| ब्लॉग प्रेषक: | हरिचरण अहरवाल निर्दोष |
| पद/पेशा: | अध्यापक |
| प्रेषण दिनांक: | 06-01-2023 |
| उम्र: | 47 |
| पता: | प्रज्ञा 50 बी श्री कृष्णा एन्क्लेव बख्शीस स्कूल के पीछे देवली अरब रोड़ कोटा राजस्थान पिन नंबर 324004 |
| मोबाइल नंबर: | 9950365312 |
संस्मरण -जंत्री
जंत्री - संस्मरण
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पिछले साल जब पिताजी नहीं रहे तो हमारा पूरा महिना गांव में ही गुजरा । तत्पश्चात बड़े भाई साहब माताजी को भी साथ ही शहर में ले आए । हमने घर की सभी आवश्यक और कीमती चीजें भी साथ ही लाने का निर्णय किया। क्योंकि अब हमारे गांव के घर में कोई भी नहीं रहता था ।
हम आने लगे तो बीच वाले कमरे की आलमारी में एक जंत्री रखी थी । मेरी पत्नी ने कहा - हमारे घर पर जंत्री भी तो नहीं है। इसे ले चलतें है काम ही आएगी । अगस्त चल रहा है अभी चार-पांच महिने तो काम आएगी।
ऐसे में मैंने कहा - क्या काम आएगी जंत्री? कैलेण्डर है ना घर पर ।
अरे आपको नहीं पता , पत्नी ने जंत्री को हाथ में उठाकर बेग में रखते हुए कहा - बरसों से देखते आ रहे हैं कैलेण्डर में जंत्री वाली बात कहां?
कैलेण्डर में कई बार तीज-त्य़ोहार , व्रत और तिथियां स्पष्ट रूप से कहां दिखती है। साल में तीन से चार बार तो चौथ का व्रत ही गायब कर देता है यही कैलेण्डर। पता ही नहीं चलता तीज के दिन है या चौथ के दिन । फिर पता है ना आपको फोन करके पिताजी से ही पूछना पड़ता था जब से गांव छोड़ा है।
मेरी समझ में आ गई थी जंत्री की विशिष्टता और महत्व।
फिर उसने पुनः बेग से निकाल कर जंत्री खोलते हुए कहा - ये चौघड़िया, ये राशिफल, ग्रहण की पूरी जानकारी सूतक और मोक्ष की अवधि, लोप होती तिथियां और न जाने कितनी बातें हैं जो अखबार के साथ आने वाले कैलेण्डर में नहीं मिलती। इसलिए घर में जंत्री तो होना बहुत जरूरी है।
लगभग मेरी समझ में पूरी बात आ चुकी थी। मैंने सहमति देते हैं कहा - हां तुम सही कहती हो। बहुत जरूरी है जंत्री भी घर में।
फिर याद आया पिताजी की किताबों के संग्रह में बहुत रुचि थी। एक कच्चे घर में लकड़ी की संदूक में उनकी खुद की लाइब्रेरी थी।लोग किताबें ले जाते थे पढ़ने के लिए और दे जाते थे वापस।
एक और बड़ा शौक कहूं या संग्रह लेकिन साल खत्म होने पर हम कैलेण्डर को रद्दी में बेच देते हैं क्योंकि उसकी अहमियत लगभग समाप्त प्रायः सी हो जाती है।
लेकिन उन्होंने कभी भी जंत्री को साल समाप्त होने के साथ गैर जरूरी नहीं समझी। पच्चीसों सालों की जंत्रियां उनकी लकड़ी की संदूक में ज्यों की त्यों सलीके से जमी रहती थी।
उस जमाने में न मोबाइल था न कम्प्यूटर। समय के आकलन और बरसों पुरानी तिथियों की पड़ताल जरूरत पड़ने पर जंत्रियों से ही पता लग पाता था।
हालांकि कई बार हुआ था ऐसा लेकिन जब मैं बहुत छोटा था हमारे गांव में एक साहूकार थे, लेन-देन और जमीनें तथा जेवर गिरवी रखने का उनका कारोबार चलता था । एक किसी पुराने मामले में तिथियों का स्मृति से विलोप होना एक संयोग रहा होगा। उस जमाने में तारीखों के साथ तिथियां और सुदि-बुदि लिखने का प्रचलन था। माह के अनुसार एक कागज पर लिखकर अंगूठा लगवा लिया जाता था या हस्ताक्षर करवा लिए जाते थे बल्कि तारीखें कम और हिंदी माह और तिथि लेखन की ही परम्परा होती थी ।
उस मामले में भूल किस पक्ष से हुई ये किसी को पता नहीं लेकिन साक्ष्य के रूप में बीस साल पुरानी जंत्री मिले तो सब कुछ दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए।
होना वही था विवाद बढ़े इससे पहले दोनों पक्षों को मेरे पिताजी के संग्रह की याद आ गई, फिर क्या था पड़ताल चली । पिताजी की लकड़ी की संदूक में से वही बीस साल पुरानी जंत्री ज्यों की त्यों रखी मिली। तिथियां मिलाई गई। अधिकमास अर्थात तेरह मासा सालों की गणना की गई और पूरे मामले का निस्तारण हुआ।
मुझे याद है पिताजी ने ये भी कहा था कि लगभग चालीस वर्षों की जंत्रियां संग्रहित थी उस लकड़ी की संदूक में लेकिन समय साथ-साथ हम चारों भाई बड़े हुए और किताबें पढ़ना सीखने लगे तो वही जंत्रियां एक-एक करके उसी लकड़ी की संदूक में व्युत्क्रम से जमने लगी फिर बाद में तो संदूक से बाहर आई और वापस कभी भी नहीं रखी गई। संग्रहित जंत्रियां और किताबें एक-एक करके कम होने लगी । वरना आज तो यो समझो लगभग साठ सालों की जंत्रियां मिलती उसी संदूक में।
अब संदूक भी नहीं रही और न पिताजी। हाथ में मोबाइल आया तब से तो हम भूलते ही जा रहें हैं किताबों और जंत्रियों का महत्व।
खैर हम पिताजी की जंत्री शहर के घर में ले आए और दीवार पर लगे कैलेण्डर की असमर्थता उपरांत दराज से निकालकर जंत्री को ही अंतिम सत्य के रूप में साक्ष्य मानते रहे हैं।
फिर साल खत्म हुआ तो दिसंबर के आखरी सप्ताह में पत्नी ने आवश्यक चीजों की फेहरिस्त में जंत्री भी लिख दी थी ।
वही नई जंत्री फिर से इसी दिसंबर के महिने के अंत में पुरानी हो जाएगी। शायद संग्रह तो नहीं हो पाएगा लेकिन हर साल प्राथमिक चीजों की सूची में जंत्री सर्वोपरि रहेगी।
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हरिचरण अहरवाल
कोटा राजस्थान
9950365312
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