परेशानी और विकास

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ब्लॉग प्रेषक: राजीव भारद्वाज
पद/पेशा: व्यंग्यकार
प्रेषण दिनांक: 26-04-2022
उम्र: 35
पता: गढ़वा, झारखंड
मोबाइल नंबर: 9006726655

परेशानी और विकास

नोट :- इस लेख के सभी पात्र काल्पनिक हैं, किसी भी रिश्ते, स्थान, नाम का प्रयोग मात्र हास्य उत्पन्न करने हेतु किया गया है। इससे कोई घटना, रिश्ता टकराता है तो यह एक संयोग मात्र होगा। 

 परेशानी और विकास

क्या होगा गढ़वा वालों का ? विकास की रफ्तार से जो परेशानी अभी हो रही है वो भगवान न करे किसी को हो। बाईपास का निर्माण पूरे गति के साथ शुरू है और धूल की बारिश से पूरा शहर परेशान। जगह जगह गड्ढे, वाहनों की लंबी कतारें, सुंदर है तो सिर्फ घंटाघर। 

प्रसंग - ०१-  अब देखिए न कल सुबह मेरी सास ने मुझे फोन किया - देखिए तो दामाद बाबू रात में दस बजे के करीब आपके ससुर साहब मेरे लिए रसगुल्ला लेने गए थे, सुबह के पांच बज गए अभी तक वापस नहीं आए हैं! मै परेशान हो गया कि कहां चले गए, फिर लगा शायद गृहस्थ जीवन से संन्यास ले लिए हो, फिर सोचा नहीं वो इंसान संन्यास नहीं ले सकते, लेकिन दिमाग में अपने प्रधान सेवक भी आए फिर लगा कहीं मन के बात से, मन में बात न उतार दिए हों, की गृहस्थ जीवन राष्ट्र के प्रगति में बाधक है। खैर मन है, और मन में उलुल जुलुल ख्याल प्रधान सेवक को अकेले थोड़े आ सकता है, हम भी इंसान ही थे और कलयुग में ही पैदा हुए थे।

 अब लगा मैं उन्हें ढूंढू तो कहां ? फिर मै उनके घर गया, वहां चारो तरफ खुदाई का काम चालू था, और ससुर साहेब के घर के सामने दस फीट गढ्डा। वहीं पर टेढ़ी मुंह वाला सूढ़ निकाले एक मशीन कर रहा था खुदाई। मिट्टी को खोदकर जैसे ही मशीन ने मिट्टी को गिराया तो एक मजदूर चीख उठा, अरे मिट्टी से आदमी गिरा है। अब बात ये हुई थी कि ससुर साहेब रात में घर से निकलते ही फिसल कर गड्ढे में गिर गए थे, काफी आवाज लगाई लेकिन हमारी सास उस समय *सास भी कभी बहू थी* देखने में व्यस्त थी। ससुर साहेब ने सोचा घर पर तो सुनती नहीं है गड्ढे से कैसे सुनेगी और रात में वहीं सोने का फैसला कर लिया। रात में नींद तो अच्छी आई लेकिन सुबह टेढ़े मुंह वाला सुढ़नुमा मशीन ने उन्हें निकालकर जो जमीन पर पटका की बायां पैर से फटाक की आवाज आई। जब मजदूर चीखा की कोई आदमी गिरा है तो आनन फानन में सब मिलकर उन्हें उठाया और सीमेंट ढोने वाले, एक चकिया गाड़ी में लिटाकर ढकेलते हुए अस्पताल कि तरफ चल दिया। लेकिन सड़क पर गड्ढे और वाहनों की लंबी कतार में पांच मिनट का रास्ता तीन घंटे में तब्दील हो गया। अब जैसे ही अस्पताल के आपातकालीन द्वार पर ससुर साहेब पहुंचे उन्हें उस ट्राली से निकालने का प्रयास किया गया लेकिन ये क्या - ससुर साहेब सीमेंट ढोने वाले गाड़ी में नीचे से सुख कर जम चुके थे, चूकी आनन फानन में सीमेंट ढोने वाली ट्राली पर उन्हें लिटाया गया था जबकि चाहिए ये था, कि कम से कम ट्राली को पानी से साफ कर लिया जाता। अब ससुर साहब के पयजामे का निचला लेयर और उससे चिपका शरीर का अंग भी जम चुका था। अरे छेनी हथौड़ी लाओ, खोदो और निकालो। ठाक ठाक, आह उह की आवाज एक साथ। चलिए किसी तरह ससुर साहेब बाहर निकले और बाहर निकल कर खुदाई के बारे में ऐसा प्रवचन दिया  कि मत पूछिए, मै लिख नहीं सकता।

