| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | व्यंगकार |
| प्रेषण दिनांक: | 04-01-2023 |
| उम्र: | 35 |
| पता: | गढ़वा झारखंड |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
भूत, भगवान और मैं।
भूत, भगवान और मैं
बोलते बोलते हार मान गए थे घरवाले, की हनुमान चालीसा याद कर लो, जब भी डर लगे जोर जोर से उच्चारण करने लगना। लेकिन मैं निकम्मा आज तक विद्यालय में भी, हिंदी की कक्षा में पढ़ाई जाने वाली कविता में भी, सिर्फ "हवा हूं हवा, मैं बसंती हवा" के इसी लाइन को याद कर पाया, मजाल है की दूसरा लाइन याद हो जाए। मेरे इस याद न कर पाने की प्रवृति ने मेरे आराध्य शिक्षक को, उनकी धर्मपत्नी द्वारा नित्य दिए जाने वाला कुढन को कम करने का प्रयास किया, क्योंकि वो घर का गुस्सा, सुनाओ कविता के माध्यम से निकालने लगे थे, खजूर और बांस का कई डंडा टूट गया, लेकिन मजाल है की हम याद कर लें। जब से सुना की "भूत पिसाच निकट नही आवे, महावीर जब नाम सुनावे" कहने पर दुर्जन लोग दूर भागते हैं तब इसी पंक्ति को आत्मसात किया। अब कक्षा में जैसे ही हमारे हिंदी के अराध्य शिक्षक आते मन में उच्चारण शुरू कर देता। यकीन मानिए उस दिन गुरुजी मुझसे सही में कुछ नही पूछते।
मेरे घर के नजदीक ही स्वर्ग द्वार अर्थात शमशान हैं जहां से मृतात्मा स्वर्ग को प्रस्थान करते हैं। रात ग्यारह बजे के बाद उस स्थान से गुजरना एक चुनौती होती है। एक बार एक शादी समारोह में गया और वहां से निकलने में रात के बारह बज गए। बारह सिर्फ रात का ही नही, बल्कि मेरा भी बजा था क्योंकि स्वर्ग द्वार के रास्ते से मुझे लौटना था, वो भी अकेले। मैं मूड पानी में भी था, सो कदम भी लड़ खड़ा रहा था, उस दिन मुझे एहसास हुआ की हनुमान चालीसा याद कर लेना चाहिए था। घुप्प अंधेरा और उस अंधेरे में कुत्ते भौं भौं करके मेरा नमस्कार लगातार किए जा रहे थे। और मैं, बस "भूत पिसाच निकट नही आवे, महावीर जब नाम सुनावे" जोर जोर से उवाच रहा था। साथ में महामृतुंजय महामृतंजय कहते जा रहा था। तभी अचानक एक सफेद कपड़े पर नजर गई, सहम गया। लगा अब जीवन यात्रा इसी स्वर्गद्वार से पार लग जायेगी। वो अचानक मेरे सामने, मुझे भक मार गया था। बिना किसी के बोले सावधान की मुद्रा में मैं खड़ा हो गया। सांस भी ऊपर नीचे नही हो रहा था।
अचानक वो मुझसे बोला - डरो मत मैं भगवान। (जो लोग चना चबेरन पसंद करते होंगे उन्हें पता होगा की समाहरणालय के गेट के पास भगवान चना बेचते हैं)
चेहरा दिख नही रहा था, इसलिए मैंने नम्रता से पूछा ठेला कहां है भगवान जी। वो बोलें की अरे मुरख मैं शंकर भगवान, तेरे डर को कम करने आया हूं। मैं बोला आपके गर्दन में सांप और जटा में मां गंगा दिख नही रही हैं। आप यहां कर क्या रहे हैं तो वो बोलें बस शांति के साथ उपासना कर रहा था। मेरे मुंह से निकला भगवान सबसे पहले यहां से शांति को उसके घर भेजिए, क्योंकि यहां महुआ रानी के शौकीन लोग आते हैं, कहीं नाली से उठकर आ गए न तो कुल भगवान बनल हो जाई राऊर।
