| ब्लॉग प्रेषक: | नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर |
| पद/पेशा: | सेवा निबृत्त प्रचार्य |
| प्रेषण दिनांक: | 24-01-2023 |
| उम्र: | 60 वर्ष |
| पता: | C-159 Divya Nager Colony Post-Khorabaar Gorakhpur-273010 utter pradesh |
| मोबाइल नंबर: | 9889621993 |
गुरूकुल शिक्षा
गुरुकुल शिक्षा -
परम्परा एवं सर्वश्रेष्ठ शिष्य -
प्रारंभिक शिक्षा का ऐसा केंद्र जहां विद्यार्थी अपने परिवार से दूर गुरु परिवार का आवश्यक हिस्सा बनकर शिक्षा प्राप्त करता था।।
गुरुकुल में पढ़े विद्यार्थियों का बड़ा सम्मान होता था कुरुकुल कि स्थापना ऋषि एव वैदिक परम्पराओं के अंतर्गत होती थी।।
गुरुकुल में आठ वर्ष से दस वर्ष तक कि आयु के बालको को शिक्षा दी जाती थी।।
गुरुकुल नगर ग्राम से दूर वन प्रदेशो में ही स्थापित किये जाते थे जहां ऋषियों का निवास स्थान होता था ।।
गुरुकुल कि व्यवस्था में शिक्षार्थियों का महत्वपूर्ण योगदान होता स्वयं भिक्षा से भोजन आदि कि व्यवस्था करते तो लकड़ी आदि स्वय एकत्र करते बड़े बड़े राजाओं जिनके राज्य के अंतर्गत गुरुकुल होता उनके द्वारा भी गुरुकुल को सहायता प्रदान की जाती ।
गुरुदक्षिणा शिक्षा के समापन पर देनी होती थी शिक्षा की यह व्यवस्था इसलिये भी सर्वश्रेष्ठ थी क्योकि परिवार से दूर विद्यार्थी को एक ऐसे वातावरण में रहना होता जहां उसे जीवन के कठोर ब्रत एव नियमो के पालन के लिये शक्तिशाली बनाया जाता ।।
भगवान राम ने गुरु वशिष्ट के आश्रम में रहकर शिक्षा पाई तो सभी पांडवों एव कौरवों ने गुरु द्रोण के गुरुकुल में शिक्षा पाई तो भगवान श्री कृष्ण ने सांदीपनि के गुरुकुल में शिक्षा पाई।
गुरुकुल में त्रिस्तरीय शिक्षा व्यवस्थाएं थी -
1-गुरुकुल -आश्रम में विद्यार्थी गुरु के साथ रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे ।
2- परिषद-विशेषज्ञों द्वारा शिक्षा दी जाती थी।
3- तपस्थली-जहाँ बड़े बड़े सम्मेलनों का आयोजन होता था गुरुकुल के प्रधान आचार्य को कुलपति महोपाध्याय कहा जाता था।
गुरू कुल शिक्षा पद्धति कि विशेषताएं-
क-गुरुकुल पूर्णतयः आवासीय एव एकांत स्थान पर होता था जहाँ आठ दस वर्ष के बच्चे गुरु सानिध्य में शिक्षा ग्रहण करते।
ख-अनुशासन प्रमुख था।
ग-गुरुकुल में शिक्षा में विद्यार्थी स्वंय सेवक कि तरह ही रहता उंसे अपने कार्य स्वय करने पड़ते जैसे उपयोग कि सामग्री का निर्माण भोजन कि व्यवस्था के लिए खेती या भिक्षाटन करते।
घ-गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था में सुनकर ही स्मरण करना होता था लिपि व्यवस्था नही थी।
उपनयन ,यज्ञों पवित,उपवीत संस्कार भी गुरुकुल में ही होते
अनुकरणीय गुरु शिष्य -
वरतन्त के शिष्य कौत्स ने अत्यन्त निर्धन होने के बाद भी गुरु से दक्षिणा लेने का आग्रह किया तब गुरु ने क्रोध में आकर चौदह करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मांगी कौत्स ने राजा रघु से वह धन पाना अपना अधिकार समझा राजा ने ब्राह्मण बालक कि मांग पूरी करने के लिये कुबेर पर ही आक्रमण कर दिया ।।
