| ब्लॉग प्रेषक: | अभिषेक कुमार |
| पद/पेशा: | साहित्यकार, सामुदाय सेवी व प्रकृति प्रेमी, ब्लॉक मिशन प्रबंधक UP Gov. |
| प्रेषण दिनांक: | 21-04-2022 |
| उम्र: | 32 |
| पता: | VILL PO JAIHIND TENDUA PS MALIBLOCK NABINAGAR |
| मोबाइल नंबर: | 9472351693 |
महाप्रतापी राजा राणा सांगा के संदर्भ में रोचक तथ्य
* शरीर पर 84 घावों के कारण महाराणा सांगा को "मानवों का खंडहर" भी कहा जाता है।
* इन महाराणा का कद मंझला, चेहरा मोटा, बड़ी आँखें, लम्बे हाथ व गेहुआँ रंग था। दिल के बड़े मजबूत व नेतृत्व करने में माहिर थे। युद्धों में लड़ने के शौकीन ऐसे कि जहां सिर्फ अपनी फौज भेजकर काम चलाया जा सकता हो, वहां भी खुद लड़ने जाया करते थे।
* महाराणा सांगा अंतिम शासक थे, जिनके ध्वज तले खानवा के युद्ध में समस्त राजपूताना एकजुट हुआ था।
* महाराणा सांगा के समय मेवाड़ दस करोड़ सालाना आमदनी वाला प्रदेश था।
* महाराणा सांगा द्वारा बाबर को हिंदुस्तान में आमंत्रित करने की घटना मात्र एक भ्रम है, जो स्वयं बाबर द्वारा फैलाया गया। जवाहर लाल नेहरू द्वारा लिखित पुस्तक पर आधारित धारावाहिक "भारत एक खोज" द्वारा बिना किसी ठोस आधार पर इसे और फैलाया गया, वरना जिन महाराणा ने दिल्ली के बादशाह इब्राहिम लोदी को 2 बार परास्त कर भगाया हो वे भला बाबर से मदद की आस क्यों रखेंगे। वास्तव में इब्राहिम लोदी से अनबन के चलते पंजाब के गवर्नर दौलत खां लोदी ने बाबर को भारत में आमंत्रित किया था।
* खातोली के युद्ध में महाराणा सांगा का एक हाथ कट गया व एक पैर ने काम करना बंद कर दिया था।
* महाराणा सांगा ने मालवा के मुस्लिम सुल्तान को युद्ध में हराया और 6 महीने तक अपनी कैद में रखा फिर उसके घाव ठीक होने पर उसे वापस छोड़ दिया और दिल्ली सुल्तान इब्राहिम लोदी को 02 बार युद्ध में परास्त किया और गुजरात के सुल्तान को मेवाड़ की तरफ बढ़ने से रोक दिया।
बाबर को बयाना का युद्ध में पूरी तरह परास्त किया और बाबर से बयाना का दुर्ग जीत लिया। इस प्रकार इस हिंदू राजा ने भारतीय इतिहास पर एक अमित छाप छोड़ दी।
* एक विश्वासघाती के कारण अपने ही लोगों द्वारा विष दे दिया गया ओर 30 जनवरी 1528 को देवलोकगमन हो गया।
* ऐसा महान योद्धा जिसने अपने जीवन काल में 100 से अधिक युद्ध लड़े और सभी जीते केवल अंतिम युद्ध जो बाबर के खिलाफ सन् 1527 में खानवा का युद्ध हारे वो भी अपने ही लोगों के विश्वासघात के कारण।
"अस्सी घाव लगे थे तन पर,
फिर भी व्यथा नही थी मन में"
नोट- यह सूचना सोशल मीडिया से ली गई है, मेरे द्वारा नहीं लिखी गई है अर्थात मेरी यह मौलिक रचना नहीं है।
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