| ब्लॉग प्रेषक: | अभिषेक कुमार |
| पद/पेशा: | साहित्यकार, सामुदाय सेवी व प्रकृति प्रेमी, ब्लॉक मिशन प्रबंधक UP Gov. |
| प्रेषण दिनांक: | 09-05-2022 |
| उम्र: | 32 |
| पता: | आजमगढ़, उत्तर प्रदेश |
| मोबाइल नंबर: | 9472351693 |
मच्छर एक प्रेरणास्रोत
मच्छर एक प्रेरणास्रोत
मच्छर का नाम सुनते ही जेहन में एक ही बात आती है इनको चाहे जैसे भी हो मारो, भगाओ या खुद उस जगह से हट जाओ। किसी भी उपाय से इनकी शैतानी को खत्म करो। यदि ये शरीर पर बैठ जाते हैं तो मन ऑटोमेटिक हाँथ को आदेश कर देता है और स्वाभाविक प्रतिक्रिया हो जाती है चटाक... और फिर मच्छड़ का काम तमाम हो जाता है। मच्छरों की संख्या अधिक होने पर इनसे बचने के तमाम उपाय मौजूद है जैसे कि मच्छरदानी लगाना या फिर मॉस्किटो कॉइल जलाना या फिर बिजली से चलने वाले उपकरण ऑलआउट जलाना या फिर हाले में प्रचलन में आई मच्छड़ भागने का अगरबत्ती जलाना या इलाके में किसी जहरीले रसायनों का छिड़काव करना। क्या इन तमाम प्रयासों के बावजूद हम इंसान मच्छरों पर पूर्ण तरीके से विजय प्राप्त कर लियें..? इतने प्रयासों के बावजूद हम मच्छरों के कितनी प्रतिशत आबादी को खत्म करने में सफलता पाई..? आखिर कितना मच्छर मारोगे या फिर इनके प्रकोप से कितना बचोगे, हर घर से मच्छर निकलेंगे..! मच्छर भागने के इन तमाम रासायनिक प्रक्रिया के दुष्प्रभावों से क्या हम इंसान वंचित रह पायेंगें..?
इंसानो को जिस परमपिता परमेश्वर ने बनाया मच्छरों को भी उसी परम शक्ति ने बनाया है, इंसान और मच्छर एक ही परमपिता परमेश्वर के संतान है। आखिर यह सोंचने वाली बात है कि मच्छर आखिर अपने शरारत से हम इंसानो को क्यों परेशान कर रहे है..? इंसानो के बीच तो मर्यादा की एक डोर है छोटे बड़ो का आदर सत्कार करते हैं रिश्ते नातो में एक सम्मान की भावना है पर मच्छड़ में कोई सम्मान की भावना है क्या..? उसे बड़े-छोटो में कोई फर्क मालूम है क्या..? वह तो राजा से लेकर रंक तक बिना भेद-भाव किये सबको एक ही प्रकार के डंक मारकर परेशान करता है। मच्छरों के प्रताड़ना के वजह से हम सभी को इनको मारने/भागने सम्बन्धी क्रियाकलाप में अतिरिक्त धन भी व्यय हो रहा है एवं इनके द्वारा काटने से बीमारी के शिकार भी हो रहे हैं जिसका खामियाजा सीधा अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
सृष्टि निर्माण के समय सभी जीव एक ही बार में नहीं बनाए गए इनमें से कुछ जीव सुरुअति चरण में बनाये गए तथा कुछ जीव परतदर परतदर बनाये गए और इनमें से कुछ जीव आवश्यकतानुसार बनाये गए। मैं समझता हूँ सृष्टि के सुरुआत में मच्छर नहीं रहे होंगे इसे बाद में आवश्यकता समझ कर बनाया गया कारण की उस वक़्त आबादी कम एवं गंदगी के नामोनिशान न होने के कारण इस जीव की कोई महत्वता/उपयोगिता नहीं थी परंतु जैसे-जैसे सृष्टि का क्रमबद्ध विकास हुआ जनसंख्या वृद्धि होती चली गई एवं गंदगी बढ़ने लगी तदुपरांत लोग मेहनती एवं साफ-सफाई के प्रति संवेदनशील न हुए तो मच्छरों को बनाने की जरूरत पड़ी होगी। यह सत्य है कि जहाँ दूर-दूर तक खुले में कोई नाली नाबदान या गंदगी न हो वहाँ यह मच्छर नहीं पाए जाते, इंसान बेखबर खुले आसमान के नीचे सोये, बैठ सकता है जबकि जहाँ नाली नाबदनो एवं गंदगियों का अंबार है वहाँ लाखो-लाख की संख्या में मच्छर पनप जाते है तथा इंसान को आर्थिक मानसिक एवं स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से नुकसान पहुंचाते हैं।
