| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | व्यंगकार |
| प्रेषण दिनांक: | 12-01-2023 |
| उम्र: | 35 |
| पता: | गढ़वा झारखंड |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
बेटा नंबरी बाप सौ नंबरी। मासूम प्रेम पुजारी
नोट - ये व्यंग कोरी कल्पना है, कृपया सच समझ मेरे बारे में कोई राय मत बना लेना।
बेटा नंबरी बाप सौ नंबरी।
मासूम प्रेम पुजारी
मैं उसे बड़ी शिद्दत से ढूंढ रहा हूं जिसने कहा था, सच्चा प्यार जीवन में सिर्फ एक बार होता है।
कभी कभी तो लगता है मेरा और मेरे पिताजी का जन्म ही इस दुनिया में प्यार करने के लिए हुआ है।
ये मैं बड़ी आत्मीयता से बक सकता हूं की यदि हीर रांझा एक दूसरे से मिल गए होते तो हीर के साथ अगला नाम सोहनी के साथ होता और रांझा का महिवाल के साथ। मतलब साफ है की एक से दिल भरता कहां है। चाहे वो कोई भी हो। हम तो वो हैं जिन्हे सिर्फ एक भगवान पर नही बल्कि भगवानों पर भरोसा होता है। दिन के हिसाब से हम अपने भगवान को भी प्रिय बनाते हैं।
चलिए प्रेम पर वापस आते हैं, मेरा तो पसंदीदा शेर भी मेरा चरित्र बताता है की-
"शहर के किस गली में मेरा कब्र नही है "राजीव,
जिस गली में कोई हसीना देखी वहीं मर गए""
शहर का कोई भी गली का कोई भी मकान मुझे दिखा दो मैं शर्त के साथ बता सकता हूं की इस मकान में कितनी हसीनाएं रहती हैं।
कितना आशिकाना होगा मेरा मिजाज की पैदा होते ही मैंने नर्स को आंख मारी थी, मेरे लुर लक्षण को देख कर मेरे पूज्य पिताजी को पूरा भरोसा हो गया था की मैं उन्हीं का पुत्र हूं और उनकी विरासत को सदैव संभाल कर रख सकता हूं। मेरा तो पूरा परिवार ही प्रेम को समर्पित रहा है।
मेरे आदरणीय पिताजी जो उम्र के पचास साल तक प्यार में गिरफ्तार थे, और आज कल छेड़ छाड़ के केस में गिरफ्तार हुए हैं। जुर्म ए उल्फत के चक्कर में बेचारे दो माह से जेल में बंद हैं। देखिए पिताजी के करतूतों को समझने के लिए जिगरा और शेर का कलेजा चाहिए
कब्र में पैर है, वो मर रहे हैं,
लेकिन फिर भी कर रहे हैं बदमाशी।
चूड़ीदार पजामा, कलरफुर कुर्ता काली टोपी और उससे ज्यादा उनकी काली करतूत उनको अलग बनाता है।
जिस प्रकार हर मर्द की कामयाबी के पीछे एक औरत का हाथ होता है उसी प्रकार हर बुजुर्ग के बदमाशी के पीछे एक हकीम का हाथ होता है। मेरे पिता का एक दोस्त हकीम हैं सीधे साधे हैं लेकिन वो अपनी बदमाशी मेरे पिताजी से करवाते हैं।
वैसे तो पेशे से वो शिक्षक हैं, हिंदी पढ़ाते हैं लेकिन हिंदी में भी श्रृंगार रस पर कुछ विशेष जोर देते हैं। हिंदी में एक मास्टर डिग्री है और कोर्ट की सौ डिग्री। बेचारे आदत से मजबूर।
एक बार प्लेन से दिल्ली जा रहे थे, और उनकी बगल में एक महिला बैठी हुई थी, पिताजी ने उस महिला का सीट बेल्ट को अपनी हुक से बांध दिया, जब प्लेन उड़ी तो वो महिला मेरे पिताजी के गोद में। मत पूछिए प्लेन का कोई पैसेंजर ऐसा नही होगा जो अपनी चप्पल से मेरे पूज्य पिताजी की इज्जत ना बक्शी हो।
उनकी हरकतों को सुन कर मुझे शर्म तो आती ही है, लेकिन उनका रिकॉर्ड तोड़ने का हौसला भी आता है। अब देखिए न एक दिन स्विमिंग पूल में कुछ महिलाएं नहा रही थी, पिताजी किनारे पर बैठे थे, इसी बीच एक महिला ने मेरे पिताजी के पीछे खड़े अपने पति को अपने पास बुलाया। मेरे पिताजी ने सोचा को वो उन्हे बुलाई है, आव देखा न ताव लगा दी छलांग उसकी बाहों में। उसके बाद मत पूछिए गधे पर बैठाकर उनके पीछे पीछे डीजे बजाते हुए शहर के नाकामयाब लौंडे उनको घर पहुंचाएं। एक बार तो मैं भी सोचा कि इतना इज्जत देने की क्या जरूरत थी। लेकिन मेरे पिताजी एक सामान्य दिन को भी त्योहार में बदलने का जज्बा रखते थे। सारे शहर को खुशियां देना कोई मेरे पिताजी से सीखें।
पुस की रात में बेचारे को कहीं जाना था, ट्रेन का इंतजार स्टेशन पर कर रहे थे, ठंड से उनकी बुढ़ी हड्डियां गलने को तैयार थी, तभी उन्होंने देखा की एक डबल बेड के कंबल में एक सिंगल महिला सोई हुई है, पिताजी ने झट से उस कंबल में घुसना उचित समझा। फिर क्या हुआ ? अरे कोई तो बेल करा दो। दो महीने से जेल में मुफ्त की रोटी तोड़ रहे हैं।
मुझे नही लगता मैं उनका रिकॉर्ड ब्रेक कर पाऊंगा, क्योंकि इतनी मासूमियत पूर्व में कान्हा में था और कलयुग में मेरे पूज्य पिताजी में।
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