 शहर में धूल -  मामा जी गए घंटाघर मामी को दिखाने - चलो भाग्यवान तुमको विकास दिखाते हैं। ई घंटाघर है, शहर के सुंदरता का ताज। मामी अभी ताज का दर्शन कर ही रही थी कि तभी बगल से ट्रक पार हुआ और एक पसेरी धूल डायरेक्ट मामी के मुंह पर, कुछ धूल मामू के आंख में भी गया। बड़बड़ाते हुए मामू ने मामी का हाथ पकड़ा और खींच के टेम्पु में बिठाने लगे। अरे देखिए न ई कौन मर्दाना हमको किडनैप कर रहा है, बचाओ, बचाओ। मामा भी चौंके की रूपमती का गाली भी इतना कर्कश नहीं था, ये कौन शूर्पणखा है जो इस तरह बचाओ बचाओ कर रही है। हुआ ऐसा की ट्रक से गरदा जे उड़ा न, वो मामी के गाल पे, विको के ऊपर, ऐसे चिपका जैसे चिकन के ऊपर तंदूर मसाला। और मामू के आंख में भी गर्दा घुस गया था, आंख बंद था सो मामी के हाथ न पकड़कर वो किसी और का हाथ पकड़ कर टेम्पु में ले जाने लगे थे। इधर बचाओ बचाओ सुनकर आस पास के लोग को लगा कि उग्रवादी हमला हो गया है, सब एलर्ट मोड पर आ चुके थे, दुकान का शटर बंद होने लगा था, और पास ही कुछ नादान देश को समर्पित नौजवान, बाबा के सेवन करने वाले, रमता जोगी लोग का त्रिनेत्र खुल चुका था, और मामू के सम्पूर्ण विध्वंस में नटराज की भांति उनका हाथ अनवरत चल रहा था। हो गई मामा की कुटाई, देख लिया उन्होंने घंटाघर।

नाली - गढ़वा में एक नदी है सरसतिया माफ कीजिएगा ये गढ़वा का वैतरणी है, जी हां वही वैतरणी जिसे पार कर स्वर्ग का द्वार मिलता है।

सरसतिया/वैतरणी नदी में कूड़ा करकट और बजबजाती नालियों का पानी जब गिरता है तो सम्पूर्ण रूप से ये बेवड़ों का तीर्थ स्थान बन जाता है - जैसे गोवा में समुद्र किनारे पर्यटक हल्के गर्म रेत और समुद्र की सुरीली संगीत का आनंद उठाते हैं उसी प्रकार गढ़वा के इस बैतरणी में भी बेवड़े सारी दुनिया को भूल कर सुंदरियों अर्थात सुकरों के साथ आनंदित होकर घंटे दो घंटे बिताते हैं।

बिजली - चार बजे भोर से पड़ोसी के तू-तू मैं-मैं से नींद खुली, सावजी जोर-जोर से दहाड़ रहे थे कि तू हमरा सिखाओगे कि हम क्या पहने और क्या नहीं पहने... 


बिट्टु अपना आवाज कम कर के बात मैनेज करने में लगा था। न चाचा तू ही बताव... कि एक त रात भर मच्छर के प्रकोप, ऊपर से गढ़वा में बिजली नहीं, तू जानत बड़ा कि हमारा इहे साल बियाह भईल बा।....  


का होलउ बिट्टू... पडो़सी धर्म मे हम पूछ लिए... 

कुछ नहीं पिंटू , रात मे सार इनवर्टर फेल हो गईल, गरम से हालत खराब था भाई, हमनी छत पर सुते आ गईली। भोरे मे परिवार कह रही है कि अब हम छत पर नहीं सोएंगे, जनरेटर खरीदिए। हम पूछे कि का हुआ। उ इनकर रेलिंग तरफ ईशारा कर के नीचे चल गई। 

बिट्टू फिर संतोष चा के टारगेट कर लिया...

न चाचा, बुढा़पा मे अपत करना जरुरी हउ तोहरा... 

जब हमनी के छत एक में सटल बा... त गरम लगे चाहे कुछू हो, तूहीं बताओ पिंटू इनको कम से कम अंडरवियर पहन कर सोना चाहिए कि नहीं।

और भरी दुपहरी में चार अर्धनग्न बच्चा  काला चश्मा लगाकर बैठा था मानो वो कह रहे हों *दिखता है हमें भी साफ साफ - विकास या सिर्फ इसका आभास*

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