| ब्लॉग प्रेषक: | आर सी यादव |
| पद/पेशा: | शिक्षक/मोटिवेशनल स्पीकर/फ्रीलांस जर्नलिस्ट |
| प्रेषण दिनांक: | 16-05-2022 |
| उम्र: | 42 |
| पता: | Dobhi Kerakat Jaunpur UP |
| मोबाइल नंबर: | 9818488852 |
भूली बिसरी यादें -2
तरुवर की शीतल छाया में
कभी हमारा गांव बसा था ।
आम नीम महुआ के नीचे
घर आंगन परिवार बसा था ।।
जहाँ खड़ी थी कभी सुनहरे
खुशियों की दिव्य इमारत ।
नैतिक मूल्यों, संस्कार की
होती थी जहां हिफाजत ।।
बड़े बुजुर्गो की बातों का
शिलापट्ट सा मान सदा था ।
पग पग पर उनकी सलाह का
ईश वचन सम्मान रहा था ।।
बैठ चबूतरे पर दादा जी
नीति नियम की बातें करते ।
चौपालों में रौनक होती
हंसी ठिठोली मिलजुल करते ।।
खेतों - खलिहानों की रौनक
मन मुग्ध, तन हर्षित करता ।
खेतों में फैली हरियाली ।।
खुशियों की नित वर्षा करता ।।
किलकारी गूंजी थी घर में
सोहर गीत उठे हर मन में ।
उपनयन के संस्कार में
मंत्रोच्चार गूंजा हर उर में ।।
नवयुग के इस चकाचौंध में
पीछे छूटी अनुपम बातें ।
नहीं रहे वन बाग चबूतरे
चौपालों की सूनी रातें ।।
जीर्णशीर्ण हो दबे जमीं में
मिट्टी के वो महल हमारे ।
लुप्त हुई आंगन की रौनक
वीरानी छाई हर द्वारे ।।
गांव छोड़ बस गए शहर में
बन धनाढ्य, हुए अभिमानी ।
शानोशौकत की चमकदमक में
पूर्वजों की खोई अमर निशानी ।।
धूल धूसरित माँ के सपने
पिता आश्रय हीन हो गए ।
कभी रहे जो ईश तुल्य वो
वृद्धाश्रम में लीन हो गए ।।
भूल गए हैं संस्कार हम
डूब गए दौलत के जद में ।
कर्तव्यों से विमुख हो गए
बल वैभव विलास के मद में ।।
शहरों की ऊंची अट्टालिकाएं
क्या सुखमय दिन लौटा सकती हैं ?
ज्ञान पिरोए दादा की बातें
क्या हमको समझा सकती हैं ?
मात पिता ने जिस आंगन में
नैतिक गुणों का मान दिया ।
बचपन से वयस्क काल तक
जीवन मंत्रों का परिमाण दिया ।।
मिट्टी की सोंधी खुशबू की
नहीं रहीं कच्ची दीवारें ।
सूखे पोखर, ताल, तलैया
अश्रु बहाते नभ के तारे ।।
आओ । चलें समेटे खुशियां
नैतिक मूल्यों का बाग लगाएं ।
फूटे नया सवेरा जग में
फिर वहीं घर द्वार बसाएं ।।
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