प्राणिमात्र के कल्याणार्थ सनातन सभ्यता संस्कृति प्रकृति के पूजक

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ब्लॉग प्रेषक: अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, सामुदाय सेवी व प्रकृति प्रेमी, ब्लॉक मिशन प्रबंधक UP Gov.
प्रेषण दिनांक: 01-06-2022
उम्र: 32
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

प्राणिमात्र के कल्याणार्थ सनातन सभ्यता संस्कृति प्रकृति के पूजक

    नालंदा का खंडहर एवं पटना के पास बख्तियारपुर जंक्शन यह स्मरण दिलाने के लिए काफी है कि तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी। ऐसा माना जाता है कि विश्वविद्यालय में इतनी पुस्तकें थी की पूरे तीन महीने तक यहां के पुस्तकालय में आग धधकती रही। उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को मार डाले। खिलजी ने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्जा जमा लिया तथा लूट-पाट किया।

   नालंदा विश्वविद्यालय विश्व का सबसे प्राचीनतम पुस्तक संग्रहालय भी था जहाँ दुनिया की लगभग समस्त पुस्तक, ग्रंथ मौजूद थे। यहाँ जलाये जाने के पश्चात विद्वानों ने पुनः उसी का समरूप पुस्तको का रचना किया होगा।

   विश्व की सबसे प्राचीन और प्रथम धर्म है सत्य सनातन धर्म। धर्म कोई विवादित शब्द नहीं हो सकता धर्म का एक ही तात्पर्य है जो सत्य अहिंसा, आपसी एकता सौहार्द प्रेम एवं भाईचारे पर आधारित जाती-पाती भेद-भाव, ऊँच-नीच से परे आत्मिक कल्याण और सामाजिक कल्याण तथा सरोकार की आनंदमयी मार्ग हो।

    सनातन धर्म से ही बौद्ध, सिख, इस्लाम, ईसाई एवं जैन धर्म का उदय हुआ है। भगवान गौतमबुद्ध भी ज्ञानत्व प्राप्ति के पूर्व सनातनी राजा के ही संतान थें। 

   सनातन धर्म कोई किसी एक वर्ग जाती धर्म समुदाय का संस्कृति नहीं है यह तो प्राणी मात्र, विश्व के मंगल हेतु एक उत्तम आचरण है। सनातन धर्म तो प्रकृति पूजक के समर्थक है तभी तो इस धर्म के मानने वाले लोग नदियों, पहाड़ो अन्न उपजाऊ भूमि को पूजते हैं। जब सनातनी देवी देवताओं के पूजन परंपराओं पर गहराई से गौर करेंगें तो पायेंगें की वास्तव में वह कोई प्रकृति प्रदत्त अज्ञात शक्ति जिसकी मानव मात्र की मूल-भूत आवश्यकता है जिसके बगैर जीवन जीने की कल्पना नहीं कि जा सकती उस अज्ञात एवं मूल्यवान प्रकृति तत्वों को धन्यवाद कृतज्ञता स्वरूप पूजा अर्चना किया जाता है। जैसे अग्नि पूरे विश्व के देशों की आवश्यकता है, पानी के बिना जगत की परिकल्पना नहीं कि जा सकती, हवा के बिना हम एक पल भी जी नहीं सकते, अनाज के बिना भूखे मरना होगा, बुद्धि विवेक के बिना आपस मे लड़-झगड़ के सत्यानाश हो सकता है। धन के बिना वैभवता, संपन्नता कहा संभव है तथा शक्ति के बिना दुर्बल लाचारी... आदि आदि तमाम तेंतीस करोड़ देवी देवता किसी न किसी शक्ति अज्ञात ऊर्जा के ही श्रोत है जिनका एक काल्पनिक मनगढ़ंत आकर देकर उस शक्ति के प्रति आभार जताना ही जिसे लोग ढोंग और बकवास पूजा पद्धति समझते है दरअसल में वह सनातन सभ्यता संस्कृति प्रकृति रक्षण के प्रति संवेदनशील उदारता एवं अर्पनता की भावना ही प्रकृति सेवा प्रकृति पूजा है।

  आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि प्रकृति के दोहन कर हम इंसान इस वसुंधरा पर बहुत दिन तक अमन-चैन से नहीं रह सकते। 

  उदहरानर्थ जल के दुरूपयोगिता के संदर्भ में कोई सोंच-विचार नहीं कर रहा, यदि बर्बाद हो रहा है तो मेरा क्या जाता, सार्वजनिक स्थानों पर नल के पानी बह रहा है तो कोई बंद करने वाला नहीं पर सच्चे सनातनी या किसी भी धर्म के ज्ञानी विवेकी पुरुष जल और पूरे मानव समाज के संबंध इतिहास, वर्तमान एवं भविष्य से जोड़कर देखता है और उसे ईश्वर समझ कर उसकी दुरूपयोगिता को रोकता है यही तो है प्रकृति पूजा जो सनातनी अनादि काल से करते आएं है और इनकी ग्रंथो में यही मानवता सामाजिक सरोकार की बाते ही तो बढ़-चढ़ कर मिलती है।

  आज कई ऐसे लोग है जो सनातनी ग्रन्थों को बेबुनियाद बताते है इसे झूठा और छल कपट प्रपंच आदि साबित करने पर लगे हैं पर वे वह मक्खी के समान ही तो हैं जो पूरा सुंदर शरीर को छोड़ कर छोटे से घाव पर बैठें हैं। तत्वज्ञानी पुरुष तो वह है जो सभी धर्मों के पुस्तकों को पढ़ता है तथा जिसमे जो चीज आत्मकल्याण एवं समाजकल्याण की मिली उसे ग्रहण कर लिया बाकी पर विचार ही नहीं किया।

  अतः वर्तमान में कोई जाति-धर्म मजहब खराब नहीं है तथा न ही किसी का निंदा करना एवं छोटे दृष्टिकोण से आंकना चाहिए सभी समय काल एवं ईश्वर की इच्छा से ही पनपे हैं तथा सभी में मानव जगत एवं ब्रह्मांड कल्याण की रहस्य छुपी हुई है इसे किस प्रकार व्यक्ति ग्रहण करता है यह उस पर निर्भर करता है, क्योकिं तर्कशास्त्र एक ऐसी विधा ईश्वर ने ही इजात किया है जिसके प्रयोग से सत्य को असत्य एवं असत्य को सत्य कई दृष्टांतो के माध्यम से साबित किया जा सकता है। इसलिए संसार के समस्त रचनाओं में एक ही परमशक्ति परमात्मा को देखकर केवल सकारात्मक पहलू ही ढूंढना चाहिए। निंदा न किसी के सुने तथा न ही किसी का निंदा करें।

सबका मंगल, सबका भला हो👏


अभिषेक कुमार

अंतर्राष्ट्रीय समाज सेवा अवार्ड, विश्व संत कबीर अवार्ड एवं भारत साहित्य रत्न से सम्मनित

जयहिंद तेंदुआ, औरंगाबाद, बिहार

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