| ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
| पद/पेशा: | व्यंग्यकार |
| प्रेषण दिनांक: | 13-05-2022 |
| उम्र: | 35 |
| पता: | गढ़वा, झारखंड |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
चुनावी चकल्लस - पंचायत चुनाव
चुनावी चकल्लस - पंचायत चुनाव
जनता संवाद -
का गोटन ई बार मुखिया पति कहलाओगे ! की इस बार भी हार के गम में, महुआ पी के पांच साल नलिए में पड़ल मिलोगे। अब का बताए शनिचरा भइया - चुनाव के पहले साला जे मिलता था वही हमरा जीत के अग्रिम बधाई दे जाता था। बधाई लेते, और मिठाई देते, चार गो भैंस बेच दिए, अब त बकरी पर ही निर्भर हैं। उहो बकरिया दो सौ ग्राम दूध देता है - चाय - चबेरण किसी तरह हो जाता है। लेकिन अचरज इ बात का है कि जे मेहरारू के हम मुखिया बनाना चाह रहे थे ऊहो आज कल हमरा लताड़ रही है - पीठ के बाम भी नहीं देखा सकते हैं, देख लीजिएगा त हमको मेहरमऊग कहिएगा। इतना दुख है जीवन में की अब नाली में न पड़ल मिले त का गंगा में डुबकी लगाते मिले।
अच्छे एक बात बताइए - की जैसे लोकसभा और विधानसभा में टीवी पर पोल बताता है कि कौन जीत रहा है कौन हार रहा है - पंचायत वाला चुनाव में काहे नहीं बताता है ?
बताता नहीं है जी, देखिए पांच जगह पर सुबह शाम बैठिएगा तो सब पोल बता देगा -
पान दुकान, नाई दुकान, दारू का ठेका, लोकल बस आऊ मेहरारू लोग के ढील हेरने का जगह पर जाइए, पता चल जाएगा के जीत रहा है।
अरे हियां मुंहे बजाते रह जायेगा उहा लाल मिचाई करिया नीमक के साथ महुआ के दारू धेमण मुखिया बांट रहा है, एक महीना चकल्लस है! आनंद उठाइए महाराज। एक महीना छूट के पीजिए आऊ डायरेक्ट स्वर्ग का आनंद लीजिए।
देखिए भाई हम तो वोकरे वोट देंगे जो इस गांव में रोड नहीं बनाएगा ! नहीं बनाएगा मतलब ? मतलब इ है कि हमरा गांव में बनता है दारू और रोड पर बहता है नाली। बेवड़ा भाई जब नाली का खुशबु आौर दारू का भोग एक साथ करता है तो उसके जीवन का परम लक्ष्य उसको प्राप्त होता है। जब रोड बन जाएगा तो प्रसासन के गाड़ी डायरेक्ट पहुंचने लगेगा। अब बताइए दारू का धंधा चौपट तो होगा ही बेवड़े के मानवाधिकार पर भी सरकार का प्रहार होगा, जो कतई बर्दास्त करने लायक नहीं होगा।
हिरामन कह रहा है इस बार वोट नहीं देगा, पूरा घर से बहिष्कार करवाएगा - अब उसको का हो गया! का हो गया - नहीं पता है का ! परसों रात में वार्ड सदस्य लडने के लिए महेसर आऊर साधु में बक झक हो रहा था, समझाने गया हिरामन, इतना में तो लाठी निकल गया, गुहार हुआ - बचाओ, बचाओ। बगल में सीआरपीएफ के कैंप है, उ फौजी सब समझा की हो गया नक्सली हमला। लाव लस्कर के साथ पहुंचा आऊ दे बट, दे बट, मार के हिरामन के साथ साथ ओकर गोतिया के भी पिछ्वाड़ा लाल कर दिया - ओ तबे न कल फिर गांव में लड़ाई हो रहा था, कुछ लोग बचाओ बचाओ भी कह रहे थे, लेकिन उधर से हिरामन भी चिचिया रहा था, कोई मत जाना हो, सिपाही बड़ी मारता है। साला कोई बचाने भी नहीं आता है - सब कहता है कि जनता ही सरकार है, और सरकार अगर रोज कुटाए इ कहां का निसाफ है। हम तो वोट नहीं देंगे।
छेदी चचा तो आपन घर ढाल लिए, अलग अलग मुखिया प्रत्यासी से बालू, छरी, सीमेंट, छड़ मांग कर काम शुरू कर दिए हैं। खाली समान मांगते तो कोई बात नहीं था, उ तो चार गो मुखिया प्रत्यासी से ईटा भी ढोवा रहे हैं। गरज है, मुखिया बनना है, का करेगा ढोने न पड़ेगा।
प्रत्यासी -
उधर फजलू मिया ने घोषणा किया की इस बार वो अपनी पत्नी को मुखिया का चुनाव लड़वाएंगे। लेकिन यहां भी अड़चन थी कि फजलू मियां ने दो शादी कि थी, एक रोशन आरा से दूसरी जमीला बानो से। घोषणा के साथ दोनों बीवियों के मन में लड्डू फूटा। लेकिन आखिर फजलू मियां अपनी कौन सी बीबी को मुखिया में लडवाएंगे! ये फैसला यह भी तय करेगा कि आखिर फजलू अपनी कौन सी बीबी को सबसे ज्यादा प्यार करते हैं।
गांव में भी उत्साह का माहौल था, क्यूंकि सब फजलु की फजीहत होते देखना चाहते थे, इसी बीच रोशन आरा का नाम फ़जलू ने मुखिया के लिए घोषित किया, लेकिन जमीला बानो ने भी खुद फैसला करते हुए अपना भी नामांकन दाखिल कर दिया।
