ले मन होइल महंगा।

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ब्लॉग प्रेषक: राजीव भारद्वाज
पद/पेशा: व्यंग्यकार
प्रेषण दिनांक: 25-04-2022
उम्र: 35
पता: गढ़वा, झारखंड
मोबाइल नंबर: 9006726655

ले मन होइल महंगा।

*ले - मन होइल महंगा*

गांव का चौपाल, पीपल के नीचे मंडली, मंडली में शामिल गांव के बड़े बुजुर्ग, किशोर और जवानों की टोली। चावल के भूंजा और गुड़ फांक फांक के महंगाई पर चर्चा।

 और महंगाई भी क्या बस नींबू जो स्थानीय भाषा में कभी लीमु, तो कभी लेंबू संबोधित होता है।

 का बुधन कुछ सुने, राम स्वरूप कुछ सुने, रहीम चा सही बात है ई ? 

कल सुशील के रेंगा कह रहा था कि राजेन्द्र कल सब्जी वाला पॉलिथीन में लेमु घर लाया था। शायद ओकरा पता नहीं होगा की बिंद टोला के बच्चा बच्चा अपने आप में सीबीआई है।

उ तो ठीक है मनोहर काका लेकिन राजेन्द्र लेमू कैसे खरीद सकता है। उ त ससुरा बैगन आऊ आलू भी तबे खरीदता है जब मार्केट में कौड़ी के भाव में बिकता है।

 लेकिन राजेन्द्र के बेटा जे जेल से एक महीना पहले ही आया है सुने है उसको देखने लड़की वाला आया था ! अरे का खुसुर पुसुर कर रहे हैं मंडली बैठा के भोला बाबा - किशन बोला।

अरे किशन गांव में हल्ला होल हो की रजेंद्रा लीमू खरीद के लाया है।

तोहन के पता चलतो लीमु के शरबत पिया के राजेंद्रा अपन लखेरा बेट्वा के बियाह तय कर देलो। देखू त पिछले महीने छूट के आयल हलो जेल से। ई नींबू के पॉवर हो काका की बिना इंक्वायरी के बेटी वाला खाली नींबू के शरबत पी के ही विवाह ठीक कर देलई।

अरे का कहे गोइयां जब जब प ड़ोसन के देखते थे दिलवा जोर जोर से कुश्ती करता था, परसों मेहरारू बजार गई थी और तभी पड़ोसन नींबू माँगने आई,

और बीबी नींबू गिन कर गई थी। 

जीवन में इससे बड़ा धर्म संकट का सामना हम आज तक नहीं किए थे। बताइए त एगो नींबू भी न से सके जाने जहां को। लगा एक लीटर खून में अगर नींबू वाला खटास घुस जाता त ब्लेड से चीर के गिलास में भर के दे देते लेकिन नींबू ....... न दादा। रमज़ान में रोजा रखने वाले नींबू का शरबत न पी पाए इसलिए बढ़ा नींबू का दाम, लेकिन मुसलमान तो रूह आफज़ पीते हैं, कहते हुए गंभीर हुआ संजू।

नींबू के साथ सत्तर साल तक देशद्रोही पार्टी ने विकास नहीं होने दिया, धन्य है राष्ट्रवादी पार्टी का जो नींबू को देश के पटल पर अचानक मान सम्मान दिलवा दिया। ऐसा व्यंग मत करो राजू, तुमको नहीं पता देश केतना विकास कर रहा है। कम्युनिस्ट सोच मत रखिए, देश के विकास में सहयोग कीजिए।

जानते हैं जी हमरा भारत देखिएगा ई नींबू के महंगाई से ही हिंदू राष्ट्र बनेगा - नींबू से बनेगा ! कैसे चचा - उ ऐसे की अभी चल रहा है रोजा और रोजा में अब्दुल नींबू के शरबत पिएगा ही पिएगा। जब नींबू हो गया महंगा तो अब्दुल कहां से पी पाएगा ! फिर अब्दुल अपने परिवार के साथ जाएगा पाकिस्तान और भारत में बबलू रह जाएगा। बनेगा की नहीं हिंदू राष्ट्र। गजब का सोच रखे हैं गुरुदेव। अब्दुल के चक्कर में बबलू का क्या होता है सोचे हैं। रहने दीजिए आपका तो यही काम बचा है - रहीम चाचा बोले।

 अब्दुल तो संतरा भी पी सकता है लेकिन नींबू का हरा होना ही अब्दुल को पसंद आया - हां जी कुछ काम मिलता तो ऐसे नहीं बोलते, जाओ जा कर झंडा पकड़ के जिंदाबाद मुर्दाबाद करो।

कहीं नींबू का हरा होना भी हिन्दुस्तान में इसकी कीमत वृद्धि का कारण तो नहीं, जो भी हो लेकिन फल तो फल होता है। इसमें नारंगी रंग और हरा रंग से क्या मतलब। मतलब तो सियासी लोग निकालते हैं। बड़ा बात कह दिए तुम। हो तो अभी लड़ोर लेकिन बात में दम है बबुआ।

 काहे जी नींबू के नाम सुनते ही बिलबिला जा रहे हैं! बिलबिलाए नहीं तो का करें अब तो नींबू भी प्याज आऊ लहसुन जैसन तामसी हो गया है।

सुने हैं कि छोटका गांधी भी बोल दिया कि हम आलू से नहीं बल्कि नींबू से सोना निकालने की बात बोले थे।

सत्तू के शरबत वाला भी चार बार पूछता है कि नींबू डाले की नहीं काहे की नींबू का दस रुपया अलग से लगेगा।

 बड़ा पाकिस्तान पाकिस्तान कह रहे हो माओवादी कहीं के। जानते है वहां तीन सौ रुपए टमाटर मिल रहा है, हमरा देश तो फिर भी अच्छा है। जाइए श्रीलंका पता चल जाएगा महंगाई क्या है।

और एक कोने में बैठा संतोष चुप चाप इनकी बात सुन रहा था, इंजीनियरिंग किए तीन साल हो गए लेकिन वैकेंसी नहीं आया था, अब तो घर वाले भी बोल दिए थे कि तोहार पेट हम नहीं भर सकते। 

संतोष के दिमाग में आया लेंबु बेचना कहां गलत होगा। रातों रात अमीर बना जा सकता है लेकिन बचपन से इंजीनियर बनने का सपना टूटना भी ..........।

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