| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | व्यंगकार |
| प्रेषण दिनांक: | 14-12-2022 |
| उम्र: | 35 |
| पता: | Garhwa, jharkhand |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
दर्द सहेंगे, कुछ ना कहेंगे, चुप ही रहेंगे हम, प्यार में तेरे सनम।
*दर्द सहेंगे, कुछ ना कहेंगे, चुप ही रहेंगे हम, प्यार में तेरे सनम।*
हूक-सी उठती है मन में– काश हम भी लिख पाते अपना दर्द, पर उस हूक को हम समझदारी से ज़बरियन दबा देते हैं। तब हमें अहसास होता है कि विद्रोह कैसे कुचले जाते होंगे।
देह के बरियार थे दुबे जी! यानी मैं। पुलिस के एतना मार बजने के बाद भी मुस्कुरा रहे हैं! कोई कम बात है।
बरियार अइसे ही हो गए, बरियार बनाई हमर मेहरारू, उनका बेलन आऊ झाड़ू। जहां मन जे खराब हुआ हमर गाय जयसन मेहरारू के, तो ले बेलन, ले झाड़ू, ले जूता, ले चपल। धर के काने कपार खोल देती थी। जब तक देह बामे बाम न हो जाए, तब तक मिजाज से धोती थी। का कूटेगा दरोगा जे हमर मेहरारू हमरा कुटती थी।
शादी के समय जब पहली बार लड़की देखने गया तो मेरी सासु मां ने कहा था - आंख देखिए मेरी बेटी का हिरण जैसा है, चाल मोरनी जैसी, सीधा तो गाय जैसी है। साला उसी समय हमको समझ जाना चाहिए था की इस औरत में इंसानों जैसा कुछ भी नही, सब जानवर वाला गुण भरा हुआ है। प्रारंभ के वर्षों में तो मत पूछिए, प्यार ही प्यार बेशुमार। फिर समय के कुचक्र ने मुझे जकड़ा। मुझे बीबी हमेशा से बहुत अच्छी लगती है बशर्ते वो दूसरी की हो। मेरी लक्षण से वाकिफ होने में मेरी भागवान को ज्यादा वक्त नहीं लगा। मेरे मोबाइल में जब डिश टीवी, बजाज, कस्टमर केयर का फोन नित्य आने लगा तो एक दिन मेरी लाजो ने फोन उठा ही लिया और उधर से एक लड़की द्वारा मुझे पूछने पर ........मुझसे बिना कुछ पूछे मेरी वो मरम्मत की की मत पूछिए।
वो मेरे साथ किसी धार्मिक स्थल पर भी जाती तो भगवान से ज्यादा मेरे हरकतों को श्रद्धा से देखती ताकि वो मेरी संध्या आरती करके आराम से सो सके। सच कहूं तो उसके हाथ में जादू था जब गर्दन पर पड़ता तो एक सिहरन होती, पीठ पर पड़ता तो गुदगुदी। नरक तो तब मचना शुरू हुआ जब वो बेलन को इस्तेमाल में लाना शुरू की। चोट ज्यादा लगता था। फिर उसके आदत में डंडा शामिल हुआ, लेकिन हृदय उस वक्त कांप गया जब वो पसुल लेकर मारने दौड़ी, मैं चिल्ला कर न बोलता की 'विधवा हो जाओगी' तो उसने चला ही दिया था। उस दिन बाल बाल बचा और भगवान को अगले दिन बतासा का भोग भी लगाया।
जब भी कभी प्यार से पूछता की हिंसा क्यों करती हो गांधी के देश में तो वो द्रौपदी जैसे अपने बाल खोलकर मेरी तरफ उग्र नजरों से देखती, मैं समझ जाता की ये मुझे धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन ही समझती है।
वो तो भला हो शुक्ला जी का जिन्होंने मुझे पत्नी पीड़ित संघ का आजीवन सदस्य मात्र एक हजार रुपए में बनवा दिया। रोने कलपने का सुरक्षित और संगठित क्षेत्र कहां मिलता है भला।
एक से एक पत्नी पीड़ित को देख कर मन में संतोष होता की मैं अकेला नहीं हूं। श्रीवास्तव जी बताए की कैसे एक दिन उनकी पत्नी में माता सवार हो गई। बेचारे रात को थके मांदे सोए थे की लगभग बारह बजे के करीब उनकी धर्मपत्नी जी में माता ने प्रवेश किया और फिर श्रीवास्तव जी को दु दु पोरसा उठा के लगी भौजी बजाड़ने, छतिया पर बैठ के लगी कूटने, लालसा तो खून पीने का ही था लेकिन किसी तरह श्रीवास्तव जी ने अपनी जान बचाई। बेचारे अब कुकुर निंद्रा लेते हैं, जरा सी आहट हुई नही की बचाओ बचाओ कह के बाहर भागने लगते हैं। हम देश के जिम्मेदार वोटर हैं और सरकार का चुनाव करते हैं, सरकार हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी ले और प्रहरी नियुक्त करे हमारी सुरक्षा में। बेलन सॉफ्ट रबर का बनवाए, आखिर सरकार में बैठे पुरुष भी तो पति होंगे, जो नही हैं, वो तो महापुरुष हैं और जीते जी स्वर्ग का आनंद ले रहे हैं।
और पत्नियों तुम सब भी कान खोल कर सुन लो, हम बुलेटप्रूफ परिधान पहन कर सोएंगे, और दर्द सहेंगे, कुछ ना कहेंगे, चुप ही रहेंगे हम, प्यार में तेरे सनम।
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