व्यथा - निरीह चुनावी कर्मी का।

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ब्लॉग प्रेषक: राजीव भारद्वाज
पद/पेशा: व्यंगकार
प्रेषण दिनांक: 29-05-2022
उम्र: 35
पता: गढ़वा, झारखंड
मोबाइल नंबर: 9006726655

व्यथा - निरीह चुनावी कर्मी का।

व्यथा - निरीह चुनावी कर्मी का।

  पंचायत चुनाव की घोषणा क्या हुई की सरकारी बाबू जो कलेक्टर कार्यालय में कार्य करते थें, का प्रतिनियोजन कार्मिक कोषांग में हो गया।

   सभी विभाग से कर्मियों का नाम मांगा गया, जो चुनाव कार्य को सम्पन्न करा दें। जिला अधिकारी का स्पष्ट निर्देश था की पंचायत चुनाव में पारा शिक्षक तथा वैसे कर्मियों को ज्यादा लगाया जाए, जो संविदा के आधार पर सरकार से वेतन प्राप्त करते हैं। चूकि विधानसभा और लोकसभा का चुनाव होता तो शायद संविदा कर्मी इसके चपेट में ज्यादा नहीं आते, लेकिन चुनाव पंचायत का था, इसलिए कम योग्यता वाले, संविदा और पारा शिक्षकों पर ज्यादा भरोसा किया गया। वैसे भी जानकार और सक्षम तो पूर्णतः सरकारी कर्मी होते हैं, भले ही वो अनुकंपा का लाभ लेकर ही क्यों न आए हों।

   अवधेश जी चुनाव में जाना है, काहे नहीं कार्मिक कोषांग के बड़ा बाबू से कह के नाम कटवा लेते हैं। देखिए तो राजू और अमलेश जी दो सौ में ही नाम कटवा लिए, कम से कम बक्सा कंधा पर ढोना तो नही पड़ेगा। कटवा तो लेते जी, लेकिन सुने हैं तीन हजार रुपया देगा, चुनाव करवाने के लिए। जाइए मिलिए जायेगा, ओजवार हो जाइएगा ! नही समझे आप हमको, तीन हजार नही, चुनाव का अनुभव चाहिए, सुने हैं बड़ी काम करता है। हां ठीक सुने हैं ई अनुभव से कलेक्टर बन जाइएगा।

    खैर "होइहें वही जे राम रची राखा" अवधेश जी की मनोकामना पूर्ण हुई और उन्हें कार्मिक कोषांग से पत्र द्वारा सूचित किया गया की उन्हें पंचायत चुनाव करवाना है, और इसके लिए प्रथम चरण का प्रशिक्षण प्राप्त करना है।

    प्रशिक्षण के दिन - का हाल है गुरुजी सुने हैं अगले माह रिटायर कर रहे हैं, तबो लगा दिया सब चुनाव ड्यूटी में!  का करे ! लगता है बेटवा के अनुकंपा के लाभ देकर ही कलेक्टर साहेब मानेंगे। वैसे भी ऊ नालायक जुयेरी बन गया है, हमरा मरला के बादे अगर वोकर जिंदगी बनता है तो फिर चुनाव ड्यूटी ठीक है, वैसे भी हम हार्ड पेसेंट हैं, लगता है पार लगिए जायेंगे ई बार।

   पिछला बार हमर प्रजाइडिंग मिला था, एकदम गोबर था महाराज। कैसन कैसन के बना देता है सब। जा के क्लस्टर पर एक जरकिन महुआ मार के सूत गया । साला सब काम हमरा करना पड़ा था, देखिए ई बार का होता है! पिछला बार कष्ट किए थे तो इसबार मौज होगा, कह दे रहे हैं इयाद रखिएगा।

