गुप्तरोग - मन का रोग।

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ब्लॉग प्रेषक: राजीव भारद्वाज
पद/पेशा: व्यंगकार
प्रेषण दिनांक: 03-09-2022
उम्र: 35
पता: गढ़वा झारखंड
मोबाइल नंबर: 9006726655

गुप्तरोग - मन का रोग।

    भारतीय रेल में सफ़र के दौरान मुझे पता चला भारत कितना बीमार है । शीघ्रपतन, अत्यधिक हस्तमैथुन, धात, नस में कमजोरी इत्यादि रोगों का समाधान करने वाले विज्ञापन, जो कभी एम आलम, नौशाद परामर्श केंद्र, हासमी दवाखाना के नाम से चुना पत्थर से लिखा हुआ देख कर मन अत्यधिक व्याकुल हो गया।

    विज्ञापन देख ही रहा था की एक अधेड़ उम्र के चाचा बोले - मारो साला ई सब डॉक्टर अइसन गली में बैठता है की पहुंचते पहुंचते ही लगता है की शीघ्र पतन हो जायेगा।

     न चाचा सुने हैं सनटू भी दिन रात अश्लील सिनेमा मोबाइल पर देखता है, कई बार तो उसे बेहोशी के हालत में बाथरूम से निकाला गया है, उसका भी इलाज एम आलम ही कर रहे हैं। कातो चार हजार का पेकेज लिया है, उस पेकेज में महीना भर का पुड़िया, चार जीबी का पेन ड्राइव और सांडा का तेल दिया है, गारंटी के साथ। जेठन भईया तू काहे परेशान हहू जी, एकदम पहलवान जैसन शरीर है, रोज सौ दंड लगाते हैं, कसरती शरीर है। एक समस्या है भाई - जब कहीं जाते हैं और डॉक्टर आलम साहेब का विज्ञापन देखते हैं तो साला लगता है अंदर से बीमार हैं। विज्ञापन देख कर लगता है बीमार हैं, तो आपको मानसिक अस्पताल का जरूरत है, गुप्त रोग के डॉक्टर का नही। अब तोरा से का छुपाएं - सासाराम स्टेशन के पीछे पुरानी गली में गए थे, विज्ञापन में एड्रेस देख कर। बड़ी तंग गली था। सब आवारा लैकन ऐसन देख रहा था हमको जैसे हम कोई काम के ही नही, हमको अपनी मेहरारू याद आ गई थी ऊ भी ससुरी ऐसे ही देखती थी।

     डॉक्टर साहब के क्लिनिक के बाहर एक आवारा लड़का तो हमरा पर तंज भी कसा, बोला की डिस्काउंट दिला दे की आपके घर ही चले। बताओ तो आदमी के उत्साह घटबे न करेगा।

    क्लिनिक में घुसते ही पंजीयन रूम की तरफ इशारा करके मुझे भेजा गया। बड़का रजिस्टर में बड़का चश्मा लगाकर बड़का हाथ और गोड़ वाला एक बड़का आदमी बैठा था जो बड़का कलम से रजिस्टर में कुछ बड़का ही लिख रहा था। ये देख कर मन में संतोष हुआ, लगा सही जगह आए हैं।

    नाम बोलिए हम्हू झूठ बोल दिए की हमरा नाम ज्योति है। हमरा नाम सुनके ऊ मुस्कुराया बोला बाप का नाम प्रकाश लिख दें। हम बोले लिख दो, साला कौन सा हम अपना असली नाम बोले थे जे हमको बुरा लगता।

     उम्र - हम बोले पचास। ओ, मतलब एक्सपायरी के आस पास। हम झेंप गया। अंदर जाते ही खेसारी बीघा के मुखिया जी, सागौन के प्रमुख और जामा के दरोगा भी दिखाई दिए। सब के सबके साथ आंख लड़ी और सबने एक लजाइल सा मुस्कान के साथ एक दूसरे का अभिवादन किया। देखिए न आंख के परेशानी था हो इसलिए ...... आगे मत बताइए, हम परेशानी समझते हैं।

