| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | व्यंगकार |
| प्रेषण दिनांक: | 04-09-2022 |
| उम्र: | 35 |
| पता: | BIND TOLA, NAWADA |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
चरण वंदन - कलयुगी रामबाण
कहा जाता है की हर इंसान में एक अलौकिक गुण विद्यमान रहता है। कोई अच्छा खिलाड़ी, कोई उवाचने में माहिर, कोई गाली देने में पीएचडी, कोई दयावान, कोई अच्छा बेचने वाला व्यापारी, कोई खरीदने वाला खरीददार, कोई लड़ने वाला लड़ाकू, कोई समझौता कराने वाला अदभुद दलाल, कोई दुनिया को अलग दृष्टि से देखने वाला पागल तो कोई पागल बन कर दुनिया को पागल कर देने वाला शातिर।
मैने भी एक दिन गहन चिंतन किया, चिंतनोपरांत मुझे यह आभास हुआ की मुझमें चरण वंदन करने का अदभुद गुण बचपन से ही विद्यमान है। गहन चिंतन में हमने बचपन से ही चरण वंदन के द्वारा कई बार सीढ़ियों को चढ़ा और फिर कई बार धकिया के उतारा भी गया। ।
मेरे अभिन्न रिश्तेदार बताते हैं, पैदा होने के तुरंत बाद मेरा हाथ नर्स को चरण वंदित किया था फिर डॉक्टर को। पुरुष डॉक्टर से पहले मेरा नर्स का चरण वंदना मुझमें नारी के प्रति आकर्षण को इंगित किया था।
आइए वर्तमान में आते हैं। आज कल के होनहार चरण वंदन के तरीके में अभूतपूर्व क्रांति का समायोजन किए हैं। चूकी चरण वंदन हेतु आपको अपने कमर को नब्बे डिग्री झुकाना होता है, लेकिन टाइट जींस पहन कर चरण वंदन करना इस मृत्युलोक में भारी कष्ट की अनुभूति प्रदान करता है, इसलिए आज कल दो पैरों के अलावा एक तीसरे पैर को सांकेतिक रूप से बिना झुके हमारे नौजवान छू रहे हैं और संस्कारी होने का प्रमाण पत्र लेकर आशीर्वाद भी प्राप्त कर करे हैं।
आज के युवा शायद उन्हें पता है की चरण सभी ज्ञानेंद्रियों का प्रवेश स्थल है इसलिए वो डायरेक्ट ज्ञानेंद्रियों को छूकर ही आज कल करने लगे हैं - चरण वंदन।
इस प्रकार के वंदन में चरण छूने और छुवाने वाले को भी सुखद अनुभूति होती है।
कुछ निर्मोही नौजवान भीड़ भाड़ में चरण वंदन से परहेज़ करते हैं, उन्हे लगता है इस प्रकार के ढकोसला समाज को प्राचीन काल में न लेकर चला जाए, इसलिए वो भीड़ छटने का इंतजार करते हैं। लेकिन संस्कार देखिए भीड़ छटते ही वो आपका चरण वंदन करते हैं , हां भाई वही बिना झुके सांकेतिक रूप से कमर के नीचे वाले पैर को ही। मन प्रसन्न हो जाता है और मुख से एक ही आशीर्वाद निकलता है - जल्दी से जोड़ा बने तोहार।
चलिए बहुत हुई भूमिका अब अपनी कहानी पर आते हैं। नब्बे के दशक में घर पूरे परिवार से भरा होता था, कभी फूफा, कभी मौसी, मौसा, फूफा के बाबा, मौसी के देवर, फलनवा, चिलनवा। दिन भर पैर छूकर आशीर्वाद लेना पड़ता था। आशीर्वाद भी क्या मिलता " जुग जुग जिया " । अरे भाई कोई अडानी और अंबानी बनने का आशीर्वाद दे देते तो क्या हो जाता। लेकिन इससे एक फायदा हुआ की चरण वंदन का आदत विकसित हो गया। विद्यालय में गोड़ लाग लाग के शिक्षकों के नजर में पढ़ाकू बन गया, परीक्षा में कॉपी खाली भी रहता तो मास्टर जी पास कर देते। अचूक मारण क्षमता था इस चरण वंदन में। किशोरावस्था में पहुंचा तो फिल्म देखने की अच्छी और संस्कारी आदत ने जन्म लिया मेरे अंदर। सिनेमा घर में भी गोड़ छूकर ही अठारह वर्ष के ऊपर उम्र में देखने वाला सिनेमा में प्रवेश मिलने लगा। बीसियों बार हुआ होगा जब लड़की छेड़खानी में लड़की का भाई मुझे मारने आया लेकिन चरण वंदन ने हर बार कवच बन कर मुझे बचाया। बस और ट्रेन में सफर के दौरान भी इस गुण ने बहुत मदद किया। कई बार तो टीटीई भी सोचता रह गया की कहीं ये अपनी गली का बबलू तो नही। कोचायल भरी बस में कौन होगा जो ड्राइवर के आधी सीट पर बैठ कर दो सौ किलोमीटर का यात्रा करेगा। निःसंदेह वो मैं था और मेरा गुण चरण वंदन। कई बार तो रात में दस बजे सोने के बाद सपने में भोर हरिया तक पूरे गांव का चरण वंदन कर दिया करता था मैं। न तो इस चरण वंदन प्रक्रिया में किशोरावस्था तक कोई जाति बाधक था और न ही धर्म। बस करना है तो करना है - चरण वंदन। देखिए भाई, अगर किसी को उसकी मेहरारू मारती है तो उसका भी उपाय है - चरण वंदन। बंद कमरा में कौन देखता है और हां बाहर शेर जैसा बर्ताव करना है। पानी और जमीर वाला आदमी हैं हमलोग, मेहरारू अगर कह दी की सावधान तो सावधान, विश्राम तो फिर विश्राम। बस एक ही चीज याद रखना है वंदन, चरण वंदन।
मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि
" मैं शौहर हूं किसी और का, मुझे मारती कोई और है " क्या करूं। मैने प्यार से कहा - चरण चुम्बन। लेकिन कहते हैं न विशेष प्रकार के गुणों को हर युग में अलग अलग प्रकार के लोग अपना कर अपना तथा सिर्फ अपना ही भला करते हैं, दुर्भाग्य से मैं उसमे नही था। ना तो मैं किसी नेता का चरण चुम्बन कर अधिकारी बना, न ही जनप्रतिनिधि। मैने कोशिश की चरण चुम्बन और वंदन कर इस दुनिया में कुछ कर दिखाने की लेकिन जिसका नियमित और लगातार चरण वंदन किया वो मुझसे भी ज्यादा चरण चुम्बन में माहिर मिला। और वो कामयाब होते चला गया।
मैने हिम्मत नही छोड़ी है। जब मोरारजी भाई बुढ़ापे में देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं इस गुण को अपना कर तो क्या मैं .....
खैर मुझे अपने काबिलियत ( चरण वंदन) पर पूरा भरोसा और विश्वास है - हम होंगे कामयाब, एक दिन।
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