     प्रथम चरण के मतदान के पूर्व चुनावी सामग्री का वितरण बजापते टेंट आऊ साउंड बॉक्स लगाकर किया जा रहा था, चार चार कर्मियों को एक एक बूथ की जिम्मेदारी दी जा रही थी और तीन तीन गो बक्सा। एक बक्सा आठ किलो का था, हरे रंग का बक्सा एकदम मनोहर का निर्जीव रूप लग रहा था, बक्सा मिलने के बाद इसे जान से भी ज्यादा सुरक्षित रखना था। कपार पर रखिए चाहे कंधा पर लेकिन इस मनोहारी बक्सा को रखना शरीर के ही किसी अंग पर था। एतना प्यार से तो आज तक अवधेश बाबू आपन बूतरुआ के भी नही टांगे थे जितना प्यार से हरिअरका बक्सा टांगे थे। सर देखिए न, हमको अपने जीवन में एक बार चुनाव जरूर करवाना था, लेकिन भोरे से चार गो उल्टी आऊ आठ बार पतला पैखाना हो गया है, लग रहा है न बचेंगे। पतला लैट्रीन हो रहा है क्या ? हां सर। कितना पतला ? सर इतना पतला है की आप उस से कुल्ला कर लेंगे, एकदम पानिए बाहर आ रहा है सर। अभिए न टेंटवा के पीछे चार बार बैठ के आए हैं। अरे डॉक्टर बुलाइए जी, सच्चा और गंभीर मरीज के देखने के लिए ही न डाक्टर रहता है। बहाना तो एक हजार आदमी बनाएगा लेकिन ई बेचारा !

     बैदा क्लस्टर के बूथ नंबर एकावन के सभी कर्मी अपने वाहन में बैठ जाइए, अगर छूट गए और बूथ तक नहीं पहुंचे तो एफआईआर करवा दिया जागेगा, चुनाव सरकार का एक महत्वपूर्ण कार्य है, इसमें किसी प्रकार की कोताही बर्दाश्त नही की जाएगी - इधर अनाउंसर अपने काम में पूरी ईमानदारी से लगे थे। अरे का मामाजी आपन बाइक से सुबह निकलिएगा, काहे ला ई धूप में जाए जाए कइले हैं - माइक बंद करके अनाउंसर महोदय अपनी रिश्तेदारी निभाने में लग गए थे।

    बस चल दी, ऐसा लगा मानो बारात निकली है, लेकिन बारात तो प्रत्यासी की निकलने वाली थी, चुनाव बाद। क्लस्टर पहुंचने के बाद " अरे का व्यवस्था है सेक्टर मजिस्ट्रेट साहेब, खाली दरी बिछा के रखे हैं जी, पंखा भी नही है, एक रूम में पचास आदमी कैसे सोएगा ? इ तो जेल से भी बदतर स्थिति है। अरे के मोजा खोला जी  - ऐसन महकता है की लग रहा है उल्टी कर दें, आप शिक्षक न हैं जी, त मोजवा काहे नहीं फिंचते हैं, एकदमे नही रहने दीजियेगा।

   निकालिए परजाइडिंग साहेब कागज कंप्लीट कीजिए नही त कल बक्सा जमा करने मे रात के बारह बजेगा। हमरा तो बुझाइए नही रहा है, का कागज कंपलीट करें - अच्छा अवधेश जी आप तो सबसे समझदार लग रहे हैं, बताइए न कैसे करें। समझदार हैं त का, जोतते रहिएगा बैल जैसन, आपको हम समझदार बनने से मना किए थे, अरे बकझक नही कीजिए, मिल जुल के काम खत्म कीजिए, एकरे में सबके फायदा है।

   अरे जिसको कुछ नही आयेगा वो बक्सा उठाने में मदद न करेगा, लेकिन वहां तो साहेब परजाइडिंग बन जाते हैं, देखिए भाई हम तो उनका काम नहीं करेंगे, चाहे जे हो जाए।

    उल्टा सीधा बेचारे परजाइडिंग कागज तैयार करने में लग गए बाकी के तीन लोग रात के खाना के व्यवस्था में निकल पड़े।

   दीदी ई होटल है ? खाली चुनाव के समय ही खोलते हैं की रोज। भईया रोज खोलते हैं लेकिन इधर शादी विआह के चलते बंद था।

    मुर्गा भात बनाइएगा ! बना देंगे लेकिन दो आदमी का बनाने में खर्चा जादे होगा। अब सोना चांदी के भाव में तो मुर्गा भात नहिए मिलेगा! बनाइए खायेंगे।

   अरे अवधेश बाबू देखिए के खाइएगा, हगे के भी दिक्कत है। का दिक्कत है जी, जहां तक नजर जा रहा है खेत ही खेत है। त का खेत में बैठ के प्रधानमंत्री जी को शर्मिंदा कर दीजिएगा ! अब एक दिन शर्मिंदे हो जाएंगे त का हो जाएगा, कम से कम चैन से निपट तो जाएंगे।

