क्योंकि शिक्षक भी कभी विद्यार्थी थे

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ब्लॉग प्रेषक: राजीव भारद्वाज
पद/पेशा: व्यंगकार
प्रेषण दिनांक: 24-11-2022
उम्र: 35
पता: गढ़वा झारखंड
मोबाइल नंबर: 9006726655

क्योंकि शिक्षक भी कभी विद्यार्थी थे

क्योंकि शिक्षक भी कभी विद्यार्थी थे

     मुझे याद है जब मैने अपने स्नातक के दिनों में निजी विद्यालय में पढ़ाने का विचार बनाया तब चुकी उम्र कम थी और विद्यालय में बड़ी बड़ी लड़कियां भी पढ़ती थी, कहने का तात्पर्य यह की विद्यालय शहर का नामी और प्रतिष्ठित विद्यालय था। मैं देखने में दुबला पतला लेकिन ऊर्जा से लबरेज था। विद्यालय में साक्षात्कार के दिन मैंने अपने पारंपरिक पोशाक से इतर लूज शर्ट और लूज पैंट पहना साथ में चमड़े का वो जूता जिसे भिगाकर कभी कभी आदरणीय पूज्य पिताजी से संस्कार प्राप्त करता था उसे पहना। आंखों पर हैरी पॉटर वाला गोल चश्मा। दिखने में पढ़ाकू और संस्कारी लग रहा था, जो अंदर से मैं कहीं से भी ऐसा नही था।

 मुझे प्रिंसिपल ने समझाया, देखिए इस विद्यालय के बच्चे बड़े बदमाश हैं, संभल कर रहना होगा। उदंडता की हद तक चले जाते हैं, कभी कभी बच के रहिएगा। मैने कहा आप मेरी फिक्र मत करो, अगर करना ही है तो उन सबों की करो। क्योंकि मैट्रिक के बाद पांच साल मैं उनसे ज्यादा शातिर रहा हूं। वो अगर मुझसे पानी न मांगे तो कहना। वो बोले आप नही जानते इन विद्यार्थियों को, सिवाय उपद्रव के कुछ भी नही करते हैं। मैं बोला अगर चार दिन बाद ये सभी उपद्रवी अगर मेरी शिकायत आपके पास लेकर न आएं तो कहना।

 और वही हुआ जो मैंने कहा था। लड़के लड़कियां मेरी शिकायत लेकर प्रिंसिपल साहब के पास पहुंच गए और बोले ये कैसा शिक्षक ला दिए हो ये तो हद ही हैं।

ये हम सबों को परेशान कर दे रहे हैं। क्योंकि मैंने पहले दिन से ही अभ्यास शुरू कर दिए थे। लड़के लड़कियां अलग अलग बैठे थे मैने बोला चलो सब इकठ्ठे होकर बैठो। जिसका दिल और मन जहां कर रहा है वहां बैठो। हां लड़कों अब लड़कियों के चोटी को खींचो।

तुम चोटी नही खींचोगे तो, न तुम्हे मजा आयेगा, न लड़कियों को और न हमे। तो काहे का विद्यालय और काहे का शरारत।

बच्चे ये सोचे की की ये कैसा अध्यापक है, अध्यापक का काम तो कांस्टेबल का काम होता है, दूरी मेंटेन करके रखना। मैने कहा मैं पढ़ाना तब तक शुरू नहीं करूंगा जब तक तुम सब एक दूसरे से दूध और पानी के जैसा मिले नही बैठोगे। मैने जबरदस्ती उनको मिलवा जुलवा दिया। मैने देखा की सब सिकुड़ पिकुड़ के बैठे हैं। वैसे तो पहले सब एक दूसरे पर चिट्ठियां फेंका करते थे, कंकड़ मारा करते, चोटी नोचा करते थे, लेकिन अब सब शांत बैठे थे। मैने कहा कंकड़ कहां है, चिट्ठियां कहां है। इसपर एक लड़के ने कहा आप बातें कैसे करते हैं। मैने एक जेब से छोटे छोटे कंकड़ निकाले और लड़कों में बांट दिए, बोला अब तुम सब लड़कियों पर मारो, इसके बिना मजा कहां से आयेगा। और दूसरे जेब से थोड़ा बड़ा कंकड़ निकाल कर लड़कियों को दिया और उनसे भी बोला क्रिया का प्रतिक्रिया जरूर करना। ऐसी खोपड़ी पर बजाओ इनकी की इन्हे नानी याद आ जाए। सब घबराए की अब पढ़ाई लिखाई क्या होगी, ये तो पागल मास्टर है। उन्हे क्या पता की मैं भी विद्यालय में पढ़ा हूं और आज तक पढ़ाई लिखाई तो की नही तो तुम सबको क्या पढ़ने दूंगा।

 मेरा साफ कहना था की मेरे आने के पांच मिनट बाद तक उछलो, कूदो, चॉक फेंको, बेंच तोड़ो, गंदी गंदी तस्वीर ब्लैक बोर्ड पर बनाओ लेकिन पांच मिनिट बाद सिर्फ मुझे सुनो। मन करे तो सब बाहर निकल जाओ।

मुझे पढ़ाना है सो मैं पढ़ाऊंगा, कोई रहे या ना रहे मैं बस पढ़ाऊंगा।

 प्रधानाध्यापक ने मुझे बुलाया और बोला की लड़के ऐसी ऐसी बाते आपके बारे में कह रहे हैं की आप अपनी खिसे में कंकड़ पत्थर लाते हो, मैने कहा विद्यार्थियों की सेवा करना ही तो अध्यापक का कर्तव्य है। वो बोले आप ठीक ही कहते थे वो आपको क्या सताएंगे, आप तो गुरु के साथ गुरु घंटाल भी निकले। 

और आज जब मैं अपने विद्यार्थियों से मिलता हूं तो सत्तर प्रतिशत बताते हैं की स्वतंत्रता सेनानियों के जैसा अभी अभी कारागार से निकले हैं और नई जिंदगी में कुछ सामाजिक सौहार्दता का कार्य करने को सोचे हैं। दस प्रतिशत व्यापार में लगे हैं, दस प्रतिशत रोजगार की तलाश में, पांच प्रतिशत प्रेम विवाह कर के जीवन को कोस रहे हैं और पांच प्रतिशत जो कामयाब हुए हैं वो हमारी सूरत तक देखना पसंद नहीं करते।

चलिए आज से नए विद्यालय में पठन पाठन का कार्य करने जाना है। वहां का भविष्य भी चौपट करना है।

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