अरुण प्रताप सिंह

22. प्रकृति, पर्यावरण सुरक्षा और मानवता


शोधार्थी: अरुण प्रताप सिंह
पंजीयन संख्या: HRC/369/35

Share
अति संक्षेप शोध सारांश:

मानव जीवन का अस्तित्व प्रकृति पर निर्भर है। जल, वायु, भूमि, वनस्पति और जीव-जंतु हमारे जीवन के मूल आधार हैं। औद्योगिक विकास और अंधाधुंध शहरीकरण ने प्राकृतिक संतुलन को प्रभावित किया है, जिससे वनों की कटाई, जल और वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता का ह्रास हुआ है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को माता का दर्जा दिया गया है और पारंपरिक ज्ञान में पर्यावरण संरक्षण का गहरा संदेश निहित है। प्राचीन और मध्यकालीन भारत में वन्यजीव, जल और भूमि संरक्षण के लिए सामाजिक और कानूनी व्यवस्थाएँ थीं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी पर्यावरण और संसाधनों के संयमित उपयोग पर बल दिया गया। आज आवश्यक है कि व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर वृक्षारोपण, जल संरक्षण, प्लास्टिक उपयोग में कमी, अक्षय ऊर्जा और जैविक खेती जैसे उपाय अपनाए जाएँ। शोधार्थी ने व्यक्तिगत रूप से 500 से अधिक वृक्ष लगाकर और ‘माई हॉफ ट्री’ संस्था के सहयोग से समाज में पर्यावरण जागरूकता बढ़ाई। प्रकृति और मानवता का संबंध सहजीवी है; एक के बिना दूसरा टिक नहीं सकता। यह शोध इस महत्वपूर्ण संबंध को उजागर करते हुए सतत संरक्षण और मानवता की जिम्मेदारी का संदेश देता है।\r\n\r\n

शोधार्थी अरुण प्रताप सिंह
पता Y-3 साउथ सिटी एक्स्टेंशन शाहजहाँपुर (उ.प्र) 242001
मोबाइल नंबर 9450913131
ई-मेल 131pratap@gmail.com
प्रकार ई-बुक/ई-पठन
भाषा हिंदी
कॉपीराइट हाँ
पठन आयु वर्ग सभी लोग
कुल पृष्टों की संख्या 99
ISBN(आईएसबीएन)
शोध संस्थान का नाम दिव्य प्रेरक कहानियाँ मानवता अनुसंधान केंद्र
Publisher/प्रकाशक दिव्य प्रेरक कहानियाँ, साहित्य विधा पठन एवं ई-प्रकाशन केंद्र
अति संक्षेप शोध सारांश मानव जीवन का अस्तित्व प्रकृति पर निर्भर है। जल, वायु, भूमि, वनस्पति और जीव-जंतु हमारे जीवन के मूल आधार हैं। औद्योगिक विकास और अंधाधुंध शहरीकरण ने प्राकृतिक संतुलन को प्रभावित किया है, जिससे वनों की कटाई, जल और वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता का ह्रास हुआ है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को माता का दर्जा दिया गया है और पारंपरिक ज्ञान में पर्यावरण संरक्षण का गहरा संदेश निहित है। प्राचीन और मध्यकालीन भारत में वन्यजीव, जल और भूमि संरक्षण के लिए सामाजिक और कानूनी व्यवस्थाएँ थीं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी पर्यावरण और संसाधनों के संयमित उपयोग पर बल दिया गया। आज आवश्यक है कि व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर वृक्षारोपण, जल संरक्षण, प्लास्टिक उपयोग में कमी, अक्षय ऊर्जा और जैविक खेती जैसे उपाय अपनाए जाएँ। शोधार्थी ने व्यक्तिगत रूप से 500 से अधिक वृक्ष लगाकर और ‘माई हॉफ ट्री’ संस्था के सहयोग से समाज में पर्यावरण जागरूकता बढ़ाई। प्रकृति और मानवता का संबंध सहजीवी है; एक के बिना दूसरा टिक नहीं सकता। यह शोध इस महत्वपूर्ण संबंध को उजागर करते हुए सतत संरक्षण और मानवता की जिम्मेदारी का संदेश देता है।\r\n\r\n
अन्य कोई अभियुक्ति
पर्यवेक्षक/मार्गदर्शक डॉ. अभिषेक कुमार
अपलोड करने की तिथि 14-08-2025

औसत स्टार रेटिंग

0 out of 5

(1 रेटिंग)
5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

समीक्षा लिखने के लिए लॉगिन करें

— आपके लिए यह शोध प्रबंध भी उपयोगी हो सकता है।

नए मानवता अनुसंधान पेपर