    नींद आएगा अवधेश बाबू ? एक तरफ मोजा दूसरी तरफ बाहर सड़ल नाली के बदबू से नींद हमको तो न आएगा। चलिए काहे नहीं, छत पर ही चलते हैं। चल तो देंगे लेकिन सीढ़ी कहां है अब हम शक्तिमान तो हैं नहीं की उछल कर चढ़ जायेंगे। ठीक है त, बाहर तो सो ही सकते हैं। सूतिये, कहीं पूर्व जन्म का प्यार नागिन बन गई होगी त साथ में लिपट कर सोएगी।

     भोरे भोरे तीन बजे उठके अवधेश बाबू जब खेत में नजर डाले तो हर पगडंडी पर लोग कतार में बैठ कर हल्का हो रहे थे। संभल कर चलिए जी कहीं पैर न पड़ जाए। नही पड़ जाए का, देखिए पड़िए गया।

    अरे बाल्टियों नही दिया है जी ! काहे ला नहाइयेगा!  हिम गंगे लगाके सोट लीजिए बाल, चक्कलस लगिएगा और दिन भर कीटाणु, जीवाणु, विषाणु सब दूर रहेगा।

    बूथ संख्या एकावान चलिए सर, अरे कहां गए सर जी, चलना नही है। यहां से दो किलोमीटर बूथ है - पैदल जाना होगा।

   चलिए किसी तरह ठुमक ठुमक कर कांधे पर बक्सा लेकर अवधेश जी बूथ पर पहुंचे, और सभी एजेंट को खाली बक्सा, दिखाकर बक्सा को बंद कर दिए। समय भी हो चला था। मतदान प्रारंभ हुआ।

    अरे कहां से हांफत हांफत आ रहे हैं जी। अरे मत पूछिए सब साला यहां मुरख है। बैलेट पर मुहर लगा के एक आदमी बैलेट को पॉकिट मे रख कर मुखिया को दिखाने जा रहा था, एक किलोमीटर दौड़ा के पकड़े हैं, इसी बीच न जाने कितना कुत्ता सब को ओवरटेक करना पड़ा। बैलेट मिला ? का मिलेगा बैलेट, साला आपन पालतू आवारा कुत्ता छोड़ दिया हमरा पर दौड़ा दौड़ा के काटा है। लगता है, जल्दी सूई नही लिए तो भौंकने की बीमारी न हो जाए।

    हमर वोट के डाल दिया जी ! आप ही न आए होंगे। अब दुबारा नहीं डालने देंगे। कैसे नही डालने दीजियेगा हम भी देखते हैं। कहां है हमर लठिया, लाइए तो, कातो वोट नही डालने देंगे। आए हैं सेवा करने और सीखा रहे हैं कानून।

   आइए, लेकिन अपन रिस्क पर हम देने दे रहे हैं। चलिए अब टाइम हो गया। कोई नहीं न है जी। नही सब कुशलता से हो गया।

   आइए सब कोई देखिए आपके सामने सील किया जा रहा है। बाद में मत कहिएगा।

   चलिए उठाइए अरे जय श्री राम बोलके उठाइए, बजरंग बली जय श्री राम बोलके पर्वत उठा लिए थे, ये तो आठ किलो का बक्सा भर है। जय श्री राम बोले, लेकिन बक्सा हल्का नही लग रहा है। जाए दीजिए अब हल्का लगे चाहे भारी, उठाना तो है ही।  चलिए बढ़ाइए अब, पहुंचाइए जल्दी से केंद्र में, बक्सा जमा करें और भागे घर।

    बस खुल गई, सभी ने राहत की सांस ली, अब बस अंतिम परीक्षा रह गया था, बक्सा जमा करने का परीक्षा।

    काहे भीड़ लगा है ? कौन है जी ? का हुआ? अरे देखिए न कोई अचेत पड़ा हुआ है। नब्ज देखिए ! नही चल रहा है जी, शरीर भी ठंडा पड़ा हुआ है। लगता है इस बार का चुनाव भी एक भले मानस का बली ले लिया। और सुने हैं हर बली के बाद लोकतंत्र का सूरज ज्यादा प्रकाश देता है। हां किसी के घर का दिया बुझा के उसका तुलना सूरज से करिए।  किसी के लिए चुनाव जीत के बाद कमाई का जरिया, किसी के लिए जवाबदेही के निर्वहन के लिए प्रशंशा, किसी के लिए मजबूरी की जवाबदेही, किसी के लिए मनोरंजन तो किसी के लिए जीवन भर का आंसू। लोकतंत्र है और लोकतंत्र का कोई जवाब नही।

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