वो बोले की "नादान पहचान मुझे,
अगर चाहिए डर से मुक्ति तुझे।"
मैं बोला अब तो फिक्र मुझे सिर्फ शांति की है, और हां भगवान तू भी जा अपने घर और मेरे आगे आगे चल।
वो बोले की मुझे लोग भोला कहते हैं, मैं भक्त की छोटी छोटी बातों पर प्रसन्न हो जाता हूं और अगर क्रोधी हुआ न, तो सारे संसार को भस्म कर देता हूं। मैं बोला लेकिन भस्मासुर तो आपको भस्म करने को उतारू था और आप भाग रहे थे। खैर जब दर्शन दे ही दिए हैं तो कुछ वरदान भी दे दीजिए। वो बोले मांग क्या मांगता है, मांग जो मांगेगा वो दूंगा। कहते हैं न की बुद्धि विवेक के अनुसार ही आदमी कामना करता है। मैं बोला प्रभु ज्यादा कुछ नहीं, बस तीन वरदान दो मुझे -
०१- मुझे सर्वश्रेष्ठ चुगलखोर बनाओ, ताकि मैं अपने पेट में उपजे गैस का इलाज स्वयं कर लूं, क्योंकि मुझे कोई बात पचती नही। इस से कई लोग मुझसे अलग थलग रहने लगे हैं, चुगलखोर कहते हैं लेकिन मैं सर्वश्रेष्ठता के उच्च बिंदु को प्राप्त करना चाहता हूं, ताकि आने वाले भविष्य में मुझे कोई पार्टी, मेरे इस अद्भुत गुण के कारण राज्यसभा भेज दे, फिर तो मेरा जीवन धन्य।
०२ - मेरी धर्मपत्नी मुझे बहुत मारती है, गाली देती है, उपहास करती है प्रभु, कौन होगा जो अपनी बीबी से शादी के दिन पीटा होगा, वरमाला होने को था और मैं थोड़ा अकड़ गया था वो कद में छोटी थी, उसे आया गुस्सा और चटाक। इतना पर कैमरे वाला बोला वंस मोर, फिर उसने दिया एक थाप। बस उसका मानसिक परिवर्तन कर दो प्रभु, फिर तो जीते जी मैं स्वर्ग का मजा लूंगा। वो मुझे भगवान समझे और नित्य नए नए पकवानों से मुझे भोग लगाए।
०३ - मुझमें एक शक्ति और प्रदान करो भोले, की मैं जब जी चाहे सबके फटे में अपनी टांग अड़ाऊ और लोग मुझे चमेट न मारें।
उन्होंने तथास्तु कहा और मुझे घर तक छोड़ा। तब से आज तक मैं ऐसा ही हूं। लोग मुझे देखते ही राह बदल लेते हैं, ये अलग बात है की इन गुणों से परिपूर्ण लोगों का संख्या अधिक है, लेकिन लोक लाज और स्वंम सम्मान में इतने डूब चुके हैं की उन्हे अपना सब अच्छा और दूसरे का सब बुरा दिखता है। खुद चोरी करें तो राष्ट्र कल्याण में योगदान और मैं चोरी करूं तो राष्ट्रकल्याण का अपमान।
बाकी सब फर्स्ट क्लास है। इस लोक में जहां इंसानों की कद्र नहीं तो भगवान की क्या करेंगे लोग। मंदिर से मूर्ति चोरी होती है यहां, और चोर भविष्य में खुद भगवान बन बैठते हैं।
मेरा तो एक ही सिद्धांत है की
"हो जिन्हे शक वो करे भगवान की तलाश,
हम तो बस इंसानों में भगवान देखते हैं।"
दुखी मन इस मृत्युलोक में वही खुश, जो उंगली करना जानता हो।
बाकी सब फर्स्ट क्लास है।
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