अब गांव वालों के लिए पंचायत चुनाव, चुनाव नहीं उत्सव हो चला था।
फजलू के घर के कोहराम का सभी गांव वाले मज़ा ले रहे थे, उधर जमीला बानो कमर कस चुकी थी। सबसे ज्यादा दुखी भी वही थी, पति के प्यार के साथ साथ मुखिया पद पर रोशन आरा की दावेदारी उसे हर पल चुभ रही थी, कहते भी हैं कि सौतीनिया डाह सबसे ख़तरनाक होता है।
का फजलू का किया भाई, ऐसा कौन सा शौक था जिसके लिए इतने बड़े झंझट में पड़ गए मियां।
गांव वाले उधर बाईसो प्रत्यासी को जीत की अग्रिम शुभकामनाएं दे रहे थे। प्रतिदिन मोटर साइकिल में तेल की धार टपकाई जा रही थी। ये था चुनावी चकल्लस।
का राम ध्यान मोटर साइकिल में तेल के टंकी तो फूल है हो, ऐसे कैसे। एक महीना पहले हल्ला कर रहे थे कि तेल महंगा है, साला एक लीटर खरीदते है तो पानी निकल जाता है। जानते हैं चचा - कल राम ध्यान चचा मंदिर में जाकर कह रहे थे, भगवान सालो भर चुनाव रहता त कितना अच्छा होता - साला तेल खरीदना ही नहीं पड़ता।
नॉमिनेशन के दिन मुखिया प्रत्यासी के लिए गाड़ी सजाया जा रहा था, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक दूल्हा का गाड़ी सजाया जाता है बरात के लिए। मुखिया प्रत्यासी अगर पुरुष है तो बंडी, उजला कुर्ता, चूड़ीदार पायजामा और नुकीला जूता साथ में करिया चश्मा मतलब एकदम राजपाल यादव दिखना तो बनता था, इसी प्रकार महिला प्रत्यासी माडी दी हुई साड़ी और काला चश्मा एक दम महिमा चौधरी। जिंदगी भर भले ही ये सभी प्रत्यासी अपने मा बाप का पैर न छुएं हो, लेकिन घर घर जाकर साष्टांग हो रहे थे। कोई गाय का शेड, तो कोई कॉलोनी तो कोई नाली और कोई सड़क और शिक्षा की बात किए जा रहा था।
एक से एक भुआयाल भूआयाल आदमी नॉमिनेशन में भीड़ के रूप में आ रहा था, मज़ेदार बात ये था कि यही सब आदमी लोग हर प्रत्यासी के नॉमिनेशन में उपस्थित था। हर प्रत्यासी के प्रति जनता का समभाव देखते ही बनता था।
देखिए भाई जीतेगा तो कोई एक ही, लेकिन अगर हर प्रत्यासी के पांच छः कट्ठा ना बिकवाए हमलोग तो काहे का जनता ? जितने वाला तो लूटेगा ही लूटेगा क्यूंकि जिस प्रकार वो खुले हाथ से लूटा रहा है, मन में लुटने की प्रबल संभावना भी बना रहा होगा।
चुनावी कर्मी -
बड़ा बाबू कैसहू हमर नाम कटवा दीजिए सर - ई भयंकर गर्मी में बारह किलो के बक्सा माथा पर हमरा से नहीं ढोवाएगा। कोई जुगाड पानी है तो बताइए। ऊपर से हमरा पास तो दिव्यांग के सर्टिफिकेट भी है। चलने में भी नहीं बनता है। न जी आप चार तल्ला पर आ गए आऊ अभी तक आपन टांग पर सही सलामत खड़े हैं और कह रहे हैं चलने में नहीं बनता है। कल आइएगा नाम कटवा देंगे - डागदर के टीम बैठेगा वहीं डीसी साहब के रिपोर्ट देगा कि आपको चलने में कठिनाई है कि नहीं। फिर अपने नाम कट जाएगा! का बड़ा बाबू अब आदमी मज़ाक भी नहीं कर सकता है। मज़ाक न कर रहे थे। आप तो सीरियस हो गए।
देखिए हमको चुनाव में पॉर्जयडिंग बनाया है - त इतना खुश काहे हो रहे हैं दमाद थोड़े बनाया है। जाइए जब रात के आठ बजे से लाइन लग के बक्शा जमा करने के लिए खड़ा रहियेगा और भिनसरे चार बजे जब बक्सा जमा लेगा तब पता चलेगा की पर्जयडिंग का होता है।
चुनावी परिणाम-
जमीला बानो जीत गई, रौशन आरा हार गई। लेकिन हारा तो फाजलू मियां थे, जमीला की नजर से और रोशन आरा के भरोसा से। बेचारे मुखिया पति बन तो गए, लेकिन जमीला अब कमान अपने हाथ में ले रखी थी। अब होना था विकास। लेकिन किसका - प्रश्न कठिन था, उत्तर जनता को पता है लेकिन ' खुटवा हम वहीं बांधेंगे ' से मजबूर।
आखिर जीत जनता की हुई थी, लोकतंत्र की जीत। अब यदि विजय होने वाले प्रत्यासी जनता की उम्मीद पर खरे ना उतरे तो पांच साल इंतजार और फिर अगली बार *चुनावी चकल्लस*
नोट :- इस लेख में उपयोग किए गए सभी पात्र, स्थान, आयोजन, समय सभी प्रसंग पूर्णतः काल्पनिक है, इससे मिलन एकमात्र संयोग होगा।
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