| ब्लॉग प्रेषक: | शेख रहमत अली बस्तवी |
| पद/पेशा: | साहित्यकार |
| प्रेषण दिनांक: | 16-05-2022 |
| उम्र: | 29 |
| पता: | बस्ती उ. प्र. (भारत) |
| मोबाइल नंबर: | 7317035246 |
कबाड़ी वाली दादी
संस्मरण
कबाड़ी वाली दादी
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कबाड़ी वाली दादी हमारे दुकान के सामने रोज़ आती जहाँ मैं व मेरे गाँव के तीन दोस्त जॉब करते हैं,पंडित जी,पप्पू भैया, और प्रमोद एक दिन हमने उनसे पूछा आप बुजुर्ग हो गई हो आपको तो घर पर रहना चाहिये, तब उन्होंने बताया कि हमारे बेटा नहीं है, एक बेटी है जिसका विवाह मैंने कर दिया है, और वो मुझे ये सब करने से मना करती है, पर मुझे बेटी के घर पे बैठ कर खाना अच्छा नहीं लगता मैं सोंचती हूँ, कि जब तक शरीर में ताकत बची है, किसी पर बोझ न बनूँ जब शरीर में ताकत नहीं रहेगी तब देखा जायेगा, इस लिए प्लास्टिक इकठ्ठा करती हूँ,और अपने कमाई का खाती हूँ। तब हम दोस्तों नें सोंचा दुकान से कार्टून, पुस्टा,या प्लास्टिक वगैरह जो निकलता बेस्टेज हमारे काम का न हो उन्हें दे दिया करें ताकि उसे बेंचकर पैसें इकट्ठा करे और जीवन यापन करें ।
रोज़ की तरह उस दिन भी प्लास्टिक इकट्ठा करने वाली दादी चिल-चिलाती धुप में एक थैला लिए आई, उनके माथे से टप-टप पसीना टपक रहा था, मेरे दुकान के सीढ़ियों पे बैठ जाती है। मैंने देखा कि दादी को अचानक चक्कर सा आने लगता है, शायद? उन्होंने खाना नहीं खाया था, तब दौड़कर मैंने उन्हें एक गिलास ठंडा पानी पिलाया। पंडित जी भी दौड़ पड़े और उन्होंने गन्ने का रस लाकर पिलाया, दादी ने आँचल को दोनों हाथों से उठा कर हमारे लिए ढ़ेर सारी दुआएँ दी और कहा अगर मेरा अपना बेटा होता तो शायद भी आज के जमाने में मेरा दुख न समझता, और कहा भगवान हर मां को ऐसे बेटे दें उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े ।
मौलिक स्वरचित
शेख रहमत अली बस्तवी
बस्ती उ, प्र, (भारत)
7317035246
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