| ब्लॉग प्रेषक: | चंदन तिवारी |
| पद/पेशा: | प्रशिक्षण पदाधिकारी, जीविका, बिहार |
| प्रेषण दिनांक: | 22-04-2022 |
| उम्र: | 33 |
| पता: | सासाराम, बिहार |
| मोबाइल नंबर: | 870944460 |
लक्ष्य
लक्ष्य
क्या होता है लक्ष्य? जिसके बिना जीवन का कोई मोल नहीं है। जब जन्म होता है उस समय लक्ष्य होता है अपने आप को जीवित रखना और दूसरे पर आश्रित रहना। उस लक्ष्य को भी लोगों के सहयोग से प्राप्त कर लिया जाता है। उसके बाद लक्ष्य पुनः बदलता है, पल पल लक्ष्य में बदलाव होता है और उसको प्राप्त करने के लिए जी- तोड़ मेहनत और प्राप्त होने के बाद पुनः दूसरे ओर चल देना।
बाल्यावस्था में शिक्षा की प्राप्ति तो लक्ष्य होता ही है मगर यह गौड़ हो जाती है और मुख्य लक्ष्य खिलवाड़ करना हो जाता है। खेलते- खेलते बाल्यावस्था व्यतित हो जाता है और किशोरावस्था का प्रादुर्भाव हो जाता है। इसमें तरूणाई आती है और पूरा प्रयास करके लक्ष्य को जवानी के झंझावात से झकझोर कर युवावस्था में लेकर जाती है। लोग कहते है कि *जो जी लिया वो जवानी, बाकी सारी जिंदगानी*। मगर युवावस्था का लक्ष्य भी बहुत होते हैं, जिसमें आप अपने आप को सम्राट समझते हैं और जिस कारण लक्ष्य बहुत ही तेज़ी से बदलते हैं। कुछ लक्ष्य आपके जिम्मेदारियों बदल जाते हैं, और यहां से आप अपने लक्ष्य और अवस्था दोनों बदल कर प्रौढ़ावस्था में उपस्थित होते हैं। यहां आपका लक्ष्य पुनः बदलता है और आपका बाल्यास्वरूप आपके अंश में दिखाई देने लगता है।
एक बार फिर से अपना लक्ष्य पुनः बदलता है और पुराना लक्ष्य याद आता है। जिम्मेदारियों के भंवर जाल में से डूबते निकलते कमजोरियों से बचते बचाते वृद्धावस्था के ओर कब चले जाते हैं,यह पता8 ही चल पाता है। कई लक्ष्यों को पाते और छोड़ते,
इंसान पुनः सोचने पर मजबूर होता है कि आखिर क्या है लक्ष्य।
इस तरह सोचते और करते बहुत सारे लक्ष्य तो प्राप्त होते हैं , मगर मुख्य लक्ष्य प्राप्त ही नहीं होता। तो मुख्य लक्ष्य क्या है, किसी का भी मुख्य लक्ष्य वह होता है, जिसको पाने के बाद आप आत्ममुग्ध हो जाए और कुछ और प्राप्त करने की इच्छा शेष न हो।
जीवन को अगर जीना है को लक्ष्य तो बहुत होंगे मगर यदि सार्थक बनाना है तो एक ही मुख्य लक्ष्य हो जिसको पाकर आप आत्ममुग्ध हो जाए और आपके चहुंओर सकारात्मकता फैल जाए।
*लक्ष्य वो जिसे पाकर जिसको आपमें संतृप्ता हो जाए।*
*कल्याण हो प्रकृति का और आत्मियता हो जाए।।*
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