| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | व्यंगकार |
| प्रेषण दिनांक: | 09-11-2022 |
| उम्र: | 35 |
| पता: | गढ़वा, झारखंड। |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
छेड़ू सिंह छेड़ा उर्फ मजनू भाई
...का छेड़ा भाई सुने की कल ही जेल से बाहर आए। देखो हर कोई जे जनम लेता है ऊ किसी खास मकसद से ही इस मृत्युलोक में अवतरित होता है, और मुझे विशेष कर के छेड़ने के लिए ही ब्रह्मा द्वारा बनाया गया है। मां बताती है कैसे जन्म लेने के बाद लेडीज डॉक्टर को देखते ही एक आंख दब गया था और चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान व्याप्त था, मेरे होंठ थिरक रहे थे। शायद उसी समय मेरे पिता जी ने सोचा होगा आगे चल कर हमारा बेटा मजनू का भी बाप बनेगा।
करतूत तो मेरे पिता जी की भी वही थी इसलिए एक कहावत है न की " बापे पूत परापत घोड़ा, कुछ नही तो थोड़ा थोड़ा" असर तो आना ही था।
छेड़ा भाई का बचपन बड़े ही अभाव में गुजरा, ना ना खाने पीने की कोई कमी नहीं थी, बेचारे शुरू से ही बालक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण किए, मैट्रिक तक लड़कियों का मुंह तक विद्यालय में नही देख पाए थे, शायद यही कुढन उनके मजनू भाई बनने में अपनी महती भूमिका अपनाई।
जब आठवीं कक्षा में छेड़ा भाई पढ़ते थे उस समय बड़ी लड़कियों के प्रति उनमें आकर्षण का भाव रहता था। छेड़ा भाई बताते हैं की कैसे एक बार प्रेमपत्र देने के चक्कर में उनकी पहली कुटाई उसी लड़की द्वारा की गई थी, जिन्हे वो प्रेम पत्र देने गए थे। जैसे ही पत्र उस लड़की को दिया, लड़की ने छेड़ा भाई का झोंटा पकड़ के भुइयां में पटका और छतिया पर बैठ के दे मुक्का दे मुक्का, ठठुनवा लाल कर दी थी।
इस कुटाई के प्रथम एहसास ने उन्हें दृढ़ बनाया। जो बाद में चल कर उनके बहुत काम आया।
"अरे ओ मैडम कहां जा रही हैं, जरा एक नजर देख लीजिए मर जाएं" घरे तक छोड़ आयेंगे। जेड प्लस सुरक्षा चाहिए तो ऊ भी देंगे, बस ताकिए न एक बार। कितना भाव से उपांकित लाइन बोल बोल कर छेड़ा सिंह छेड़ा करते थे, गजब का आत्मविश्वास था उनमें, रोज सवेरे सवेरे लाल रंग के अल्ता से प्रेमपत्र लिखने वाले छेड़ा भाई गजब गजब का शायरी भी प्रेमपत्र में लिखा करते थे जैसे " लिख रहा हूं खून से कलम से मत समझना,
ये मेरा प्यार है हवस मत समझना"
इस प्रेमपत्र का दस फोटोकॉपी करके वो अपनी जेब में रख लेते थें। सुबह सुबह बाप के कमाई वाला दाल भात आऊ परोर के तरकारी ठूंस के मिशन मजनू में निकलना उनका दैनिक कर्म था।
गर्ल हाई स्कूल के पास पनवाड़ी के गुमटी में बैठ के पान आऊ आरजू से मुंह लाल करके जब वो किसी कन्या को छेड़ते तो ऐसा लगता मानो इंद्र अपनी अप्सराओं के साथ अठखेलियां कर रहे हों।
अगर गलती से कोई कन्या उनके उत्प्रेरक भाषा से प्रभावित हो जाए तो समझिए दो चार दिन के अंदर ही ऊ कन्या अपन माई से कुटाएगी और गोबर पाथने का काम मिलेगा अलग से।पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी छेड़ा भाई के लिए होली और दशहरा होता था, सभी प्रसिद्ध विद्यालय से आने वाले लड़कियों को ताड़ कर वो साल भर के लिए एक्स्ट्रा रिचार्ज हो जाते थे।
मेला या सर्कस अगर शहर में लगता तो छेड़ा भाई और उनके परम पूज्य पिताजी सरकारी दफ्तरों में पास के लिए बड़े बाबू के जी हुजूरी में जरूर लग जाते। सिर्फ एक बार शो के अंदर फिर छेड़ू ऐसा जुगाड बैठाता की पूछिए मत। पान खिलाकर वो मेला या सर्कस के कर्मियों को पटाता। फ़िर खुद पटाने में लग जाता। ऑपरेशन मजनू के स्टार प्रचारक थे हमारे छेड़ा सिंह जी। शहर में छेड़ छाड़ की घटना कही भी हो, पकड़ाते महाराज ही थे।
धीरे धीरे छेड़ा जवान हुआ, लेकिन हरकत अभी भी बचपन वाली ही थी। वसुदेव कुटुम्बकम को वो आत्मसात किए हुए था। उसकी हरकतों की वजह से कोई रिश्ता भी नही आया। आज चालीस साल के छेड़ा किसी चौक के गोलगप्पे वाले ठेले पर खड़ा होकर अपने दैनिक कार्य में लगा होगा। जय हो छेड़ा सिंह जी महाराज की.....।
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