| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | व्यंगकार |
| प्रेषण दिनांक: | 23-11-2022 |
| उम्र: | 35 |
| पता: | गढ़वा, झारखंड |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
दरवाजे से आते हैं, खिड़की से निकलते हैं
दरवाजे से आते हैं, खिड़की से निकलते हैं
नोट :- इस व्यंग के सभी पात्र काल्पनिक हैं यदि इनसे किसी का व्यक्तिगत जीवन मेल खाता है तो, इसे उड़ते तीर को अपने ऊपर लेना समझा जायेगा।
वैसे तो मेरा जन्म ही स्त्री उद्धार के लिए हुआ था, लेकिन उद्धार करने में कई बार मेरे शरीर का भी पुरजोर उद्धार किया नामाकुलों और नाकाम आशिकों ने मिल कर।
बात उस समय की है जब टेस्टोस्टेरॉन पूरे वेग के साथ हमारे शरीर में स्त्रावित होना प्रारंभ किया था।
बदरू की नाज़नीन निहायत ही खूबसूरत थी, खूबसूरत होने के साथ मुझपे फ़िदा जो थी इसलिए उसके खूबसूरती में चार चांद लग गए थे।
वो जब भी मिलती मुझे अपने पास बुलाती। एक दिन मुझे पता चला बदरू कहीं गया हुआ है। उसकी नाज़नीन ने मुझे कॉल किया। मैं ध्वनि की गति से उनके पास मौजूद हो गया।
प्रेमालाप प्रारंभ हुआ, संग जीने मरने की कसमें खाई, हम दोनो ने संग संग। हैरानी की बात तो ये है की हम दोनो ने न जाने कितनों के संग जीने मरने की कसमें खाई थी। फिर भी ये प्रथम प्रेम जैसा ही आभासित हो रहा था।
उनके बाल, गाल, होंठ और गर्दन की तुलना हमने क्रमशः खरगोश, बिल्ली, मछली, जिराफ जैसे जानवरों से किया। उसने भी मेरी तुलना कुत्ता, बंदर, भालू और लोमड़ी से किया था। कितनी तारीफ कर रहे थे हम दोनो एक दुसरे के...... उसका साथ मानो जन्नत। ये कोई नई बात नही है, जगजाहिर है, सभी जानते हैं। बदरू भी जानता है, पर न जाने दुष्ट को कल क्या सूझा आ कर दरवाजा खट से किया, मैं तुरंत ही जन्नत से दोजख में अपने आप को महसूस किया। आज बेटा धरा गया, मार के चाम छिल लेगा, जो भी हो। बदरू होगा तो डंडा पिछवाड़े में डालेगा, और अगर नाज़नीन के अन्य आशिक हुए तो समझो परलोक गमन की बारी।
नाज़नीन बोली - भागो बदरू आ गया, मैं हड़बड़ा गया, कपड़े भी नही पहना और खिड़की से लटक गया। सोचा - कुछ देर बाद तो बदरू निकल ही जायेगा, आराम से कपड़े पहनूंगा फिर निकल जाऊंगा। लेकिन पता नहीं उस दिन बदरू को क्या सूझा उसने नाज़नीन से पूछ दिया की किसके कपड़े हैं। नाज़नीन बोली मुझे क्या पता मैं क्या दुनियाभर का हिसाब रखती हूं जो मुझे पता चलेगा किसके कपड़े हैं। तुम्हारे ही होंगे, लेकिन तुम्हे तो मुझ पर शक करने की आदत है।
इतना सुनते ही बदरू भड़क गया। उसने सभी अलमीरा खोला, बाथरूम खोला, चूहा मारने वाला पिंजरा तक खोल के देखा और अंत में खिड़की खोली।
इतने में रात के मध्यम अंधेरे में मेरे दोनो हाथ उसे चौकटे पर दिखाई दिए। मैं उसी को पकड़ कर लटक जो रहा था। उसने कहा कोई बात नही तो ये रहे आदर्शवादी सज्जन। बदरू दौड़ के हथौड़ा लाया और या अली कहके कानी उंगली पिचक डाला, और भाई साहब, जब जब दूसरी उंगली पिचकता बदरू या अली जरूर बोलता।
जब अंतिम का कानी उंगली बचा तो मैने कहा अब गिर कर मरना ही है तो छोड़ देता हूं चौकट को। इतना कह के मैने चौकट से हाथ हटाया लेकिन ये क्या मात्र पांच इंच बाद ही जमीन था। मैं जमीन पर सही सलामत खड़ा था। बाहर का एक खिड़की अभी भी मुझे थोड़ा सा खुला दिखा और मैने या अली कह के एक लंबी सी छलांग लगा दी।
अब मुझे पता चला की "चोरी के मोहब्बत में अक्सर यही होता है, दरवाजे से आते हैं, खिड़की से निकलते हैं।
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