| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | व्यंगकार |
| प्रेषण दिनांक: | 10-01-2023 |
| उम्र: | 35 |
| पता: | गढ़वा झारखंड |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
शिकारी वर्सेज तेंदुआ
काहे जी सियार जैसा काहे रेंक रहा है ? हां! गए थे दिशा फिरे, रहड़ जरा भी चरमरा रहा था तो निकला हुआ भी सटक जा रहा था, साला ई तेंदुआ जे न करा दे, पूरा पाचन खराब हो गया है, कुछ डर से, आऊ कुछ समय से पेट नही खाली करने से।
डरिए मत, नवाब साहेब आ गए हैं, शिकारी हैं, बड़का शिकारी, सुने हैं खूब आदमखोर जानवर मारे हैं। अरे मारे होंगे! लेकिन ई पलामू का तेंदुआ है, इन्हा के आदमी और जनावर सब आपापुति हैं।
जानते हैं जी, ई तेंदुआ नही हवाई जहाज है, आज रंका तो कल अस्सी किलोमीटर दूर मंझिआव, फिर रामकंडा तो फिर लातेहार। स्पीड तो नवाब साहेब का भी है, हैदराबाद में जैसे ही सुने की फौरन निकल पड़े। हमरा तो लगता है की नवाब साहेब और तेंदुआ दूनो एक दूसरे के पीछे दौड़ रहे हैं। कभी तेंदुआ आगे तो नवाब जान बचा रहे हैं और कभी नवाब आगे तो तेंदुआ जान बचा रहा है। साला शिकार न हुआ मैराथन हो गया।
जंगल में पिंजरा भी लगाया गया था, एक तो पिंजरा इतना भारी दूजे पिंजरा लगाने वाले आलसी।
देखिए तो ई मसूरी भर के लइकन सब हमको धमका रहा है की नवाब साहेब आ गए हैं जादे चपर चपर किए त बंदूक साथे लेकर घूमते हैं, गलती से चला दिए न तो नवमी के ही आपका तेरहवीं हो जायेगा।
प्रधानमंत्री जी कहते कहते थक गए की शौचालय का प्रयोग करो, लेकिन खुली हवा में शौच त्यागने वाले मलामत कहां सुनने वाले थे, माना की तेंदुआ आदमखोर बन गया है, लेकिन अब गांव में जिस शौचालय में गोइठा रखा रहता था, वहां अब लोग शौच को जा रहे हैं।
तेंदुआ ने पर्यावरण के प्रति लोगों को जबरदस्त जागरूक किया है। प्रधानमंत्री का बात भले लोग ना सुने लेकिन तेंदुआ का सुनना पड़ गया। मेरा तो मानना है की हर जिले में एक एक तेंदुआ छोड़ दिया जाए ताकि शौचालय का पूर्ण उपयोग हो सके।
मेरे समझ में ये नही आया की क्या हमारे यहां शिकारियों की कमी थी जो हैदराबाद से मंगाया गया और तो और सात दिन हो गए, तेंदुआ ने उतना मीट नही खाया होगा जितना शिकारी को भोग लगाया गया होगा। हमारे यहां कई जमींदार खानदान है जो सिर्फ शिकार ही किए, भले वो जनमानस हो या तेंदुआ।
उधर बेवड़ों में भी भरी आक्रोश देखा जा रहा है, कितना अच्छा दिन था वो की पी के मदमस्त जंगल में पड़े रहते थे, न जीने की तम्माना न मरने का भय। लेकिन ससुरा ई तेंदुआ। नाम सुन कर सारा निसा उतर जा रहा है, खर्चा भी बढ़ गया पहले पौवा में हो जाता था अब अद्धा लेना पढ़ता है। पीने के बाद तो आदमी अपने आप में तेंदुआ और शेर होता है।
कल एगो भाई साहेब पी के सियार के पीछे पड़ गए, बोले हाथ आ गए तो आदमखोर से तुरंत इंसान बना देंगे। और तो और पत्नी सब भी अपने पति को समय से पहिले घर पहुंचने को कह रही है जिससे मित्रता जैसा रिश्ता अंतिम सांस भर रहा है। घर का दहाड़ और माहौल क्या तेंदुआ के खौफ से कम है। उधर बाहर में तो तेंदुआ एक बार में ही साफ कर देगा लेकिन पत्नी के सामने तो रोज घुट घुट कर मरना पड़ेगा।
सरकार भी नही चाहती की लोग भूख से मरे। सुने हैं की सरकार डार्विन के सिद्धांत को ज्यादा मानती है की जो बलवान होगा वही जिएगा।
खैर सरकार बनने से पहले शुरू में निरीह और बाद में बलवान होकर जनता को नाकों चना चबवाती है।
जनता आप सिर्फ मरोगे, और मरना भी चाहिए क्योंकि बिना रोजगार और रोटी तड़प तड़प के मरने से अच्छा है की आपका मांस और लोथड़ा किसी पशु के काम आए। जनता तुम दधीचि बनो और अपना हड्डी तक कुर्बान कर दो। मांस तेंदुआ खायेगा और हड्डी कुता।
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