है तो बताता हूँ- कभी हमारा भी अपना एक घर हुआ करता था। यहीं अपने गांव के स्कूल के पास पीपल के पेड़ पर। मैं अपने परिवार के साथ सुख-चैन से ज़िन्दगी जी रही थी और पेड़ के पास ही वितरण की दूकान से भोजन और हमेशा बहने वाले नल जल योजना से पीने को पानी मिल जाया करता था। कुछ महीने पहले अपने घोंसले में बैठी जिंदगी के सपने बुन रही थी..तभी अचानक से पेड़ हिलने लगा,मानो भूकंप आ गया हो..मैंने झटके से नीचे देखा तो कुछ इंसान पेड़ के नीचे खड़े होकर जड़ से काट रहे थे,कुछ समझ पाती तबतक धड़ाम से पेड़ ज़मीन पर हमेशा के लिए गिर गया। मैं और मेरे कई मित्र जान बचाकर भागे। मेरे सभी करीबी मुझे और इस गांव को छोड़कर चले गए..मैं अकेला रह गया,यह सोकर कि इसी गांव में पहली बार आंख खोला था और आख़िरी बार बंद भी यहीं करूगां। इसने हमें बहुत कुछ दिया है। पूरा गांव मेरा परिवार सा हो गया,छोड़कर जाने का दिल नहीं करता,इसलिए अब अकेला हो गया हूँ। लेकिन,इंसानों की एकबात मुझे भी समझ में नहीं आता..इंसान आए दिन पेड़ लगा रहा है,जिसपर मेरा आशियाना नही बन सकता और जिसपर बन सकता है उसे धड़ले से काटे जा रहा है..आखिर,इंसान क्या पाना चाहता है,किसी का घर उजाड़ कर..तभी गौरैया तेजी से ची ची करने लगी,मानो कौवे की बातों पर हँस रही हो। कौवे ने थोड़े गुस्से में कहा.. अब तुम्हें भी इंसानों की तरह किसी के दुःख पर हंसी आ रही है। गौरैये ने कहा-अरे,नहीं भाई..तुम पर नहीं इंसानों की सोच पर हंसी आ रही है। देखो न हँसने से थोड़ा शरीर में भी गर्मी बन गई है। कौवे ने कहा- ऐसा लगता है इसबार बसंत नही देख पाऊंगा,ये ठंड जान लेकर ही छोड़ेगा..घोंसला बनाने के लिए कोई जगह नही बचा है और मैं ये भी देख रहा हूँ कि तुम्हारे लिए कई स्थानों पर इंसानों द्वारा घोंसला और खाने के लिए दूर-दराज से धान की बाली भी घरो के बाहर लटकाया जा रहा है..तुम्हारी ज़िन्दगी तो मज़े में कट रही है(थोड़ा मुस्कुराते हुए) इन हैवानों के बीच मुठ्ठीभर हमदर्द भी जिंदा हैं, नही तो इंसानों की करतूत से कब के ये धरती बिरान हो जाती(गौरैये का चेहरा गमगीन होता चला जाता है और आँखों से आंसूं गिरने लगते हैं)..अरे..अरे..! तुम रो क्यों रही हो,लगता कुछ गलत कह गया तुम्हारे बारे में..मैं भला मोटा दिमाग़ का..कुछ तो बोलो,तुम्हारी ची ची बहुत हीं प्यारी लगती है। कौवे बात ख़त्म होते-होते दर्जनों गौरैये पेड़ पर और आ गए।
मादा गौरैया आसूं टपकाते हुए बोली..तुम्हारी बातों से कोई दुःख नहीं हुआ। बस अपने अतीत को याद करने लगी तो मन भर आया और आसूं निकलने लगे,लेकिन भविष्य के बारे में थोड़ा सोचकर मन खुश भी हो जाता है। हमारे जाति को मिटाने के लिए इंसानों ने अपनी हैवानियत की पराकाष्ठा को भी लांघ गया। हमे खत्म करने के लिए वर्ष 1958 में चीन में एक युद्धस्तर पर अभियान चलाया गया और पहले हीं दिन लाखों परिवारों को अपनी जान गवानी पड़ी। मुझपर ये आरोप लगाया गया कि हमसब अनाज़ बहुत खाते हैं। हमें मिटाने से उनका हजारों टन अनाज़ बच जाएगा। इंसान के विकास के भूत ने हमारे परंपरागत आशियाने को हमसे छीन लिया। आज उनके आधुनिक घर हमारे घोंसले बनाने के लिए उपयुक्त नहीं रहे और न हीं झाड़ीदार पेड़ बचे। मेरे खाने में ज़हर मिला दिया गया जिससे मेरे बच्चे दुनियां देखने से पहले हीं स्वर्ग सिधार गए। अब हम बहुत ही कम संख्या में बचे हैं। कई स्थानों पर तो मेरा वर्षों पहले नामो निशान मिट गया है और आज भी इंसान हमारा दुश्मन बनकर मिटाने पर तुला है। उन्हीं इंसानों में कुछ ऐसे हैं जिसे परमात्मा ने फ़रिश्ता बनाकर भेजा है। एक समय ऐसा था जब हमसब को कुछ पल थक-हारकर बैठने के लिए एक डाली भी नही था। तब एक इंसान के दिल में हमारे प्रति संवेदना जाग उठी। जिस शमी के बैठे हैं मेरे तीन पुस्त गुजार दिए। आज से 10 वर्ष पहले हमारी संख्या 8-10 के करीब थी। उस इंसान के तपस्या के बदौलत आज हमारे परिवार की सांख्य 300 के करीब है। इसी पेड़ पर पूरा दिन गुज़र जाता है। भोजन-पानी भी यहीं मिल जाता है। ठंड से बचने के लिए कई स्थानों पर घोंसला भी लगाया गया है रात अरामा से कट जाती है। दुःख इस बात है कि ये सबको को नसीब नहीं हो पा रहा है..उस इंसान की साधना को नमन और दुआ करता हूँ कि उसे और भी ईश्वर शक्ति प्रदान करें ताकि हम जैसों बेसहारा को सहारा मिल सके..बस इतनी सी है हमारी दास्तान।
बात खत्म होते हीं गौरैये का झुंड पास रखे पानी के बर्तन में कूद-कूद कर नहाने लगी और कौवे थाली में पड़े भोजन को खाने में मशगुल हो गया।
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