असल में यह मच्छर को मारने भागने तथा व्यर्थ शक्ति के दुरुपयोग करने के लिये हम सदैव तत्पर नहीं हो सकते..! इनका स्थाई समाधान खोजना होगा। वास्तव में मच्छर तो प्रेरणास्रोत है और प्रकृति के द्वारा इंसानो के पास भेजे गए विशेष दूत है तथा अपने डंकों के जरिये यह पैगाम दे रहे हैं कि मातृभूमि के आंचल पर अत्यधिक गंदगी न फैलाओ अन्यथा मैं काटूंगा, मानसिक, आर्थिक एवं स्वास्थ्य के दृष्टिगत कमजोर करूँगा तथा मलेरिया विमारी जो होने वाली सबसे आम और खतरनाक बीमारी है जो कभी-कभी जानलेवा हो जाता है तथा डेंगू बुखार, येलो बुखार, इंसेफेलाइटिस, चिकनगुनिया आदि कमरतोड़ बीमारियों का सामना करना पड़ेगा।
यह प्रकृत की ही व्यवस्था है कि मच्छरों के डंक के जरिये हमें होंसियार सावधान और सचेत कर रहा है कि पुत्र, धरती माता के आंचल मैला न करो नाली नाबदान खुले में गलियों सड़को पर न बहाओ इन्हें भूमिगत मार्ग से बहाओ तथा कूड़े कचरे गंदगी के निपटारा आदि का ऐसा प्रबंध करो कि वे मिट्टी के अंदर दब के गल-सड़ कर मिट्टी में मिल जाये, धरती के पटल पर भिनभिनाती नाली, नाबदान या गंदगी के अंबार न फैलाओ यदि ऐसा करोगे तो अवश्य मच्छर जन्म लेंगें तथा खून चूसेंगे।
मच्छरों के डंक से यदि बुद्धि विवेक के द्वार नहीं खुल रहे तो प्रकृत ने दण्ड देने के लिए स्वीट प्वाइजन (मीठा जहर) मक्खियों का भी विकल्प बनाया है। धरती के पटल पर मौजूद गंदगियों पर मक्खी भिनभिनायेंगें तथा अपने मुख पर गंदगी के कुछ मिलीग्राम आपके भोजन खाद्य पदार्थों पर बैठ छोड़ देंगें और यह गंदगी सहित भोजन करके इंसान निश्चित ही मनोबल से कमजोर होगा तथा कई प्रकार के बीमारियों से ग्रसित होकर शारीरिक दुर्बलता एवं आर्थिक सामाजिक पिछड़ेपन का कारण बनेगा।
संत महापुरुषों ने कहे हैं की स्वच्छता ईश्वर का दूसरा नाम है अर्थात जहाँ स्वच्छता है वहाँ ईश्वर का वास है और जहाँ ईश्वर का वास है वहां शांति, सुख समृद्धि, वैभव एवं तरक्की है। घर एवं परिवेश के इर्दगिर्द गंदगी होने से व्यक्ति एवं समाज पर प्रतिकूल असर पड़ता है तथा स्वच्छता वाले इलाके के तुलना में व्यक्तियों के मनोदशा आर्थिक समृद्धि में अंतर स्पष्ट महसूस किया जा सकता है।
तो क्यों न हम सभी मनुष्य आपस में मिलकर मच्छरों के डंक को प्रेरणाश्रोत मानकर इस धरा से गंदगी के नामोनिशान मिटाने पर बल दें...? न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी अर्थात न गंदगी फैलाएंगे न मच्छर पनपेगा...!
अतः हम सभी मिलकर स्वच्छ भारत एवं सुंदर वसुंधरा निर्माण में एक दूसरे का सहयोग करें।
सबका मंगल, सबका भला
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