प्रसेनजित जैसे राजाओं ने वेदनीषणात ब्राह्मणों को अनेक गांव दान में दिए गुरुकुलों में तक्षशिला, नालंदा ,वलभी के विश्वविद्यालयों की चर्चा है वाराणसी बहुत प्राचीन शिक्षा केन्द्र था जहां सैकड़ो गुरुकुल पाठशालाओं के प्रमाण है।
रामायण काल मे वशिष्ठ का बृहद आश्रम था जहाँ राज दिलीप तपचर्या करने गए जहाँ विश्वामित्र को ब्रह्मत्व प्राप्त हुआ।
भारद्वाज मुनि का आश्रम था
गुरुकुल परम्परा के श्रेष्ठतम शिष्यो की कड़ी में ऋषि धौम्य आरुणि एव उपमन्यू का नाम बड़े गर्व एव आदर से लिया जाता है ।भगवान श्री कृष्ण ,अर्जुन आदि गुरुकुल के शिष्य परम्परा के प्रेरक एव युग सृष्टि के लिए प्रेरणा है।
गुरु शिष्य परमपरा का श्रेष्ठतम आदर्श - चाणक्य चंदगुप्त
विंध्याचल के जंगलों में भ्रमण के दौरान चाणक्य का ध्यान एक बालक कि तरफ आकर्षित हुआ जिसका नाम चंद्रगुप्त मौर्य था वह राजकिलकम खेल में व्यस्त था चाणक्य बहुत प्रभावित होकर एक हजार कार्षारण खरीद कर अपने साथ लाते है ।
चाणक्य विष्णुगुप्त जो तक्षशिला गुरुकुल के आचार्य थे गुरुकुल शिक्षा व्यवस्थाओं की कलयुग में इससे बेहतर उदाहरण नही मिलता आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को शिक्षित दीक्षित कर बिखरते भारत को एक सूत्र में बांधने कि गुरुदक्षिणा कहे या देश प्रेम या घनानंद के अपमान का प्रतिशोध जो भी कहे लेकिन गुरुकुल परम्परा में गुरु एव शिष्य का ऐसा अद्भुत संयोग उदाहरण राष्ट्र समाज इतिहास में प्रस्तुत किया जो कही उपलब्ध नही है गुरु चाणक्य ने शिष्य चंद्रगुप्त से स्वयं के लिए कभी कोई गुरुदक्षिणा नही मांगी ना ही लिया सिर्फ अखण्ड भारत के लिये ही शिष्य कि खोज किया और परिपूर्ण करके गुरु शिष्य परम्परा में अनुकरणीय आदर्श कि नींव रखी जो आज भी गुरु एव शिष्य दोनों को ही दिशा दृष्टिकोण देते हुये मार्गदर्शन करती है।।
ऋषि धौम्य के दो शिष्यो के विषय मे यहाँ उल्लेख करना चाहूंगा महर्षि धौम्य ने उपमन्यु एवं आरुणि ने गुरुकुल के गुरु परम्परा में गौरवशाली इतिहास है जिनके द्वारा गुरु के प्रति आस्था का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर गुरुकुल परम्परा को शिखरतम तक पहुंचाया।
गुरुकुल शिक्षा कि एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था जो बच्चों को सांस्कारिक शिक्षा का स्रोत एव केंद्र के रूप में राष्ट्र को ऐसी युवा पीढ़ी को सौंपता था जिससे राष्ट्र एव समाज के मजबूत बुनियाद का निर्माण होता था ।
गुरुकुल में शिक्षक माता पिता कि तरह शिक्षार्थियों को शिक्षा प्रदान करते थे भेद भाव का कोई स्थान नही होता था गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था वास्तव मे शिक्षा एव शिक्षार्थी के नैतिक विकास का महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था जो महत्वपूर्ण एव भविष्य की दृष्टि दिशा का निर्माण मर्यादित आचरण के विकास के द्वारा युवा पीढ़ी में संवर्द्धित करता था ।
गुरुकुल से अनेको ऐसे व्यक्तियों का सृजन होता था जो राष्ट्र समाज मे सकारात्मक सार्थक परिवर्तन के सजग प्रहरी के साथ साथ जिम्मेदार नागरिक का निर्माण करता था।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।
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