     खेसारी बीघा के मुखिया जी ने बताया की हमको बच्चा नहीं हो रहा है इसलिए हम डागडर साहेब के सेवा लेने आए है, बड़ी जगह इलाज कराएं लेकिन कोई फायदा नही हुआ। मुखिया जी कब विआह हुआ ?  जेठण भईया पूछे ! बियाह ! मुखिया जी बोले की बियाह ही तो नही हुआ है। जा मरदे तबे न। लेकिन बच्चा के लिए विवाह होना जरूरी है।

     न जी, देखिए न हमको भी एक बीमारी है, जेकरा से लड़ाई करते हैं वोकर मोबाइल नंबर ट्रेन के शौचालय में लिख  देते हैं और नंबर के नीचे रात में संपर्क करें भी लिखते हैं। इसको बीमारी नहीं मन बढ़ाई कहते हैं महाराज। वैसे आप इस काम को गुप्त तरीके से ही करते होंगे तभी तो आपको लगा की ये भी गुप्त रोग की श्रेणी में आता है। धन्य हैं महापुरुष बदलते हिंदुस्तान में अब समझ में आया की समुदाय विशेष शौचालय और ट्रेन का शौचालय अजीबोगरीब कलाकारी से क्यों भरा रहता है।

  डॉक्टर साहब आ गए, चलिए छः नंबर अंदर जाइए !

     हां जी बताइए का तकलीफ है ?  जी तकलीफ ! हम कान में बताएंगे। देखिए यहां हमारे आपके अलावा कोई नहीं है। नही डॉक्टर साहेब दीवार के भी कान होता है। अरे भाई जब आप अंदर तसरीफ लाए तब दीवार आपको देख चुका है, और हां आंख का काम कान से बेहतर होता है।

      जी तकलीफ ई है की ......बोले में लाज लग रहा है। कोई बात नही आप पहले लजा लीजिए जब लजाने का काम हो जाए तो तकलीफ बताइए। छोड़िए आप लिख के दीजिए।

     देखिए मन चंगा तो कठौती में गंगा। आप महान हैं डॉक्टर साहेब " गंगा ही तो नही बह पा रहा है कठौती में, आप अंतर्यामी हैं। अरे भाई हम उदाहरण दिए थे आप तो अलग ही मतलब निकाल लिए। मतलब यही रोग है न। जी साहेब यही।

     देखिए हमारे यहां चार तरह के पेकेज है, बाहुबली चार हजार का, चरम सुख पैंतीस सौ, उत्थान तीन हजार का और अनुभूति पच्चीस सौ का। कौन सा पेकेज लीजिएगा ?

     ई सब में का का आता है ? बाहुबली में हम महीने भर का तेल, चूरन, महान साहित्यकार मस्तराम की रचनाएं और आठ जीबी का देशी विदेशी लोडेड पेन ड्राइव उपलब्ध कराते हैं। चरम सुख में पेन ड्राइव नही देते हैं, उत्थान में साहित्य और पेन ड्राइव नही मिलता है और अनुभूति में महीने सिर्फ तेल और वेबसाइट का लॉगिन आईडी उपलब्ध कराया जाता है।

    बाहुबली, बाहुबली यही ठीक है, लेकिन ठीक हो जायेंगे न। देखिए दवा के साथ दुआ की भी जरूरत है,इसलिए दो चार लोगों से दुआ भी करवाइए, और अगर दुआ देने वाले न मिलें तो दो चार रोगी मेरे पास लाइए हम ही दुआ दे देंगे।

    आज पूरे एक साल हो गए, चूरन फांक फांक के मुंह साला चूरन जैसा हो गया, तेल लगा लगा के तेल निकल गया और साहित्य पढ़ पढ़ के जुबान गंदा हो गया लेकिन रोग से निजात नही मिला।

    बीमारी, कोई भी बीमारी है, आप जितना छुपाएंगे उतना ही बढ़ेगा, इसे गुप्त ना रखे क्योंकि गुप्त है तभी तो रोग है।

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